पेटी पहुंचायी जा सकती है, लेकिन जिस सौंदर्य को सागर किनारे जाना, उसे …

संकलन एवम् प्रस्तुति / मक्सिम आनन्द

मैंने सुना है, एक कवि समुद्र की यात्रा पर गया है। जब वह सुबह समुद्र तट पर पहुंचा, तो बहुत सुंदर सुबह थी; बहुत सुंदर प्रभात था। पक्षी गीत गाते थे वृक्षों पर, सूरज की किरणें नाचती थीं लहरों पर। हवाएं ठंडी थीं और फूलों से सुवास आती थी। वह नाचने लगा उस सुन्दर प्रभात में और फिर उसे याद आया कि उसकी प्रेयसी तो एक अस्पताल में बीमार पड़ी है। काश, वह भी आज यहां होती। वह तो बिस्तर से बंधी है। उसके तो उठने की कोई संभावना नहीं है।

तो उस कवि को खयाल आया कि क्यों न मैं ऐसा करूं कि समुद्र की इन ताजी हवाओं को, सूरज की इन नाचती हुई किरणों को, लहरों के इस संगीत को, फूलों की इस सुवास को अपनी प्रेयसी के लिए एक पेटी में बंद करके ले जाऊं। और जाकर उसे कहूं कि देख, कितनी सुंदर सुबह का एक टुकड़ा मैं तेरे लिए लाया हूं।

वह गांव गया और एक पेटी खरीद लाया। बहुत सुन्दर पेटी थी। उस पेटी को खोलकर उसने उसमें समुद्र की ठंडी हवाएं भर लीं, सूरज की नाचती किरणें भर लीं, फूलों की सुगंध भर ली। उस पेटी में सुबह का एक टुकड़ा बंद करके, उसे ताला लगा दिया कि कहीं से वह सुबह बाहर न निकल जाये। और उस पेटी को अपने एक पत्र के साथ उसने अपनी प्रेयसी के पास भेज दिया कि सुबह का एक सुंदर टुकड़ा, सागर के किनारे का एक जिंदा टुकड़ा तेरे पास भेजता हूं। नाच उठेगी तू, आनंद से भर जायेगी। ऐसी सुबह मैंने कभी नहीं देखी। उस प्रेयसी के पास पत्र भी पहुंच गया और पेटी भी पहुंच गयी। पेटी उसने खोली, लेकिन पेटी के भीतर तो कुछ भी नहीं था। न सूरज की किरणें थी, न सागर की ठंडी हवाएं थीं; न कोई फूलों की सुवास थी। वह पेटी तो बिलकुल खाली थी। उसके भीतर तो कुछ भी नहीं था। पेटी पहुंचायी जा सकती है, लेकिन जिस सौंदर्य को सागर किनारे जाना, उसे नहीं पहुंचाया जा सकता।

जो लोग सत्य के जीवन में सागर के तट पर पहुंच जाते हैं, वे वहां क्या जानते हैं- कहना मुश्किल है; क्योंकि सूरज का प्रकाश, जिस प्रकाश को वे जानते हैं, उसके सामने अंधकार है। जिस सुवास को वे जानते हैं, किसी फूल में वह सुवास नहीं है। वे जिस आनंद को जानते हैं, हमारे सुखों में उस आनंद की एक किरण नहीं है। वे जिस जीवन को जानते हैं, उस जीवन का हमें कुछ भी पता नहीं हैं। बस पेटियों में भर कर वे जो हैं- गीता में, कुरान में, बाइबिल में- वह हमारे पास आ जाता है। शब्द आ जाते हैं; लेकिन जो उन्होंने जाना था, वह पीछे छूट जाता है। वह हमारे पास नहीं आता।

फिर हम उन पेटियों को सिर पर ढोये हुए घूमते रहते। कोई गीता को लेकर घूमता है, कोई कुरान को, कोई बाइबिल को। और चिल्लाता रहता है कि सत्य मेरे पास, सत्य मेरी किताब में है। सत्य किसी भी किताब में न है, न हो सकता है। सत्य किसी शब्द में न है, न हो सकता है। सत्य तो वहां है, ‘सब शब्द क्षीण हो जाते हैं, और गिर जाते हैं। जहां चित्त मौन हो जाता है, निर्विचार हो जाता है, वहां है सत्य। न जहां कोई शाख जाता है, न कोई सिद्धांत। इसलिए जो सिद्धांत और शाखों की खूंटियों से बंधे हैं, वे कभी भी सागर के तट पर नहीं जा सकेंगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *