(30 मई विश्व पत्रकारिता दिवस पर विशेष) लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का इतिहास एवं भागीदारी पर सवाल ?

(लेखक प्रोफे. के० मुरारी दास लोक असर के सलाहकार मंडल के सदस्य हैं)

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ है सूचना देने का अधिकार. यह एक अंतहीन प्रक्रिया है. चाहे इसका संदर्भ या परिस्थितियों कुछ भी हो. इस सूचना तकनीक ने न सिर्फ हमारा जीवन शैली में बदलाव लाया है, बल्कि इसने हमारी कला, साहित्य,संस्कृति,इतिहास व परंपरा को भी प्रभावित किया है. यही नहीं इस सूचना तकनीक ने हमारी अर्थव्यवस्था को भी जबरदस्त परिवर्तित किया है. सूचना तकनीक के इस भौतिक माध्यमों में आज पत्रकारिता,फिल्म, टी.वी.,वेब सीरीज और मोबाइल जैसे अनेक माध्यम भी शामिल है.पर इन प्रचार माध्यमों में मिशन मीडिया कम और व्यवसायिकता कहीं अधिक नजर आती है. थॉमस कार्लाईल पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने मीडिया को सर्वप्रथम चौथे स्तंभ की संज्ञा दी थी, जिसे बाद के लेखकों ने न सिर्फ समर्थन किया,बल्कि इससे मीडिया को चौथे स्तंभ के रूप में मान्यता भी मिली.

*पत्रकारिता का इतिहास (History of Journlism )*– विश्व में पत्रकारिता का प्रारंभ 131 ईसा पूर्व का मिलता है. जहां रोम में एक्टा डायुर्ना (दिन की घटनाएं) नामक दैनिक समाचार निकलने का जिक्र मिलता है. वस्तुतः यह एक लोहे या पत्थर का प्लेट नुमा आकार होता था, जिसमें शहर की घटनाएं लिखकर सार्वजनिक चौक चौराहे पर रख दिया जाता था, जिसे आते-जाते लोग पढ़ा करते थे 15वीं शताब्दी के मध्य में योहन गुटनबर्ग ने छापा मशीन का आविष्कार किया. पर समाचार पत्र पत्रिकाओं और किताबों का असली प्रकाशन 16वीं शताब्दी में ही संभव हो सका. सन 1605 में जर्मन भाषा में प्रकाशित *रिलेशन एलर फर्नमेन एंड गेडेन कुवुरडिजेन हिस्टोरियन* को विश्व का प्रथम समाचार पत्र माना जाता है.

भारत में पत्रकारिता की शुरुआत ( Beginning of journalism in India ) – लेकिन भारत में किसी भी प्रकार की पत्रकारिता की शुरुआत अंग्रेजों के आगमन पश्चात होता है. ब्रिटिश भारत की राजधानी व भारत की आर्थिक राजधानी तथा अब पश्चिम बंगाल की वर्तमान राजधानी कोलकाता भारतीय और विदेशी समाचार पत्रों का उद्गम स्थल रहा है. 29 जनवरी सन 1780 को देश का पहला सप्ताहिक समाचार पत्र बंगाल गजट था जो 67, राधा बाजार कोलकाता से प्रकाशित होता था. तथा इसका अंतिम प्रकाशन 30 मार्च 1782 को हुआ. भारत में इस अखबार को छापने का निर्णय 2 साल पूर्व ही डच एडवेंचर विलियम बोल्ट्स ने रखा था, लेकिन इस अवधारणा को क्रियान्वित करने वाले आईरिस व्यक्ति थे जेम्स अगस्टाइन हिक्की. जिन्होंने यह सपना साकार किया. बताते चलें कि यह अखबार प्रति शनिवार छपता था तथा इसका कीमत ₹1 हुआ करता था बाद में यह अखबार 17 नवंबर 1780 को कोलकाता जनरल एडवाइजर में परिवर्तित हुआ. उस समय इस अखबार की प्रसार संख्या 400 से अधिक था जो अपने ही सरकार के खिलाफ लिखते थे. यह तो आंग्ल भाषा में प्रकाशित देश के प्रथम अखबार की बात हुई.
पर किसी भी भारतीय भाषाओं में भारत से प्रकाशित समाचार पत्रों में बांग्ला भाषा में राजा राममोहन राय द्वारा 19वीं सदी के पूर्वार्ध में प्रकाशित सुधारवादी समाचार पत्र संवाद कौमुदी का स्थान आता है . जो 1821 में प्रकाशित हुआ .बाद में यह समाचार पत्र दैनिक में परिवर्तित हुआ. सन 1822 में राजा राममोहन राय ने पुनः एक पत्र निकाला मीरात-उल-अखबार जिसे हम समाचार दर्पण या Mirror of news के नाम से जानते हैं यह फारसी भाषा में लिखा अखबार था. इसका जिक्र इसलिए भी जरूरी होता है कि इसका प्रकाशन किसी भारतीय ने किया था. इसी साल दो और अखबारों का प्रकाशन होता है- एक था फारसी अखबार जिसका प्रकाशन फरदूनजी मजबान द्वारा बांबे समाचार . जिसे एशिया का प्रथम अखबार होने का श्रेय जाता है. जिसने 1 जुलाई 2022 को अपने प्रकाशन का 200 वां स्थापना दिवस मनाया. दूसरा अखबार था जाम-ए- जबनुमा यह भी देश का प्रथम उर्दू अखबार था जिसकी स्थापना 27 मार्च 18 22 को हरिहर दत्त द्वारा कोलकाता से किया गया था. यह पत्र लाल सदा सुखलाल के संपादन से शुरू किया गया था .इसके मुद्रक ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्मचारी और ब्रिटिश नागरिक विलियन हापकींस द्वारा किया गया था. यह भी किसी गैर मुस्लिम द्वारा प्रकाशित एक भारतीय अखबार था जो बाद में दिल्ली से भी प्रकाशित होने लगा. इसके बाद स्थान आता है हिंदी समाचार पत्र का. जिसके बगैर भारत के हिंदी पत्रकारिता दिवस की सार्थकता अधूरी रहेगी .

भारत का पहला हिंदी समाचार पत्र (First Hindi news paper of India) – उदंत मार्तंड. जिसका अर्थ होता है उगता सूर्य या The Rising Sun . यह देश का प्रथम हिंदी समाचार पत्र है.जिसका प्रकाशन 30 मई 1826 को तत्कालीन कोलकाता के कालू टोला वर्तमान में यह (कैनिंग स्ट्रीट क्षेत्र कोलकाता के प्रसिद्ध बड़ा बाजार के पास) नामक मोहल्ले में 37 नंबर अमरतला गली के पास पंडित जुगल किशोर शुक्ल के संपादन में हुआ था. यह पत्र एक ऐसे समय में प्रकाशित हो रहा था,जब देशभर के हिंदी भाषी लोगों को इसकी आवश्यकता अनुभव होने लगी थी. यह अनेक विरोधाभासी एवं अंग्रेजी शासन के विरुद्ध आमजन की आवाज बनकर उठने का एक प्रयास था, किंतु अनेक कानूनी प्रकरणों, उलझनों तथा पर्याप्त पाठकों का सहयोग ना मिल पाने के कारण इस पत्र को 19 दिसंबर 1827 को बंद करना पड़ा.12×8 साइज का यह पत्र भी 500 प्रतियों के साथ प्रत्येक मंगलवार को छपा करता था. इस पत्र में ब्रज एवं खड़ी बोली दोनों का मिश्रित रूप प्रयोग किया जाता था. जिसे संचालक आम बोलचाल की भाषा में मध्यदेशीय भाषा कहते थे. पत्र के अंतिम अंक में संपादक की पीड़ा झलकती है उन्होंने लिखा-
आज दिवस लौ उग चुग्यों उदंत ,अस्ताचल को जात है दिनकर दिन अब अंत

इस प्रकार उदंत मार्तंड हिंदी पत्रकारिता की जननी के साथ मिल का पत्थर बन सका.

व्यवसायिकता की ओर अग्रसर आज की मीडिया (Today’s media is moving towards commercialism) –

 आरंभिक दौर में समाचार पत्रों का उदय मिशनरी भाव को लेकर हुआ था, किंतु आज उसमें व्यवसायिकता अधिक और मिशनरीज भावनाएं कम देखी जाती है. यही कारण है कि, आज समाचार जगत को उद्योगों का दर्जा प्राप्त है. यदि हम कुछ मामलों में यूनेस्को की रिपोर्ट पर नजर डालें तो आज की पत्रकारिता इस पर खरा उतरता है. यूनेस्को ने प्रति 100 व्यक्ति पर 10 अखबार, 5 रेडियो सेट, 2टी.वी. सेट और दो सिनेमा टिकट की आवश्यकता प्रतिपादित की है. इस दृष्टि से यह आज मजबूत जान पड़ता है. 

 इस समय पूरे भारत में डेढ़ लाख के आसपास पंजीकृत समाचार पत्र- पत्रिकाएं,व 1000 के आसपास सैटेलाइट टीवी चैनल हैं जो लोगों को उनकी आवश्यकता पूरी करने के लिए पर्याप्त है. मीडिया की यह क्रांतिकारी प्रगति आपके डाईनिंग रूम और बेडरूम से लेकर अब आपके पाकेट तक पहुंच चुका है .इतना सब कुछ प्रगति होने के बावजूद भी भारत के एक बहुत बड़े वर्ग मीडिया के नेतृत्व पदों परिवर्तन कहां पर हैं,और कितना है ? क्या मीडिया में भी इन पर भेदभाव होता है? एक सवाल उभरता है.आईए हम संक्षेप में इस पर चर्चा करने का प्रयास करते हैं . 

उदाहरण के लिए धर्मांतरण पर जिक्र तो समाचार पत्रों में होता है जिसमें अनुसूचित और पिछड़े वर्गों द्वारा इसाई और इस्लाम में परिवर्तन की यदा-कदा समाचार बनते बिगड़ते देखा गया है, पर हजारों और लाखों की संख्या में प्रतिवर्ष लोग बुद्धिस्म की ओर आकर्षित हो रहे हैं जिसका जिक्र मुख्य धारा की मीडिया में नहीं के बराबर होता है वही दलित उत्पीड़न की घटनाएं समाचारों की सुर्खियां बनते रहा है पर इन वर्गों की उपलब्धियां और प्रगति देश के समाचारों में प्रमुख खबर कभी नहीं रहा इसका मुख्य कारण मीडिया में इन वर्गों की उपस्थिति का नगण्य या हासिये पर होना रहा है.

 ऑक्सफैम इंडिया न्यूज लॉन्ड्री के एक रिपोर्ट के अनुसार भारतीय मीडिया में लगभग 90% नेतृत्व पदों पर उच्च जाति के समूहों का एक तरफा कब्जा है. मुख्य धारा की मीडिया में इन वर्गों का कहीं भी नेतृत्व नहीं रहा है. इस रिपोर्ट के सर्वे अनुसार 43 भारतीय प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक्स मीडिया का उनके कवरेज ,नेतृत्व के सामाजिक संस्थान और संगठनों द्वारा नियोजित पत्रकारों की जाति का अध्ययन किया गया, जिसके तहत 121 न्यूज़ रूम नेतृत्व पदों पर प्रधान संपादक, प्रबंध संपादक, कार्यकारी संपादक, ब्यूरो प्रमुख, इनपुट और आउटपुट संपादक में से 106 पर उच्च जातियों का कब्जा है .पांच पर अन्य पिछड़ा वर्ग तथा छह पर अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों द्वारा तथा चार की पहचान नहीं हो सकी.

 यदि प्राइम टाइम शो पर होने वाले डिबेट पर नजर डालते हैं तो हर चार एंकरों में से तीन ऊंची जाति के होते हैं. मीडिया के अंदर की यह स्थितियां बताती है कि, मीडिया को इन वर्गों से जुड़े समाचार तो चाहिए किंतु, इन वर्गों का मीडिया में प्रतिनिधित्व स्वीकार्य नहीं है.

 आज जब हम आजादी के आठवें दशक में है तथा भारतीय पत्रकारिता के 200 वें वर्ष मनाने जा रहे हैं तब तक यह स्थितियां है तो सोचिए आने वाले समय में मीडिया में किस प्रकार पूंजीवाद और पुरोहित वाद हावी रहेगा और इसे अपनी बपौती समझेगा सहज रूप से अनुभव किया जा सकता है .✍🏼 

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