संकलन एवम् प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द
दो भिक्षु एक नाव से कहीं जा रहे थे। एक भिक्षु वृद्ध था और एक युवा। जब नाविक ने उन्हें उनके गंतव्य पर उतारा तो उन्होंने उससे पूछा कि जिस गांव वे जा रहे हैं, क्या सूर्यास्त से पहले वहां पहुंचना संभव होगा? क्योंकि पहाड़ी मार्ग था, दुर्गम था, सूरज ढलने को या, सूर्यास्त में ज्यादा से ज्यादा एक घंटा ही बचा था। सूर्यास्त तक उनका पहुंचना जरूरी था क्योंकि सूर्यास्त के बाद यदि गांव के द्वार बंद हो जाते तो उन्हे गाव के बाहर जंगल में ही रात बितानी पड़ती। नाविक ने कहा, यदि वे धीरे-धीरे चलकर जायेंगे तो पहुंच जायेंगे।
वृद्ध भिक्षु बोला कि हाँ मैं तुम्हारी बात समझ सकता हैं। लेकिन युवा भिक्षु बोला कि तुम दोनो पागल हो, धीरे चलकर कोई जल्दी कैसे पहुंच सकता है? वह बोला कि मैं यह बेकार की बकवास सुनने वाला नहीं हूं।
उसने पहाड़ी पर दौड़ना शुरु कर दिया। वह जल्दी से जल्दी गांव पहुंच जाना चाहता था। वृद्ध भिक्षु ने उसे आवाजें भी हो। दी कि वह धीरे चले, लेकिन वह सुनने को तैयार ही नहीं था। वह आगे दौड़ता चला गया। और फिर वही हुआ जो होना था। वह ठोकर खाकर नीचे गिर गया, उसको बड़ी चोट आयी, सामान यहां-वहां बिखर गया। कुछ समय बाद वृद्ध भिक्ष धीरे- धीरे चलता हुआ उसके पास पहुंचा, उसने युवा भिक्षु की ओर देखा, उसका पैर टूट चुका था। वह युवा भिक्षु से बोला, ‘अब तुम कैसे जाओगे? तुम जल्दी पहुंचना चाहते थे, लेकिन अब कभी पहुंच ही न पाओगे।’
कहानी कहती है कि युवा भिक्षु को जगली जानवर खा गये और वृद्ध भिक्षु सूर्यास्त होते-होते उस गांव पहुंच गया। गांव का द्वार बंद ही होने को था कि वह वहां पहुंच गया और गांव में प्रवेश कर गया।
यह कहानी जीवन के संबंध में है। यहां मार्ग दुर्गम और पहाड़ी है। यहा घाटियां हैं व शिखर है, और तुम कभी भी गिर सकते हो। यदि तुम बहुत तेज दौड़े तो कहीं न पहुंच पाओगे, क्योंकि जब तुम तेज दौड़ते हो तो अपनी चेतना खो देते हैं।
