आदतों से मुक्ति कैसे हो?

संकलन एवम प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द

मैंने सुना है, एक बाप और बेटा अपने गधे को बेचने बाजार की तरफ गये। रात थी, पूरे चांद की रात थी। दोनों पैदल चले जा रहे थे। कुछ लोग रास्ते पर मिले, उन्होंने कहा, अरे देखो, ये गधे देखो! दो गधे एक गधे का लिए जा रहे हैं; तीनों गधे हैं।

बूढ़े ने पूछा, तुम्हारा मतलब ? उन्होंने कहा, जब गधा साथ है, तो पैदल क्यों चल रहे हो? इतनी भी अकल नहीं है! बात तो ठीक ही थी, ऐसा लगा दोनों को, सो दोनों गधे पर चढ़ गये।

थोड़ी देर बाद फिर कुछ लोग मिले, उन्होंने कहा, ये गधे देखो ! जान ले लेंगे बिचारे की ! दो-दो चढ़े बैठे हैं, एक गधे पर! अरे, उतरो नालायको ! शर्म भी नहीं खाते ? उस गधे की हालत देख रहे हो ? गिरा गिरा हुआ जा रहा है! मारना है? सो घबड़ाकर दोनों उतर गये। कि भई, ठीक कहते हैं, ये भी ठीक कहते हैं!

थोड़ी देर बाद फिर कुछ लोग मिले। उन्होंने पूछा कि जब गधा साथ है, तो यह बूढ़े आदमी को तो कम से कम बिठाल दो-जवान बेटे को कहा कि यह बूढ़े का तो न घसीटो ! तू तो जवान है, चल सकता है, मगर बूढ़े आदमी को तो गधे पर बिठाल दे। यह बात भी जंची।

थोड़ी दूर आगे फिर कुछ लोग मिले। लोगों की कोई कमी है! तुम न भी मिलना चाहो तो क्या, लोग तो मिलेंगे ही! लोग तो भरे हैं चारों तरफ ! उन्होंने कहा, यह भी मजा देखो ! बाप तो चढ़ा बैठा है और बेचारे बेटे को पैदल चला रहा है! अरे, शर्म भी आनी चाहिए! बुजुर्ग होकर इतनी अकल तो होनी चाहिए! बाप घबड़ाकर नीचे उतर गया, बेटे को चढ़ा दिया।

फिर कुछ लोग मिल गये, उन्होंने कहा, यह देखो मजा! आ गया कलियुग ! बेटा चढ़ा बैठा है, बूढ़ा बाप पैदल चल रहा है! अरे हरामजादे, बूढ़े को पैदल घसीटा रहा है और खुद चढ़ा बैठा है गधे पर। शर्म नहीं आती! चुल्लू भर पानी में डूब मर। घबड़ाकर बेटा उतर गया।

उन्होंने सोचा, अब करना क्या है? मतलब सब जो किया जा सकता था, कर चुके। अब तो एक ही उपाय बचा, उन दोनों ने सोचा, कि अब हम दोनों गधे को ढोएं। और तो कुछ बचा नहीं करने को। और तो सब गणित हो चुके।

सो उन्होंने एक डंडे में गधे को बांधा, उलटा लटकाया-और एक पूल पर गधा तड़फड़ाए,
क्योंकि गधा जिंदा; कोई मरा गधा तो है नहीं कि तुम उसको ऐसा उलटा लटका कर… और गधा फड़फड़ाए और चिल्लाए ! मगर वे भी हिम्मतवर लोग थे, उन्होंने कहा कि कुछ समझाया, ठीक ही बताया- अरे, सब हितेच्छु ही थे! और गधा फड़फड़ाए और रेंके ! सो भीड़ इकट्ठी हो गयी, भीड़ चलने लगी हंसती हुई कि यह भी एक खूब मजा है! दुनिया में बहुत तरह के लोग देखे मगर,… आदमियों को गधों पर सवार देखा, गधों को आदमी पर सवार देखा नहीं। यह पहला ही चमत्कार हो रहा है!

मगर अब लड़के और बाप ने भी कहा कि अब कब तक ऐसी ही सुनते रहेंगे ! अब तो कुछ बचा ही नहीं करने को। अब यही एक आखिरी काम था, सो करके दिखा दें।

एक पूल पर से गुजर रहे थे- और भीड़ इतनी इकट्ठी हो गयी और लड़के शोरगुल मचाने लगे और हू-हल्ला इतना मचा और गधा ऐसा तड़फा और फड़का कि वह नदी में गिर गया। वह मर ही गया बेचारा ! गये थे बेचने, खाली हाथ घर लौट आए।

तुम अगर लोगों की सुनोगे तो हर तरह से सलाह देने वाले लोग मिल जाएंगे। छोटी मोटी बातों में मत पड़ो क्योंकि जिन्दगी को छोटी मोटी बातों में उलझाने से समय ही व्यर्थ होता है।

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