‘ अकेले चलो, कोई सहारा मत खोजो, क्योंकि सहारा ही अंतिम बाधा है।’

(संकलन एवं प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द)

बुद्ध मृत्युशय्या पर थे और आनंद ने उनसे पूछा, ‘आप हमें छोड़कर जा रहे हैं, अब हम क्या करेंगे? हम कैसे उपलब्ध होंगे? हम अब आगे कैसे बढ़ेंगे ? जब आप ही चले जाएंगे तो हम जन्मों-जन्मों तक अंधकार में भटकते रहेंगे, हमारा मार्गदर्शन करने के लिए कोई भी नहीं रहेगा, प्रकाश तो विदा हो रहा है।’

तो बुद्ध ने कहा, ‘तुम्हारे लिए यह अच्छा रहेगा। जब मैं नहीं रहूंगा तो तुम अपना प्रकाश स्वयं बनोगे। अकेले चलो, कोई सहारा मत खोजो, क्योंकि सहारा ही अंतिम बाधा है।’

और ऐसा ही हुआ। आनंद संबुद्ध नहीं हुआ था। चालीस वर्ष से वह बुद्ध के साथ था, वह निकटतम शिष्य था, बुद्ध की छाया की भांति था, उनके साथ चलता था, उनके साथ रहता था; उसका बुद्ध के साथ सबसे लंबा संपर्क था। चालीस वर्ष तक बुद्ध की करुणा उस पर बरसती रही थी। लेकिन कुछ भी न हुआ। आनंद सदा की भांति अज्ञानी ही रहा। और जिस दिन बुद्ध ने शरीर छोड़ा उसके दूसरे ही दिन आनंद संबुद्ध हो गया – दूसरे ही दिन ।
वह आधार ही बाधा था। जब बुद्ध न रहे तो आनंद कोई आधार न खोज सका। यह कठिन है। यदि तुम किसी बुद्ध के साथ रहो और वह बुद्ध चला जाए, तो कोई भी तुम्हें सहारा नहीं दे सकता। अब कोई भी ऐसा न रहेगा जिसे तुम पकड़ सको। जिसने किसी बुद्ध को पकड़ लिया वह संसार में किसी और को न पकड़ पाएगा। यह पूरा संसार खाली होगा।
एक बार तुमने किसी बुद्ध के प्रेम और करुणा को जान लिया हो तो कोई प्रेम, कोई करुणा उसकी तुलना नहीं कर सकती। एक बार तुमने उसका स्वाद ले लिया तो और कुछ भी स्वाद लेने जैसा न रहा।

तो चालीस वर्ष में पहली बार आनंद अकेला हुआ। किसी भी सहारे को खोजने का कोई उपाय ही न रहा। उसने परम सहारे को जाना था; अब छोटे-छोटे सहारे किसी काम के न थे। दूसरे दिन ही वह संवुद्ध हो गया। वह निश्चित ही आधारहीन, शाश्वत, निश्चल अंतर-आकाश में प्रवेश कर गया होगा।

तो स्मरण रखो, कोई सहारा खोजने का प्रयास मत करो। आधारहीन हो जाओ। यदि इस विधि को करने का प्रयास कर रहे हो तो आधारहीन हो जाओ। यही कृष्णमूर्ति सिखा रहे हैं, ‘आधारहीन हो जाओ, किसी गुरु को मत पकड़ो, किसी शास्त्र को मत पकड़ो। किसी भी चीज को पकड़ो ही मत।’

सब गुरु यही करते रहे हैं। हर गुरु का सारा प्रयास ही यह होता है कि पहले वह तुम्हें अपनी ओर आकर्षित करे, ताकि तुम उससे जुड़ने लगो। और जब तुम उससे जुड़ने लगते हो, जब तुम उसके निकट और घनिष्ठ होने लगते हो, तब वह जानता है कि पकड़ छुड़ानी होगी। और अब तुम किसी और को नहीं पकड़ सकते – यह बात ही खतम हो गई। तुम किसी और के पास नहीं जा सकते- यह बात असंभव हो गई। तब वह पकड़ को काट डालता है और अचानक तुम आधारहीन हो जाते हो। शुरू-शुरू में तो बड़ा दुख होगा। तुम रोओगे और चिल्लाओगे और चीखोगे, और तुम्हें लगेगा कि सब कुछ खो गया। तुम दुख की गहनतम गहराइयों में गिर जाओगे। लेकिन वहां से व्यक्ति उठता है, अकेला और आधारहीन।

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