जगदलपुर शहर का साहित्य तीर्थ है लाला जगदलपुरी जिला ग्रंथालय अब शुरू हुईसाहित्यिक गतिविधियां

LOKASAR JAGDALPUR

लाला जगदलपुरी जिला ग्रंथालय हमारे शहर का साहित्य तीर्थ है और यहां आज भी हमारे बस्तर संभाग के साहित्यकारों की रचनाएं ध्वनिउर्जा के रूप में मौजूद हैं। बस्तर के साहित्य का केन्द्र रहा जिला ग्रंथालय लाला जगदलपुरी, रउफ परवेज, कृष्ण शुक्ल, जैसे नामचीन साहित्यकारों से उर्जामय बना रहा। पुराने ग्रंथालय के एक कमरे में संचालित आकृति संस्था जिसके संस्थापक बंशीलाल विश्वकर्मा जो लाला जगदलपुरी जी के बालसखा हैं, ने सतत साहित्यक की अलख जगाये रखने के लिये निरंतर प्रयास किया। आकृति संस्था में लालाजी से लेकर वर्तमान के समस्त नाचीन रचनाकारों ने अपने साहित्य का परिमार्जन किया। ये सारी बातें लाला जगदलपुरी जिला ग्रंथालय में आयोजित परिचर्चा में सनत जैन ने कहीं। जिसका विषय था ‘लाला जगदलपुरी जिला ग्रंथालय का बस्तर के साहित्यिक विकास में योगदान’।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे वरिष्ठ राष्ट्रवादी चिंतक व कवि डॉ कौशलेन्द्र मिश्र एवं विशिष्ट अतिथि थे वरिष्ठ कवि हिमांशु शेखर झा।
हिमांशु जी ने अपने वकतव्य में कहा कि दुनिया में कुछ लोगों पर महानता थोप दी जाती है और कुछ लोग जन्म से ही महान होते हैं। चूंकि लालाजी जन्म से महान थे और वे साहित्य के लिये जीने वाले विपन्न सरल और सीधे व्यक्तित्व के साहित्यकार थे। अतः स्वाभाविक रूप से जिला ग्रन्थालय के नामकरण के लिये उपयुक्त थे।
डॉ कौशलेन्द्र ने कहा ’बार बार पढ़ना, बार बार श्रवण करना चिन्तन के लिये आवश्यक उपाय है। इस लाइब्रेरी का स्वरूप ऐसा हो कि हर बरस यहां से एक शानी निकले।
अवधकिशोर शर्मा ने पुरानी यादों को ताजा किया और यहां बैठने वाले साहित्यकारों के बारे में खट्टी मीठी बातें बतायीं।
अनिल शुक्ल ने सुक्षाव दिया कि लाइब्रेरी में बस्तर के साहित्यकारों की रचनाओं का एक अलग से कक्ष हो ताकि अन्य लोग तुरंत उनको पढ़ सकें।
इस परिचर्चा के बाद उपस्थित रचनाकारों ने अपनी कविताओं का पाठ किया।
प्रथम बार यहां के कार्यक्रम में शामिल हुयी स्मृति मिश्रा ने अपने सस्वर गीत प्रस्तुति से सभा का मन मोह लिया। गीत के बोल थे- रात भर चांदनी यूं सुलगती रही/ चांद की आस में रात भर जलती रही।
गीता शुक्ला ने अपनी कििवता में बताया कि ’दोहरे चेहरे लिये घूमते हैं लोग/ कहते हैं कुछ और करते हैं कुछ और।
सुकांति जायसवाल ने राम पर आधारित कविता पढ़ी। ’कण कण में हैं राम समाये/सत्य मार्ग दिखलायेेंगे राम नाम का जाप करो तुम/भव से पार लगायेंगे।
चमेली नेताम ने छंदबद्ध रचना का पाठ किया।-कोना में बूढ़े पड़े होकर के लाचार/बोझिल जीवन है बना, सोचे मन कर बार।
युवा रचनाकार औमप्रकाश धु्रव ने अपनी गजलनुमा रचना में कहा कि जिन्हें हम चांद कहते हैं/आज वो चांद को देख हमें निहारते हैं।
डॉ प्रकाश पैमाना ने अपनी गजल पढ़ी ’क्यूं खड़ा है तू किसी मंझधार में/ रख भरोसा नाव में पतवार में।
राजकुमार जायसवाल ने ’मेरे राम आये’ विषय पर एक सार्थक और शानदार कविता का पाठ किया। जिसमें बताया कि हम दीपावली में अपने का सौन्दर्य बढ़ाने दीपों और रंगोली से घर नहीं सजाते बल्कि राम के आने की खुशी में और स्वयं को राममय बनाने के लिये ये सब करते हैं।
अनिल शुक्ला ने देशभक्ति गीत पढ़ा ’देश हमारा उन्नति करे, नित रचे आयाम/सभी सुखी सम्पन्न हों, समृद्धि हो अविराम।
नरेन्द्र पाढ़ी ने हल्बी की रचना में लाला जगदलपुरी जी के जीवन व चरित्र का चित्रण किया। और मेहनत पर आधारित भतरी कविता का पाठ किया।
डॉ सुशील साहू ने ’चलो पुस्तकालय चलो/पढ़ेंगे, बढ़ेंगे, गढ़ेंगे नया देश अपना’ पढ़कर सभी में जोश भरा।
हिमांशु शेखर ने कम पंक्तियों में गहरी बात कही ’बहुत चाहता हूं मोड़ देना शब्दों को/जहां खत्म हो जाती हैं आवाजें।
डॉ कौशलेन्द्र ने सर्वथा नये विषय पर श्रेष्ठ रचना का पाठ किया।
पंख खोलूंगी प्यारे, कहीं उड़ जाउंगी/बंध के खूंटे से एएक, ना मैं रह पाउंगी/ ना सेंदुर, ना बिछिया, बच्चों की रेल/ हूं रिलेशन में कहो कोई मोय ना रखैल।
अंत में लाला जगदलपुरी जिला ग्रन्थालय प्रभारी व वरिष्ठ साहित्यकार शरदचंद्र गौड़ आभार प्रदर्शन के साथ नारी व्यथा पर आधारित अपनी कविता का पाठ किया। उन्होंने कहा कि अब ये ग्रंथालय लगातार साहित्यिक गतिविधियों का केन्द्र बनेगा और नये रचनाकारों को विशेष मंच प्रदान करेगा। अंचल के साहित्यकारों की स्मृति में निरंतर कार्यक्रम आयोजित करवाते रहेंगे।
कार्यक्रम का संचालन सनत जैन द्वारा किया गया एवं कार्यक्रम का आयोजन साहित्य एवं कला समाज जगदलपुर द्वारा किया गया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *