आंसुओं से तुम पूरे बह जाओ तो कुछ कहने को नहीं बचता, फिर कोई प्रार्थना करने की जरूरत नहीं है। फिर कोई शास्त्र आवश्यक नहीं है…

संकलन एवम् प्रस्तुति/ मक्सिम आनन्द

मैंने सुना है, एक करोड़पति कंजूस की एक आंख नकली थी, पत्थर की थी।

एक आदमी भीख मांगने आया था। कंजूस ने कभी किसी को भीख न दी थी। लेकिन उस दिन कुछ शुभ मुहूर्त में आ गया था भिखारी। कंजूस कुछ प्रसन्न था। कोई बड़ी संपदा हाथ लग गयी थी। अभी-अभी खबर मिली थी तो बड़ा प्रफुल्लित था। तो रोज से उस दिन सदय था। कभी किसी भिखारी को कुछ न दिया था। उस दिन भिखारी से कहा, “अच्छा दूंगा कुछ, लेकिन पहले एक शर्त है। क्या तू बता सकता है कि मेरी कौन-सी आंख असली है, कौन-सी नकली है?’

उस भिखारी ने देखा और उसने कहा कि बायीं असली होनी चाहिए, दायीं नकली। चकित हुआ धनपति। उसने कहा, “कैसे तूने जाना?’ तो उसने कहा, “नकली आंख में थोड़ी-सी करुणा मालूम पड़ती है, थोड़ी दया का भाव मालूम पड़ता है, इससे पहचाना।
असली तो बिलकुल पथरा गयी है।’

बहुत हैं जिनकी आंखें पथरा गयी हैं, जिनके हृदय सूख गये हैं, रसधार नहीं बहती। गंगा खो गयी है, रूखे-सूखे रेत के पहाड़ खड़े रह गये हैं। कहीं कोई अंकुर नहीं फूटता, कोई पक्षी गीत नहीं गाता। सौभाग्यशाली हैं वे जिनकी आंखें अब भी तर हो सकती हैं, भीग सकती हैं। उनकी आत्मा के भीगने का अभी उपाय है। तो अगर रोना आता हो तो आने देना, सहयोग करना, साथ देना, संगी बनना। लड़-लड़कर मत रोना। झिझक-झिझककर मत रोना। सकुचाना मत। शर्माना मत। नहीं तो चूक हो जायेगी।

अगर आंसुओं से तुम पूरे बह जाओ तो कुछ कहने को नहीं बचता। फिर कोई प्रार्थना करने की जरूरत नहीं है। फिर कोई शास्त्र आवश्यक नहीं है। फिर तुम्हारे आंसू सब कह देंगे–जो नहीं कहा जा सकता वह भी; जो कहा जा सकता है वह तो निश्चित ही। फिर तो तुम्हारे आंसू सब गा देंगे–जो गेय है, अगेय है, सभी गा देंगे; जो नहीं गाया जा सकता है, अगेय है, वह भी गा देंगे। फिर तो तुम्हारे आंसुओं की धुन में सब प्रगट हो जाएगा। तुमसे ज्यादा ढंग से कह देंगे वे, परमात्मा से क्या कहना है!

वियोगी होगा पहला कवि आह से उपजा होगा गान ,उमड़कर आंखों से चुपचाप बही होगी कविता अनजान ,सारा काव्य आंसुओं का है।
हंसी से कोई काव्य निर्मित होता है? सारा काव्य आंसुओं का है; क्योंकि हंसी बड़ी उथली है, ऊपर-ऊपर है, खोखली है। कोई हंसना आंसुओं की गहराई नहीं छू पाता। हंसना ऊपर-ऊपर लहर की तरह आता है, चला जाता है। आंसू कहीं गहरे में सघन हो जाते हैं। तो आंसू तो गहराई में उतरने की सुविधा है, सौभाग्य है।

और धीरे-धीरे, पहले तो आंसू अपने लिए बहते हैं, फिर आंसू औरों के लिए भी बहने लगते हैं। पहले-पहले तो कारण से बहते हैं, फिर अकारण बहने लगते हैं। जब अकारण बहने लगते हैं, तब उनका मजा ही और है।

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