अहंकार का अंधेरा गया, तो बुद्धत्व का दीया जलता है…या बुद्धत्व का दीया जला, तो…

संकलन एवम् प्रस्तुति/ मक्सिम आनन्द

बुद्ध को ज्ञान हुआ, उस ज्ञान के बाद वे बयालीस साल जिंदा रहे। किसी ने बुद्ध से पूछा कि आप तो विसर्जित हो गए हैं, फिर भी आप कैसे जिंदा हैं? तो उन्होंने कहा, शरीर ही जिंदा है, मैं अब कहां? ऐसा समझो कि तुम साइकिल चला रहे हो, और कई मील से साइकिल चलाते आ रहे हो, और फिर तुम पैडल मारने बंद कर दो, तो भी साइकिल पुरानी गति के प्रवाह में हो सकता है दो-चार फलांग और चली जाए। तुम पैडल नहीं मारते, फिर भी साइकिल चल रही है–पुराना मोमेंटम है, मीलों चली है, चलने की गति पहियों को चलाए जा रही है। गति भी संगृहीत हो जाती है। ऐसा ही बुद्ध ने कहा कि सदियों-सदियों तक यह देह चली है, इसे चलने की आदत हो गई है। मैं तो अब नहीं हूं, पैडल मारने वाला अब नहीं है, लेकिन यह देह कुछ देर चलेगी। बयालीस वर्ष चली!

और जब अंतिम दिन आया बुद्ध का, तो भिक्षु उनके रोने लगे। आनंद ने कहा, आप जाते हैं, हमारा क्या होगा?
बुद्ध ने कहा, नासमझ आनंद, यह और तू क्या पूछता है? मैं तो जा चुका बयालीस वर्ष पूर्व! रोना था तो तब रो लेना था! अब तो जाने वाला कहां है? अब तो सिर्फ शरीर की जो गति थी, वह क्षीण होते-होते-होते ठहरने के करीब आ गई। तू किसके लिए रो रहा है? उसके लिए जो बहुत पहले मर चुका! बयालीस वर्ष पहले मर चुका!

अहंकार की मृत्यु हो, तभी तो बुद्धत्व का जन्म होता है। बुद्धत्व का अर्थ क्या है? अहंकार का अंधेरा गया, तो बुद्धत्व का दीया जलता है। या बुद्धत्व का दीया जला, तो अहंकार का अंधेरा गया। अहंकार यानी अंधकार। बौद्ध परिभाषा में पहली घटना को “निर्वाण’ कहते हैं–जब अहंकार चला जाता, लेकिन देह चलती। और दूसरी घटना को, जब देह भी गिर जाती, “महापरिनिर्वाण’ कहते हैं। महापरिनिर्वाण के बाद लौटना कैसा? असंभव।

तो फिर बुद्ध का कुछ और अर्थ है। बुद्ध प्रतीक में बोल रहे हैं। वे यह कह रहे हैं कि मुझ जैसा, मैं नहीं, मुझ जैसा। ठीक मेरे जैसा, ठीक मैं ही–यही स्वाद, यही गीत, यही देशना, यही प्रकाश, यही उत्सव, यही रंग–यही वसंत फिर आएगा पच्चीस सौ वर्ष बाद। और तब इसका मौलिक लक्षण होगा: मैत्री, प्रेम। तब इसकी मौलिक उपदेशना होगी प्रेम की।

बुद्ध की मौलिक उपदेशना थी करुणा की। क्योंकि लोग उस सदी के बड़ी हिंसा से भरे थे। हिंसा लोगों की जीवनचर्या थी। साधारण रूप से ही लोग हिंसक नहीं थे, धार्मिक अर्थों में भी हिंसक थे। धर्म के नाम पर भी बलि दी जाती थी। आज हिंदू बहुत शोरगुल मचाते हैं: गौ-वध बंद होना चाहिए। लेकिन गौ की भी बलि देते थे हिंदू, गौमेध यज्ञ होते थे। अश्वमेध यज्ञ होते थे, जिनमें घोड़ों की बलि दी जाती थी। और चर्चा तो नरमेध यज्ञों की भी है। तो साधारण जीवन में ही हिंसा नहीं थी, धर्म के नाम पर भी खूब हिंसा चल रही थी। बुद्ध ने करुणा का उपदेश दिया।

बुद्ध तो वही बोलते हैं जो युग की जरूरत होती है। बीमार को वही औषधि तो देनी होती है, जो उसकी बीमारी के काम आ जाए। तो गौतम बुद्ध ने करुणा में अपने सारे संदेश को ढाला। उन्होंने कहा, पच्चीस सौ साल बाद जो बुद्धत्व होगा, उसकी मूल उपदेशना मैत्री की होगी, क्योंकि लोगों के जीवन से प्रेम के नाते विच्छिन्न हो गए होंगे। सेतु टूट गए होंगे। लोग अलग-थलग हो गए होंगे। प्रत्येक व्यक्ति अपने अहंकार में जीने लगेगा। और प्रत्येक व्यक्ति अपने अतिरिक्त और किसी की चिंता न करेगा, सोच-विचार न करेगा। हर व्यक्ति गहन स्वार्थ में डूबा होगा। यह रोग होगा, इसलिए उपचार मैत्री होगी।

वेदांत, तुम्हारा प्रश्न महत्वपूर्ण है। मैं किसी बुद्ध का अवतार नहीं हूं। गौतम बुद्ध गौतम बुद्ध हैं, मैं मैं हूं। लेकिन स्वाद जो मेरा लेगा, उसे ऐसी प्रतीति हो तो आश्चर्य नहीं। वेदांत, तुम्हारा प्रेम बुद्ध से मालूम होता है। इसलिए तुम्हें मुझमें बुद्ध का स्वाद मिल जाएगा।

मेरे पास न मालूम कितने ईसाई आकर संन्यस्त हुए हैं। निरंतर वे मुझसे आकर कहते हैं कि हम तो सोचते थे, क्राइस्ट एक कल्पना है, मगर आपकी आंखों में हमें क्राइस्ट के दर्शन हो गए। उनका प्रेम क्राइस्ट से है, तो उन्हें क्राइस्ट का स्वाद मिल जाएगा। जिनकी जैसी भावना होगी। जिनका जैसा भीतर भाव होगा। मेरे प्रेम में पड़ेंगे, तो उन्हें वही स्वाद मिलेगा जिस स्वाद की उन्हें पहचान है।

लेकिन क्राइस्ट कहो, या कृष्ण कहो, या बुद्ध कहो, या लाओत्सु कहो, ये नाम ही भिन्न हैं। ये नदियां अलग-अलग होंगी, मगर इनमें जो जलधार बहती है वह एक ही है। तुम गंगा से पीओ जल, कि यमुना से पीओ जल, कि नर्मदा से पीओ जल, कि गोदावरी से पीओ जल, कि वोल्गा से, कि अमेजान से, कोई फर्क न पड़ेगा–सभी जल तुम्हारी प्यास को बुझा जाएंगे।

बुद्ध ने कहा है, तुम मुझे कहीं से भी चखो, मेरे स्वाद को एक ही जैसा पाओगे। सुबह चखो, दोपहर चखो, सांझ चखो, रात चखो; आज, कल–मेरे स्वाद में तुम भेद न पाओगे। इस बात को और भी बढ़ाया जा सकता है।

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