बुद्ध ने पहली दफा वह स्टेटमेंट दे दिया जो बहुत सीक्रेट था, जो कहा नहीं गया था।

संकलन एवम प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द

जापान में एक फकीर हुआ है लिंची। लिची ने एक दिन सुबह घोषणा की कि हटाओ यह बुद्ध की मूर्तियां वगैरह। यह आदमी कभी हुआ नहीं। अभी उसने बुद्ध की मूर्ति की पूजा की है, अभी उसने कहा हटाओ यहां से यह आदमी कभी हुआ नहीं, यह सरासर झूठ है। तो किसी ने खड़े होकर कहा, आप क्या कह रहे हैं, आपका मस्तिष्क तो दुरुस्त है ? लिची ने कहा, जब तक मैं सोचता था कि मैं हूं, तब तक मैं मान सकता था कि बुद्ध हैं। लेकिन जब मैं ही नहीं हूं, हवा का बबूला है, तो यह आदमी कभी हुआ नहीं ।

सांझ फिर पूजा कर रहा था वह बुद्ध की, तो लोगों ने कहा, यह क्या कर रहे हो ? तुम दोपहर तो कह रहे थे कि यह नहीं हुआ। उसने कहा, लेकिन इसके न होने से मुझे भी न होने में सहायता मिली, तो धन्यवाद मैं दे रहा हूं। लेकिन एक बबूले का एक बबूले को धन्यवाद है, इसमें और कुछ ज्यादा बात नहीं है। लेकिन ये वक्तव्य समझे नहीं जा सकते । लोगों ने समझा कि यह आदमी कुछ गड़बड़ हो गया है। यह तो बुद्ध के खिलाफ हो गया ।

आत्म-कथ्य बचता नहीं । बहुत गहरे में समझो तो आत्मा भी बचती नहीं। आमतौर से यहां तक तो हम समझ पाते हैं कि अहंकार नहीं बचता, क्योंकि हमसे हजारों साल से यह कहा जा रहा है। और कोई वजह नहीं है। हजारों साल से कहा जा रहा है कि अहंकार नहीं बचता तो हम समझ लेते हैं – वर्बली हमको समझ में आ जाता है कि ज्ञान की स्थिति में अहंकार नहीं बचता । लेकिन अगर ठीक से समझना चाहो तो आत्मा भी नहीं बचती । पर यह समझने में बहुत घबराहट होती है।

इसलिए तो बुद्ध को हम नहीं समझ पाए। उन्होंने कहा कि आत्मा भी नहीं बचती, अनात्म हो जाते हैं। बहुत कठिन पड़ गया। इस पृथ्वी पर बुद्ध को समझना अब तक सर्वाधिक कठिन पड़ा। क्योंकि महावीर अहंकार तक की बात करते हैं; कि अहंकार नहीं बचता । वहां तक हम समझ सकते हैं। ऐसा नहीं कि महावीर को पता नहीं है कि आत्मा भी नहीं बचती है। लेकिन हमारी समझ को ध्यान में रखे हुए हैं कि ठीक है, अहंकार तो छोड़ो, फिर आत्मा तो अपने से छूट जाती है। कोई अड़चन नहीं है उसको कहने की । लेकिन बुद्ध ने पहली दफा वह स्टेटमेंट दे दिया जो बहुत दिन तक सीक्रेट था, जो कहा नहीं गया था।

उपनिषद् भी जानते हैं और महावीर भी जानते हैं कि आत्मा नहीं बचती है। क्योंकि आत्मा का खयाल भी अहंकार का ही सूक्ष्म रूप है। लेकिन बुद्ध ने एक सीक्रेट, जो सदा से सीक्रेट था, कह दिया कि आत्मा नहीं बचती । मुश्किल पड़ गयी। वही लोग जो मानते थे कि अहंकार नहीं बचता, वही लड़ने खड़े हो गए। आप बुद्ध की अड़चन समझते हैं ? जो लोग मानते थे कि अहंकार नहीं बचता वे ही लड़ने खड़े हो गए कि आप यह क्या कह रहे हैं ? आत्मा नहीं बचती तो सब बेकार है। जब हम ही नहीं बचते तो फिर क्या करना है !

बुद्ध ने ठीक कहा। फिर कैसी आत्मकथा होगी ? फिर कोई आत्मकथा नहीं हो सकती । सब सपने जैसा है, बबूले का देखा हुआ सपना है, बबूले पर बने हुए रंग-बिरंगे किरण के जाल हैं। बबूले के साथ सब खो जाते हैं। ऐसा जब दिखायी पड़ता हो तो बड़ी कठिनाई होती है। बड़ी कठिनाई होती है ऐसी जब बिलकुल ही स्पष्ट स्थिति हो तो बहुत कठिनाई हो जाती है।

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