संकलन एवम प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द
मैंने सुना है, चीन में एक बौद्ध भिक्षुणी थी। बुद्ध से उसका बड़ा प्रेम था, ऐसा वह समझती थी। उसने अपनी सारी संपत्ति बेच कर बुद्ध की एक स्वर्ण-प्रतिमा बना ली थी। और रोज बुद्ध की उस स्वर्ण-प्रतिमा की वह पूजा करती थी। एक ही मुश्किल थी। ऊदबत्तियां जलाती-अब धुएं का क्या भरोसा ? कभी बुद्ध की यात्रा भी करता और कभी बुद्ध के विपरीत भी चला जाता। धूप जलाती-अब धुएं का क्या भरोसा ? और धुएं को क्या मतलब ? जहां हवाएं ले जातीं, चला जाता। वह बड़ी परेशान थीं। और परेशानी और बढ़ गई, क्योंकि वह जिस विशाल मंदिर में ठहरी हुई थी… संभवतः वह दुनिया का सबसे बड़ा विशाल मंदिर है अब भी शेष। न मालूम कितनी सदियां लगी होंगी उस मंदिर को बनाने में। एक पूरा पहाड़ खोद कर वह मंदिर बनाया गया है। उसमें एक हजार बुद्ध की प्रतिमाएं हैं। वह एक हजार बुद्धों का मंदिर कहलाता है। और एक से एक प्रतिमा सुंदर हैं। इस भिक्षुणी की मुसीबत यह थी कि यह अपने बुद्ध को धूप देती, ऊदबत्ती जलाती, फूल चढ़ाती… और दूसरे बुद्ध बेईमान मजा लेते। यह असह्य था। इसे वह प्रेम समझती थी। बहुत सोचा, क्या करें ? तब उसने एक बांस की पोंगरी बना ली। और जब धूप को जलाती तो बांस की पोंगरी से उसके धुएं को अपने बुद्ध की नाक तक ले जाती।
अब गरीब बुद्ध, सोने के बुद्ध कुछ कह भी नहीं सकते कि यह तू क्या कर रही है, पागल ! बुद्ध की नाक, उनकी आंख, उनका मुंह सब काला हो गया। तब वह बहुत घबड़ाई। वह मंदिर के पुजारी के पास गई और उसने कहा कि मैं क्या करूं, मैं बड़ी मुश्किल में पड़ी हूं। अगर बांस की पोंगरी का उपयोग नहीं करती तो मेरी धूप मेरे बुद्ध को नहीं पहुंचती, मेरी सुगंध मेरे बुद्ध को नहीं पहुंचती । और दूसरे बेईमान बुद्धों की ऐसी
भीड़ है, एक हजार बुद्ध चारों तरफ मौजूद हैं कि कब कौन खींच लेता है उस सुगंध को, मेरी समझ में नहीं आता। सो मुझ गरीब औरत ने यह पोंगरी बना ली। अब इस पोंगरी से एक नई उपद्रव की स्थिति गई। बुद्ध का मुंह काला हो गया।
उस पुजारी ने कहा : तूने जो किया है, वही दुनिया में हो रहा है। हर प्रेमी, जिसको प्रेम करता है, उसका मुंह काला कर देता है। इसको लोग प्रेम कहते हैं। कहीं मेरी सुगंध, कहीं मेरा प्रेम किसी और के पास न पहुंच जाए। तो सबने अपने-अपने ढंग से बांस की पोंगरियां बना ली हैं। हिंदू हिंदू से विवाह करेगा, मुसलमान मुसलमान से विवाह करेगा। और विवाह कर लेने के बाद भी कुछ पक्का नहीं है, दुनिया बड़ी है और हजारों बुद्ध, तरह-तरह के बेईमान घूम रहे हैं, तो सब द्वार-दरवाजे बंद रखेगा। चाहे जिसको प्रेम करता है, उसकी सांसें घुट रही हैं। चाहे उसके साथ-साथ उसकी खुद की घुट जाएं। और घर-घर में सांसें घुट रही हैं। मैं हजारों घरों में मेहमान हुआ हूं और मैंने घर-घर में सांसें घुटती देखी हैं। पत्नी रो रही है इसलिए कि उसने उस आदमी से शादी की जिसमे प्रेम किया।
प्रेम एक सद्भाव है इस सारे अस्तित्व के प्रति । प्रेम एक करुणा है, जिसके ऊपर कोई पता नहीं। प्रेम एक आनंद है-जैसे फूल खिलता है और उसकी बास चारों दिशाओं में बिखर जाती है, नहीं खोजती किन्हीं नासापुटों को।
