देह में चैतन्य का दीया जल रहा है, जरा इस चैतन्य के दीये का मूल्य तो आंको..,जैसे आंखों का मूल्य…

संकलन एवम् प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द

एक आदमी मरने जा रहा था। जिस नदी के किनारे वह मरने गया, एक सूफी फकीर बैठा हुआ था। उसने कहा, ‘क्या कर रहे हो?’ वह कूदने को ही था, उसने कहा: ‘अब रोको मत, बहुत हो गया। जिंदगी में कुछ भी नहीं, सब बेकार है। जो चाहा, नहीं मिला। जो नहीं चाहा, वही मिला। परमात्मा मेरे खिलाफ है। तो मैं भी क्यों स्वीकार करू यह जीवन?’ उस फकीर ने कहा, ‘ऐसा करो, एक दिन के लिए रुक जाओ, फिर मर जाना। इतनी जल्दी क्या? तुम कहते हो, तुम्हारे पास क्या कुछ भी नहीं?’ उसने कहा, ‘कुछ भी नहीं। कुछ होता तो मरने हि क्यों आला?’ उस फकीर ने कहा, ‘तुम मेरे साथ आओ। इस गांव का राजा मेरा मित्र है। फकीर उसे ले गया। उसने सम्राट के कान में कुछ कहा। सम्राट ने कहा, ‘एक लाख रुपये दूंगा। उस आदमी ने इतना ही सुना, फकीर ने क्या कहा कान में, वह नहीं सुना। सम्राट ने कहा, ‘एक लाख रुपये दूंगा।’ फकीर आया और उस आदमी के कान में बोला कि सम्राट तुम्हारी दोनों आँखें एक लाख रुपये में खरीदने को तैयार है। बेचते हो?

उसने कहा, ‘क्या मतलब? आंख, और बेच दें। लाख रुपये में। दस लाख दे तो भी नहीं देने वाला।’

तो वह सम्राट के पास फिर गया। उसने कहा, ‘अच्छा ग्यारह लाख देंगे।’ उस आदमी ने कहा, ‘छोड़ो भी, यह धंधा करना ही नहीं। आंख बेचेंगे क्यों?

फकीर ने कहा, ‘कान बेचोगे? नाक बेचोगे? यह सम्राट हर चीज खरीदने को तैयार है। और जो दाम मांगो देने को तैयार है।’

उसने कहा, ‘नहीं, यह धंधा हमें करना ही नहीं, बेचेंगे क्यों?

उस फकीर ने कहा, ‘जरा देख, आंख तू ग्यारह लाख में भी बेचने को तैयार नहीं, और रात तू मरने जा रहा था और कह रहा था कि मेरे पास कुछ भी नहीं है।’ जो मिला है वह हमें दिखायी नहीं पड़ता। जरा इन आंखों का तो खयाल करो, यह कैसा चमत्कार है। ये कान सुन पाते संगीत को, पक्षियों के कलरव को, हवाओं के मरमर को, सागर के शोर को! तुम हो, यह इतना बड़ा
चमत्कार है कि इससे बड़ा और कोई चमत्कार क्या तुम सोच सकते हो। इस हड्डी, मांस-मज्जा की देह में चैतन्य का दीया जल रहा है, जरा इस चैतन्य के दीये का मूल्य तो आंको !

फिर भी तुम परेशान हो। फिर भी तुम उदास हो। जरा तुम देख सको कि कितना तुम्हें मिला है तो उदासी जाती रहे और आनंद बरस पड़े।

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