संकलन एवम् प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द
तिब्बती सदगुरु मारपा से एक बार पूछा गया, ‘मृत्यु के बाद आप कहां जायेंगे-स्वर्ग में, या नर्क में?’ मारपा का उत्तर था, ‘मैं तो निश्चित ही पद्मालय जाउंगा, कमल-स्वर्ग जाउंगा।’
प्रश्नकर्ता ने पूछा, ‘आप इतने निश्चित होकर यह कैसे कह सकते हैं? न तो अभी आपकी मृत्यु हुई है, न ही आपको पता है कि ईश्वर के मन में क्या है।
मारपा बोले, ‘मुझे ईश्वर के मन में क्या है, इसकी कोई चिंता नहीं है। अपने मन की वह जाने। मैं अपने कमल-स्वर्ग में जाने को लेकर निश्चित हूं, क्योंकि मैं अपने मन को जानता हूँ। मैं जहां भी जाउंगा, मैं प्रफुल्लित ही रहूंगा, और वहीं स्वर्ग होगा। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मुझे नर्क में डाला जाता है या स्वर्ग भेजा जाता है- वह बात ही मेरे लिये बेमानी है। मैं जहाँ भी जाता है, मैं अपना कमल-स्वर्ग अपने साथ लेकर चलता हूँ।’
न तो दुख का कोई कारण है और न ही सुख का कोई कारण है। सबकुछ तुम्हारे दृष्टिकोण पर निर्भर है। यदि तुम प्रफुल्लित रहना चाहते हो, तो कोई भी परिस्थिति हो, इससे फर्क नहीं पड़ता। प्रफुल्लित होना एक योग्यता है, किसी भी परिस्थिति के बावजूद तुम प्रफुल्लित हो सकते हो। लेकिन तुमने दुखी होने की ही ठान ली हो, फिर कोई भी परिस्थिति हो तुम दुखी ही रहोगे। फिर तुम्हारा स्वर्ग में भी स्वागत किया जाए तो तुम दुखी रहोगे।
प्रफुल्लित होने के लिये कोई कारण नहीं चाहिये, इतना पर्याप्त है कि तुम जीवित हो। यह दृष्टिकोण कि जब मेरे पास यह होगा या वह होगा, तब मैं प्रसन्न होउंगा- तो फिर तुम हमेशा दुखी ही रहोगे। प्रतिभावान वह है जो यह समझ ले कि जो भी है, उसमें प्रफुल्लित हुआ जा सकता है।
