संकलन एवम् प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द
एक दिन राह से गुजरते हुए एक राजा को एक भिखारी दिखायी दिया। राजा ने तुरंत पहचान लिया कि वह भिखारी तो उसका मित्र था। दोनो ने साथ-साथ पढ़ाई की थी। यह भिखारी कैसे बन गया?
राजा उसे अपने साथ अपने महल ले आया। वहां उसकी अच्छी आवभगत की गयी, खाने को अच्छा भोजन दिया गया-राजा ने स्वयं उसे भोजन परोसा। इतने दिनों बाद अच्छा भोजन मिला था, सो भिखारी ने जमकर खाया, और उसे जल्दी ही नींद आ गयी।
राजा को उस पर बहुत दया आयी। वह अपने खजाने से एक बड़ा सा हीरा लाया और उसने चुपचाप वह हीरा सोते हुए मित्र की जेब में रख दिया।
सुबह जब भिखारी की नींद टूटी तो उसने राजा से विदा मांगी और खुशी खुशी वह महल से विदा हुआ। राजा ने उसे हीरा के विषय में कुछ भी नहीं बताया ताकि उसके आत्मसम्मान को कोई ठेस न पहुंचे। उसने सोचा कि जब वह अपनी जेब में हाथ डालकर देखेगा तो उसे स्वयं ही हीरा मिल जायेगा। फिर उसे कभी भीख मांगने की जरूरत न रह जायेगी।
तीन दिन के बाद जब राजा फिर उसी राह से गुजरा तो उसने देखा कि उसका मित्र फिर से बाजार में खड़ा भीख मांग रहा था। वह उसके पास गया और बोला, ‘तुम अभी भी भीख मांग रहे हो? अब भीख मांगने की क्या जरूरत है?
भिखारी बोला, ‘तो फिर मैं क्या करूं? एक दिन महल की विलासिता भोग लेने से मेरा पूरा जीवन तो नहीं चल जायेगा। जीने के लिये मुझे भीख तो मांगनी ही पड़ेगी।’
राजा बोला, ‘मैंने तो तुम्हारी जेब में एक हीरा रख दिया था, उसका क्या हुआ?’
भिखारी ने तब अपनी जेब टटोली तो उसे हीरे का पता चला। तीन दिन से उसने अपनी जेब में हाथ ही नहीं डाला था क्योंकि वह जानता था कि जेब में कुछ है ही नहीं। तो, जबकि वह एक समृद्ध जीवन जी सकता था, लेकिन अभी भी भीख ही मांग रहा था।
सबकी हालत ऐसी ही है। तुमने कभी उस हीरे को तलाशने की कोशिश ही नहीं की है जो तुम अपने साथ लाये थे। तुमने कभी अपने भीतर नहीं झांका है।
इस संसार में सुखी होने का केवल एक ही उपाय है कि तुम सुख मांगने के लिये किसीके पास न जाओ। सुख दूसरों के पास नहीं है, तुम्हारे भीतर है। दूसरों से सुख की भीख मांगना बंद कर दो। एक दिन अचानक तुम पाओगे कि चूंकि तुमने भीख मांगने की आदत छोड़ दी है, तुम्हारे भीतर से जैसे कोई चट्टान हट गयी है और तुम्हारे पूरे प्राणों को प्रफुल्लता से भिगोता एक झरना फूट निकला है।
