लोक असर समाचार बालोद/जगदलपुर
बस्तर के मानवशाष्त्री एवं साहित्यकार डॉ रूपेन्द्र कवि की बहु प्रतीक्षित कविता संग्रह बस्तर की सुबह का विमोचन छत्तीसगढ़ के उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा के हाथों हुआ।
यह किताब जहाँ दो भाषा हलबी व हिन्दी में लिखी गई है , अन्य भाषाओं में भी इसका अनुवाद की ज़रूरत है।
इस किताब को डिप्टी सी एम ने अवार्ड विनिंग बुक कहकर लेखक, प्रकाशक को शुभकामनाएँ दी!

ज्ञात हो कि फिलहाल यह किताब जहाँ दो भाषाओं हलबी व हिन्दी में लिखी गई है, वहीं अन्य भाषाओं में भी इसके अनुवाद करने की ज़रूरत है। इस किताब को डिप्टी सीएम शर्मा ने अवार्ड विनिंग बुक कहकर लेखक प्रकाशक को शुभकामनायें दी है। इस कविता संग्रह विमोचन के समय और कई साहित्यकार एवं साहित्यप्रेमी उपस्थित थे।
अपने संक्षिप्त परिचय देते हुये कवि डा० रूपेन्द्र ने बताया कि उनका जन्म वनांचल बस्तर के जगदलपुर में 17 फरवरी 1979 में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा बस्तर में होने के बाद उनकी उच्च शिक्षा पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर में सम्पन्न हुई। मानव विज्ञान में इन्होंने पीएचडी कार्य सम्पन्न किया। भाषाविज्ञान, विरासत प्रबन्धन संग्रहालय विज्ञान, समाजशास्त्र, हिंदी साहित्य आदि विषयों की पढ़ाई इनके ज्ञान विस्तार और जिज्ञासावृत्ति के सूचक हैं। देश विदेश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में पचास से अधिक शोधपत्र, राष्ट्रीय- अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में इनका शामिल होना और अध्यक्षता इनके अकादमिक अभिरुचि के अभिलक्षण हैं। ये अपने लोक बस्तर को साहित्यिक सृजन की दृष्टि से देखते हैं, जिसका शुभ पक्ष इनकी कविता लेखन यात्रा है। भारतीय जाति व्यवस्थाः शास्त्रीय एवं आधुनिक’, ‘बस्तर में आदिवासी विकास’ इनके द्वारा लिखित मानवविज्ञान की मानीखेज़ पुस्तक है।
इसके अलावा इनकी बाल साहित्य की पुस्तकें नेशनल बुक ट्रस्ट ऑफ इंडिया से प्रकाशित हुई है। ‘आधारभूत मानवविज्ञान’ इनकी शीघ्र प्रकाश्य पुस्तक है।
बस्तर के लोकजीवन पर इनके संजीदा विचार उल्लेखनीय हैं। इनको देश के विभिन्न सामाजिक-सांस्कृतिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है। इनकी लेखन यात्रा अनवरत जारी है।
कवि रूपेन्द्र वर्तमान में उपसंचालक आदिमजाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान, (छत्तीसगढ़) में पदस्थ हैं। बस्तर के लोकप्रिय रचनाकार डॉ. रूपेंद्र कवि, कवि’ नाम के अनुरूप मूलतः मानवविज्ञानी होते हुये भी कविकर्म को साथ लेकर चलते हैं।
कवि की प्रथम कविता संग्रह ‘बस्तर की सुबह’ दो अर्थों में विशेष है प्रथम यह अपने बस्तर भूमि से बस्तर की हल्बी बोली में हिंदी कविता का अर्थविस्तारक है। यह कविता संग्रह द्विभाषी है-हल्बी और हिंदी।
दूसरा संग्रह की कवितायें बस्तर की संस्कृति और संस्कृति की को मानवविज्ञान की नजर से देखता है। बस्तर की धरती से देश दुनियां की संवेदनलय से हमें जोड़ती है।
