भीतर बकवास करता हुआ मन है यह तुम्हें किसी आनंद को अनुभव नहीं करने देता, …जैसे बोलने वाली खोपड़ी…

संकलन एवम् प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द

एक बार मुल्ला नसरुद्दीन एक जंगल से गुजर रहा था। वहीं उसने देखा कि एक कापड़ी पड़ी हुई है। सुनसान जंगल में पड़ी उस खोपड़ी को देखकर उसे हैरानी हुई, तो उत्सुकता की अपनी आदत के कारण वह खोपड़ी से पूछ बैठा, भाई साहब, आप यहाँ कैसे पहुंचे? इसके बाद उसे असली हैरानी तो तब हुई जब खोपड़ी उसके प्रश्न का जवाब देते हुए बोली भाई साहब, मेरा बोलना मुझे यहां आया।

मुल्ला को विश्वास ही न हुआ कि एक खोपड़ी बात कर रही है, लेकिन अपने कानों से उसने उसे बोलते हुए सुना था। वह तो सीधा राजा के दरबार की ओर भागा। दरबार में वह सीधा राजा के पास पहुंचा और बोला, मैंने एक चमत्कार देखा है। हमारे गांव के पास ही, जंगल में एक खोपड़ी पड़ी हुई है जो बोलली है।

राजा को भी विश्वास नहीं हुआ, पर उसको भी उत्सुकता जगी। राजा ने कहा चलो देखते हैं. और सारा दरबार मुल्ला के साथ जंगल की ओर चल पड़ा। जंगल में जब वे खोपड़ी के पास पहुंचे तो मुल्ला ने फिर उससे पूछा, भाईसाहब, आप यहां कैसे पहुंचे? लेकिन खोपड़ी चुप रही। उसने दोबारा पूछा, फिर दोबारा पूछा, लेकिन खोपड़ी चुप थी सो चुप ही रही।

राजा बोला, नसरुद्दीन, मैं जानता था कि तुम झूठे हो, लेकिन अब तो हद ही हो गयी। यह जो भद्दा मजाक तुमने किया है. इसके लिये तुम्हें सजा मिलेगी। उसने अपने सैनिकों से कहा कि मुल्ला का सिर काटकर वही खोपड़ी के पास चीटियों के खाने के लिये फेंक दिया जाए। सैनिकों ने आदेश का पालन किया और मुल्ला का सिर काटकर खोपड़ी के पास फेंक दिया। जैसे ही सब वहां से गये, खोपड़ी फिर बोलने लगी। उसने नसरुद्दीन के सिर से पूछा, भाई साहब, आप यहां कैसे पहुंचे? नसरुद्दीन ने उत्तर दिया, ‘भाईसाहब, मेरा बोलना मुझे यहां ले आया।’

मनुष्य का बोलना ही उसे इस परिस्थिति में ले आया है जो आज है। यह जो लगातार भीतर बकवास करता हुआ मन है यह तुम्हें किसी प्रसन्नता, किसी आनंद को अनुभव नहीं करने देता, क्योंकि केवल एक मौन चित्त ही भीतर देख सकता है, केवल एक मौन चित्त ही उस आनंद को स्पर्श कर सकता है जो भीतर उमड़ रहा है। आनंद का यह स्रोत इतना सूक्ष्म है कि मन के शोरगुल के बीच तुम उसे नहीं सुन सकते।

जितना तुम मौन होते ही, उतना ही पाते हो कि आनंद का स्रोत तुम्हारे भीतर है। फिर तुम बाहर कहीं प्रसन्नता को खोजने नहीं जाते। तुम अकारण प्रसन्न होते हो।

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