चीजें बदलने से कोई क्रांति नहीं होती, बदलनी चाहिए मनुष्य की…

संकलन एवम् प्रस्तुति / मक्सिम आनन्द

एक वृद्ध लेकिन कुंआरी महिला ने अकेलेपन से घबड़ा कर, एकाकीपन से ऊब कर एक तोते को खरीद लिया था।

तोता बहुत बातूनी था। बहुत चतुर और बुद्धिमान था। उसे शास्त्रों के सुंदर-सुंदर श्लोक याद थे, सुभाषित कंठस्थ थे। भजन वह तोता कह पाता था। वह वृद्धा उसे पाकर बहुत प्रसन्न हुई। उसके अकेलेपन में एक साथी मिल गया।

लेकिन थोड़े दिनों ही बाद उस तोते में एक खराबी भी दिखाई पड़ी। जब घर में कोई भी न होता था और उसकी मालकिन अकेली होती, तब तो वह भजन और कीर्तन करता, सुभाषित बोलता, सुमधुर वाणी और शब्दों का प्रयोग करता। लेकिन जब घर में कोई मेहमान आ जाते, तो वह तोता एकदम बदल जाता था।

वह फिल्मी गाने गाने लगता और सीटियां बजाने लगता। और कभी-कभी अश्लील गालियां भी बकने लगता। वह महिला बहुत घबड़ाई। लेकिन उस तोते से उसे प्रेम भी हो गया था। और अकेले में वह उसका बड़ा साथी था। लेकिन जब भी घर में कोई आता तो वह कुछ ऐसी अभद्र बातें करता कि वह महिला बड़ी संकोच और परेशानी में पड़ जाती।

वह तोता ही तो था। आदमी होता तो ऐसा कभी न करता। आदमी इससे उलटा करता है। अकेले में फिल्मी गाने गाता है, सबके सामने भजन कहता है। वह तोता ही तो था आखिर। वह कोई बहुत समझदार नहीं था। वह पागल अकेले में तो भजन गाता, और सबके सामने फिल्मी गाने गाता, और सीटियां बजाता, और अश्लील शब्द बोलता। वह महिला घबड़ाई! क्या करे? तो उसने अपने चर्च के पादरी को कहा।

क्योंकि चर्च के पादरी का धंधा यही थाः लोगों को सुधारना, उनके जीवन को अच्छा बनाना, उनके आचरण को शुद्ध करना। तो उस महिला ने सोचा कि जो हजारों लोगों के जीवन को शुद्ध करता है, क्या एक तोते के जीवन को नहीं बदल सकेगा?

उसने जाकर चर्च के पादरी को प्रार्थना की मेरे तोते में एक खराब आदत है, क्या आप इसे नहीं बदल सकेंगे? चर्च के पादरी को तोतों के संबंध में कोई भी ज्ञान नहीं था। लेकिन उपदेशक कभी भी अपना अज्ञान स्वीकार करने को राजी नहीं होते। वह भी राजी नहीं हुआ। और उसने कहा_ हां, इसमें कौन कठिनाई है, मैंने तो सैकड़ों तोतों को ठीक किया है। यद्यपि यह पहले ही तोते से उसका पाला था। रात भर वह सोचता रहा क्या करे, क्या न करे? और तभी उसे खयाल आया, उसके पास खुद भी एक तोता है।

और वह तोता चूंकि चर्च के पादरी के पास था, इसलिए चर्च का पादरी जितने उपदेश देता था, उतने ही उपदेश उसे भी याद हो गए थे। और निरंतर चर्च में कीर्तन और भजन चलता, और अच्छी बातें चलतीं, तो उस तोते ने उनको भी याद कर लिया था। वह तोता बहुत धार्मिक था। पादरी ने सोचाः मैं तो नहीं समझा पाऊंगा उस बिगड़े हुए तोते को, लेकिन क्या यह अच्छा न होगा कि मैं अपने तोते को कुछ दिनों के लिए उस तोते के पास छोड़ दूं। यह धार्मिक तोता है, उस अधार्मिक को ठीक कर लेगा।

और वह अपने तोते को लेकर दूसरे दिन उस महिला के घर गया। और उसने कहाः एक मादा तोता मेरे पास भी है, और यह बहुत धार्मिक है। और निरंतर धर्म की चर्चा के अतिरिक्त इसे किसी बात में कोई रुचि नहीं। इसकी प्रार्थनाएं तो इतनी हृदय से भरी होती हैं कि सुनने वाले के आंसू आ जाएं। इसके प्राणपण निरंतर प्रार्थना में जुटे रहते हैं। तो मैं इस अपने मादा तोते को तुम्हारे तोते के पास छोड़े जाता हूं। यह सप्ताह, दो सप्ताह में ही उसका हृदय परिवर्तन कर देगा।
वह अपने मादा तोते को उसके पास छोड़ गया। एक ही पिंजरे में उन दोनों को बंद कर दिया गया।

बिगड़ा हुआ तोता बहुत…थोड़ी देर तक तो स्तब्ध होकर इस नये अजनबी को देखता रहा। फिर उसने दोस्ती के लिए हाथ बढ़ाया, थोड़ी बातचीत हुई। उन दोनों में मित्रता हो गई। और जैसा स्वाभाविक था, मित्रता के बाद उसने प्रेम के लिए भी आमंत्रण दिया। और मादा तोते के आस-पास उसने प्रेम का जाल रचा। लेकिन वह मन में डरा हुआ था, क्योंकि मादा तोता धार्मिक थी।

धार्मिक लोग प्रेम से बहुत डरते हैं। वह तोता भी डरा हुआ था कि पता नहीं प्रेम के संबंध में यह आमंत्रण स्वीकार भी होगा या नहीं? लेकिन प्रयास करना जरूरी था। उसने कोशिश की, वह नाचा-कूदा, उसने गीत गाए। और अंत में इस वजह से उसने पूछा कि कहीं मेरी ये सारी हरकतें उसे नाराज तो नहीं कर रही हैं? उसने उस मादा तोते को पूछाः मेरे गीत और मेरे प्रेम का आमंत्रण तुम्हें नाराज तो नहीं कर रहा हैं? क्योंकि मैंने सुना है तुम तो दिन-रात प्रार्थनाओं में लीन रहने वाली हो। उस मादा तोते ने कहाः तुम पागल हो, मैं प्रार्थनाएं करती ही किसलिए थी?

उस मादा तोते ने कहाः मैं प्रार्थनाएं करती ही किसलिए थी, तुम्हें पाने को। दूसरे दिन से उस मादा तोते ने प्रार्थनाएं करनी बंद कर दी। और उस बिगड़े हुए तोते ने गालियां देनी बंद कर दी। वह भी किसी पत्नी की तलाश में था, और इसलिए क्रोध में गालियां दे रहा था। और वह मादा तोता किसी पति की तलाश में थी, और इसलिए प्रार्थनाएं कर रही थी। वे प्रार्थनाएं और गालियां एक ही अर्थ रखती थीं, उनमें कोई भेद नहीं था।

यह एक घटना मैं इसलिए कहना चाहता हूं कि यदि आदमी का अंतःकरण न बदले तो उसकी गालियों और प्रार्थनाओं में कोई भेद नहीं होता है। उसके मंदिर जाने में, उसके शिवालय जाने में और उसके मधुशाला जाने में कोई भेद नहीं होता है

मनुष्य का हृदय न बदले तो वह चाहे कुछ भी करे, उसके करने के पीछे वे ही क्षुद्र आकांक्षाएं, इच्छाएं और वासनाएं काम करती हैं। ऊपर स्वरूप बदल जाता है। ऊपर से ढंग बदल जाता है, और वस्त्र बदल जाते हैं। लेकिन भीतर, भीतर की बात वही रहती है।

इसलिए मैंने यह बात कही। वे दोनों बातें अलग दिखाई पड़ती हैंः एक तोते का गालियां बकना, और एक तोते का प्रार्थनाएं करना बहुत भिन्न मालूम होता है। लेकिन जो नहीं जानते उन्हीं को यह भिन्न मालूम होगा। जो गहरे देखेंगेः वे पाएंगे, उनके अंतःकरण की आकांक्षा और वासना एक ही है।

मनुष्य के ऊपरी आचरण के बदल जाने से कुछ भी नहीं होता; और न ही मनुष्य के शब्द बदल जाने से कुछ होता है; और न ही मनुष्य के वस्त्र और स्थान बदल जाने से कुछ होता है; बदलनी चाहिए मनुष्य की अंतर्रात्मा।

लेकिन हम हजारों वर्षों से शब्दों के बदलने में, कृत्य के बदलने में, वस्त्र के बदलने में इतने संलग्न रहे हैं कि हम यह बात ही भूल गए हैं कि ये चीजें बदलने से कुछ बदलाहट नहीं होती। कोई क्रांति नहीं होती।

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