संकलन एवम प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द
एक बहुत अद्भुत आदमी था, वह चोरों का गुरु था, सच तो यह है कि चोरों के अतिरिक्त और किसी का कोई गुरु होता ही नहीं, चोरी सीखने के लिए गुरु की बड़ी जरूरत है तो जहां जहां चोरी वहां वहां गुरु, जहां जहां गुरु वहां वहां चोरी, चोरों का गुरु था, मास्टर थीफ था, उतना जितना कुशल कोई चोर नहीं था, कुशलता थी, वो तो एक टेकनिक था, एक शिल्प था, जब बूढ़ा हो गया तो उसके लड़के ने कहा कि मुझे भी सिखा दे, उसके गुरु ने कहा, ये बड़ी कठिन बात है, पिता ने चोरी करनी बंद कर दी थी, उसने कहा ये बहुत कठिन बात है, फिर मैंने चोरी करनी बंद कर दी, क्योंकि चोरी में कुछ ऐसी घटनाए घटी, जिनके कारण मैं ही बदल गया, उसके लड़के ने पूछा, कौन सी घटना? उसने कहा, कुछ ऐसे खतरे आए, उन खतरों में इतना जाग गया, जागने की वजह से चोरी मुश्किल हो गई, और जागने की वजह से उस संपत्ति का ख्याल आया जो सोने के कारण दिखाई नहीं पड़ती थी। अब मैं एक दूसरी ही चोरी में लग गया हूँ । अब मैं परमात्मा की चोरी कर रहा हूँ। पहले आदमियों की चोरी करता रहा, लेकिन मैं तुम्हें कोशिश करूंगा शायद तुम्हें भी ये हो जाये चाहता तो यही ही हूँ की तुम आदमियों के चोर मत बनो परमात्मा के ही चोर बनो लेकिन , शुरुवात आदमियों की चोरी से कर देने में भी कोई हर्जा नहीं है।
ऐसे हर आदमी ही आदमी की ही चोरी से शुरुआत करता है, हर आदमी के हाथ दूसरे आदमी की जेब में पड़े होते हैं, जमीन पर दो ही तरह के चोर है, आदमियों से चुराने वाले और परमात्मा से चुरा लेने वाले, परमात्मा से चुरा लेने वाले तो बहुत कम है, जिनके हाथ परमात्मा की जेब में चले जाए, लेकिन आदमियों की तो हाथ में सारे लोग एक दूसरे की जेब में डाले ही रहते है, और खुद के दोनों हाथ दूसरे की जेब में डाल देते हैं तो दूसरों के तो उनकी जेब में हाथ डालने की सुविधा हो जाती है, स्वाभाविक क्योंकि, जेब में हाथ डालने की सुविधा हो जाती है, अपनी जेब की रक्षा करें तो दूसरे की जेब से निकाल नहीं सकते, दूसरे की जेब से निकाले तो अपनी जेब असुरक्षित छूट जाती है, उसमें से दूसरे निकालते हैं, एक म्यूचुअल, एक पारस्परिक चोरी सारी दुनिया में चल रही।
उसने कहा कि लेकिन चाहता हूं कि, कभी तुम परमात्मा के चोर बन सको, तुम्हें मैं ले चलूंगा दूसरे दिन वो अपने युवा लड़के को लेकर राज महल में चोरी के लिए गया, उसने जाके आहिस्ता से दीवार की ईंट सरकाई, लड़का थरथर कांप रहा है, खड़ा हुआ, आधी रात है, राज महल है, संतरी द्वारों पर खड़े हैं और वो इतनी शांति से ईंट निकाल के रख रहा है कि जैसे अपना घर हो, लड़का थरथर कांप रहा है, लेकिन बूढ़े बाप के बूढ़े हाथ बड़े कुशल है, उसने आहिस्ता से ईंटे निकाल के रख दी, उसने लड़के से कहा, कांप मत, साहूकारों को कंपना शोभा देता है, चोरों को नहीं, यह काम नहीं चल सकेगा, अगर कंपोगे तो क्या चोरी करोगे, कंपन बंद करो।
देखो मेरे बूढ़े हाथ भी कंपते नहीं, सेंध लगा के बूढ़ा बाप भीतर हुआ, उसके पीछे उसने अपने लड़के को भी बुलाया, वे महल के अंदर पहुंच गए, उसने कई ताले खोले और महल के बीच के कक्ष में भी पहुंच गए, कक्ष में एक बहुत बड़ी बहुमूल कपड़ों की अलमारी थी। अलमारी को बूढ़े ने खोला, लड़के से कहा भीतर घुस जाओ और जो भी कीमती कपड़े हो बाहर निकाल लो, लड़का भीतर गया, बूढ़े बाप ने दरवाजा बंद करके ताला बंद कर दिया, जोर से सामान पटका और चिल्लाया, चोर. और सेंध से निकल के घर के बाहर हो गए, सारा महल जग गया और लड़के के प्राण।
आप सोच सकते हैं किस स्थिति में नहीं पहुंच गया हो, यह कल्पना भी ना की थी कि बाप ऐसा दुष्ट हो सकता है, लेकिन सिखाते समय सभी मां-बाप को दुष्ट शायद होना पड़ता है, लेकिन एक बात हो गई, ताला बंद कर गया है बाप, कोई उपाय नहीं छोड़ गया बचने का. चिल्ला गया है. महल के संतरी जाग गए. नौकर- चाकर भाग गए हैं, प्रकाश जल गए हैं, लालटने घूमने लगे है, चोर की खोज हो रही, चोर जरूर मकान के भीतर है, दरवाजे खुले पड़े हैं, दीवार में छेद है, फिर एक नौकरानी, मोमबत्ती लिए हुए उस कमरे में भी आ गई है, जहां वो बंद है और उसे अगर वह लोग ना भी देख पाए तो भी फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि वो बंद है और निकल नहीं सकता, दरवाजे पर ताला है बाहर, लेकिन कुछ हुआ, अगर आप उस जगह होते तो क्या होता, आज रात सोचते वक्त, सोते वक्त जरा ख्याल करना, उस जगह अगर मैं होता, उस लड़के की जगह तो क्या होता, क्या उस वक्त आप विचार कर सकते थे, विचार करने की कोई गुंजाइश ही नहीं थी।
उस वक्त आप क्या सोचते, सोचने का कोई मौका नहीं था, उस वक्त आप क्या करते? कुछ भी करने का उपाय नहीं था, द्वार बंद बाहर ताला लगा हुआ है, संतरी अंदर घुसाए हैं, नौकर भीतर खड़े हैं, घर में खोजबीन की जा रही, आप क्या करते, उस लड़के के पास करने को कुछ भी नहीं था, ना करने के कारण वो बिल्कुल शांत हो गया, उस लड़के के पास सोचने को कुछ नहीं था, सोचने का कोई जगह नहीं थी, गुंजाइश नहीं थी, सो जाने का मौका नहीं था, क्यूकि ख़तरा बहुत बड़ा था ज़िंदगी मुश्किल में थी। वो एकदम अलर्ट हो गया। ऐसी अलर्टनेस, ऐसी सचेत्ता, ऐसी सावधानी उसने जीवन में कभी देखी नहीं थी। ऐसे ख़तरे को ही नहीं देखा था और उस सावधानी में कुछ होना शुरू हुआ उस सचेतना के कारण कुछ होना शुरू जो वो नहीं कर रहा था। लेकिन , हुआ उसने कुछ अपने नाखून से दरवाज़ा खरोंचा नौकरानी पास से निकलती थी उसने सोचा शायद चूहा या कोई बिल्ली कपड़ों की अलमारी में अंदर है, उसने ताला खोला मौमबत्ती लेकर भीतर झांका उस युवक ने मौमबत्ती बुझा दी। बुझाई ये कहना केवल भाषा की बात है । मौमबत्ती बुझा दी गई क्यूकि, युवक ने सोचा नहीं था कि मैं मौमबत्ती बुझा दूं। युवक शांत खड़ा था सचेत । मोमबत्ती बुझा दी नौकरानी को धक्का दिया अंधेरा था भागा, नौकर उसके पीछे भागे , दीवार से बाहर निकला , जितनी ताक़त से भाग सकता था भाग रहा था । भाग रहा था कहना ग़लत है क्यूकि , भागने का कोई उपक्रम, कोई चेष्ठा , कोई एफर्ट वो नहीं कर रहा था बस पा रहा था कि मैं भाग रहा हूँ और फिर पीछे लोग लगे थे । वो एक कुएँ के पास पहुँचा उसने एक पत्थर को उठा के कुंए में पटका नौकरों ने कुएं को घेर लिया, वे समझे कि चोर कुएं में कूद गया है।
वह एक दरख्त के पीछे खड़ा, फिर आहिस्ता से अपने घर पहुंचा, जाके देखा, उसका पिता कंबल ओड़े सो रहा था, उसने कंबल झटके से खोला और कहा कि आप यहां सो रहे मुझे मुश्किल में फंसा के, उसने कहा बात मत करो, तुम आ गए, बात खत्म हो गई।
कैसे आए तुम खुद ही सोच लेना, कैसे आए तुम वापस ? उसने कहा, मुझे पता नहीं कि मैं कैसे आया हूं, लेकिन कुछ बातें घटी, मैंने जिंदगी में ऐसी अलर्टनेस, ऐसी ताजगी, ऐसा होश कभी देखा नहीं था और आउट ऑफ दैट अलर्टनेस, उस सचेतता के भीतर से फिर कुछ होना शुरू हुआ, जिसको मैं नहीं कह सकता कि मैंने किया, मैं बाहर आ गया हूं, उस बूढ़े ने कहा, अब दोबारा भीतर जाने का इरादा है, उस युवक ने कहा, उस सचेतना में, उस अवेयरनेस में, जिस आनंद का अनुभव हुआ है, अब मैं चाहता हूं मैं भी परमात्मा का चोर हो जाऊं, अब आदमियों की संपदा में मुझे भी कोई रस नहीं है।
