संकलन एवम् प्रस्तुति मक्सिम आनन्द
एक बूढ़ा था, जो संसार के सबसे अप्रसन्न लोगों में से एक था। पूरा गांव उससे थक चुका था क्योंकि वह हमेशा ही गुस्से में और शिकायत से भरा रहता था, हमेशा उसका मूड खराब रहता और वह कड़वाहट से भरा रहता। जैसे-जैसे उसकी उम्र बढ़ती जा रही थी, उतनी ही उसकी कड़वाहट भी बढ़ती जा रही थी, उसकी बातों में उतना ही जहर घुलता जा रहा था। लोग उससे बचते थे क्योंकि वह इतना अप्रसन्न रहता था कि उसकी अप्रसन्नता संक्रामक हो चली थी। उसके आस-पास कोई प्रसन्न हो तो वह चिढ़ जाता। वह दूसरों में भी अप्रसन्नता पैदा कर देता।
लेकिन एक दिन, उसके अस्सीवें जन्म दिन पर, पूरा गांव विश्वास ही नहीं कर पाया-गांव में यह बात आग की तरह फैल गयीः आज वह बूढ़ा प्रसन्न है, कोई शिकायत नहीं कर रहा। यहां तक कि वह मुस्कुरा भी रहा है, उसका पूरा चेहरा बदल गया है।
पूरा गांव इकट्ठा होकर उसके पास पहुंचा और सबने उससे पूछा, ‘आज आपकी प्रसन्नता का क्या राज है? क्या हुआ है आपको?’ बूढ़ा बोला, ‘कुछ नहीं हुआ। अस्सी सालों तक मैंने प्रसन्न होने की कोशिश की और नहीं हो पाया -तो आज मैंने यह निर्णय लिया कि प्रसन्नता के बिना ही जी लूंगा। मैंने प्रसन्न होने के सब प्रयास किये पर नहीं हो पाया तो मैने आज कहा कि अब बहुत हुआ, अस्सी साल बेकार चले गये, अब मैं प्रसन्नता के बिना ही जी लूगा। इसीलिये मैं प्रसन्न हूं।’
पूरे संसार में यही हो रहा है। हर कोई प्रसन्न होने की कोशिश कर रहा है। तुम जितनी कोशिश करते हो, उतने ही अप्रसन्न होते चले जाते हो।
अप्रसन्नता को, दुख को स्वीकार कर लो और अचानक तुम प्रसन्न हो जाते हो, क्योंकि अब प्रयास न रहा, तुम विश्रांत हो गये।
