संकलन एवम् प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द
राजा का एक सूफी सलाकार था। दरबार में किसी साजिश के कारण से राजा उससे नाराज हो गया। उस दिन उस सूफी का जन्मदिन था। वह अपने मित्रों के साथ अपने जन्मदिन का उत्सव मना रहा था। अचानक, दोपहर में, राजा का हरकारा आया और बोला, ‘राजा ने यह तय किया है आज की शाम ठीक छह बजे, आपको फांसी दे दी जायेगी। तो छह बजे तैयार रहें।’
मित्र थे, संगीत था, वे गा रहे थे, खा रहे थे और नाच रहे थे। इस संदेश ने सारे माहौल को बदल कर रख दिया। वे उदास हो गये। पर सूफी बोला, ‘अब उदास मत होओ, क्योंकि यह मेरे जीवन का आखरी उत्सव होगा। तो नृत्य को पूरा होने दो। अब इसे रोकने का समय नहीं है।’
वे सभी उत्सव मनाने लगे। हरकारा वापस राजा के पास गया और सारी बात बताई।
राजा खुद वहां आया कि वो हो क्या रहा है। सूफी नाच रहा था, गा रहा था। राजा ने पूछा, ‘तुम क्या कर रहे हो?’
वह बोला, ‘यह मेरे जीवन का दर्शन रहा है: मृत्यु किसी भी पल आ सकती है। इस सोच के कारण मैंने हर पल को जितना पूर्णता से जिया जा सकता है, उतना जीया। पर, आज तक मैं सिर्फ सोचता था कि किसी भी पल मौत हो सकती है। यह विचार मात्र था। पर आपने भविष्य को पूरी तरह से गिरा दिया। यह शाम आखरी शाम है। जीवन अब बहुत अल्प मात्र रह गया, अब मैं स्थगित नहीं कर सकता।’
राजा ने उससे कहा ‘कृपया मुझे भी सिखायें कि जीवन को इस प्रकार कैसे जिया जा सकता है, और राजा उसका शिष्य बन गया।
हम हर चीज को स्थगित किये चले जाते हैं। हम हमेशा कल में जीते हैं जो कभी नहीं आता और जो आ नहीं सकता, यह असंभव है। हर क्षण को पूर्ण कर लो। हर क्षण को यूं जीयो जैसे अगला क्षण हो ही नहीं। यदि तुम क्षण में जीना सीख जाओ तो जीवन एक उत्सव बन जाये, आनंद बन जाये।
