(संकलन और प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द)
यहूदी फकीर झुसिया का जीवन पढ़ा है। वह प्रार्थना करने जाता-बड़ा फकीर था; बड़े उसके भक्त थे, अनूठा आदमी था – वह जब यहूदी मंदिर में प्रार्थना करता, तो कभी-कभी लोगों से कह देता, अब तुम बाहर हो जाओ, सुनने वालों से। इस परमात्मा के बच्चे को ठीक करना ही पड़ेगा। तुम बाहर हो जाओ। एक सीमा है बरदाश्त की।
लोग बाहर हो जाते, तब उसका झगड़ा शुरू होता। वह परमात्मा से सीधी-सीधी बातें करता। झगड़ा ऐसा होता कि मौका आ जाए, तो मार-पीट हो जाए। अगर गॉव में कोई भूखा मर रहा है, तो वह गुस्से में आ जाता। वह कहता कि तेरे रहते यह कैसे हो रहा है? तेरा प्रेमी भूखा मर रहा है, यह हम बरदाश्त नहीं कर सकते। हम तेरी सब पूजा-पत्री बंद कर देंगे।
कहते हैं, झुसिया जैसा आदमी यहूदी परंपरा में नहीं हुआ। कैसा उसका गहन प्रेम रहा होगा कि परमात्मा से लड़ने को राजी है। कलह हो जाए; कई दिन तक मंदिर ही न जाए फिर वह। कि पड़ा रहने दो उसको वहीं; कोई पूजा मत करो, कोई प्रार्थना मत करो। जब हमारी नहीं सुनी जा रही है, हम भी क्यों उसकी सुनें!
झुसिया ने कहा है अपनी प्रार्थनाओं में कि देख, तू एक बात ठीक से समझ ले; हमें तेरी जरूरत है, वह पक्का; तुझे भी हमारी जरूरत है! इसलिए तू यह मत समझ कि तू हम पर कोई अनुग्रह कर रहा है। हमारे बिना तू भगवान न होगा। भक्त के बिना भगवान कैसे होगा? माना कि हम भक्त न होंगे, वह भी ठीक। लेकिन तू भी भगवान न होगा। जितनी हमें तेरी जरूरत है, उतनी तुझे हमारी जरूरत है। इसका सदा खयाल रख; इसको भूल मत जा।
प्रेमी लड़ सकता है, प्रेमी ही लड़ सकता है, भय नहीं है। पंडित तो डरता है, कंपता है। पंडित तो देखता है, कहीं क्रियाकांड में कोई भूल न हो जाए; कि शास्त्र में जैसी विधि लिखी है, वैसी पूरी होनी चाहिए। उसमें कहीं भूल-चूक न हो जाए। पता नहीं परमात्मा नाराज हो जाए।
इसने परमात्मा को जाना नहीं। परमात्मा कहीं नाराज होता है? यह पहचाना ही नहीं। यह मूढ़ है। इसे पता ही नहीं कि परमात्मा नाराज होता ही नहीं। नाराज होने जैसी घटना परमात्मा में घटती ही नहीं। और उस घड़ी में, जब कोई झुसिया जैसा भक्त परमात्मा को कहता होगा कि बंद कर देंगे तेरी प्रार्थना, तो परमात्मा नाचता होगा कि जरूर कोई प्रेमी मौजूद है।
