जो साहित्य का सम्मान करते हैं समाज उनका सम्मान करते हैं-कामिनी कौशिक
LOK ASAR DHAMTARI
जिला हिन्दी साहित्य समिति धमतरी द्वारा सार्थक स्कूल में विजय देवांगन महापौर नगर पालिक निगम धमतरी, संरक्षक एवं देश के सुप्रसिद्ध कवि सुरजीत नवदीप की अध्यक्षता, हिन्दी विभागाध्यक्ष सुखराम नागे शासकीय महाविद्यालय नगरी के डॉ. अम्बा शुक्ला, ठाकुर विश्वराज राजेश्वरी राठौर, जिला हिन्दी साहित्य समिति के अध्यक्ष डुमन लाल ध्रुव के विशिष्ट आतिथ्य एवं साहित्य समिति के सम्मानीय साहित्यकारगण, शहर के प्रबुद्ध नागरिकगण की उपस्थिति में पुस्तक विमोचन एवं सम्मान समारोह का गरिमामय कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।
स्वागत अभिनंदन के पश्चात अतिथियों ने सुप्रसिद्ध कवयित्री कामिनी कौशिक की प्रकाशित कृति-वास्थिका, सुश्री माधुरी मार्कण्डेय की कृति-काव्य माधुरी एवं मानव की भावना तथा डॉ. राखी कोर्राम की कृति – तोर अछरा के छईंहा मां एवं दो मिनट का विमोचन अतिथियों द्वारा किया गया।
इस अवसर पर साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए डॉ.माधुरी डड़सेना एवं चन्द्रहास साहू का शाल, श्रीफल, स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया गया। समिति के अध्यक्ष डुमन लाल ध्रुव ने अपने स्वागत उद्बोधन में सभी साहित्य सर्जकों का जिला हिन्दी साहित्य समिति धमतरी परिवार की ओर से हार्दिक बधाई शुभकामनाएं प्रेषित की और आगे कहा कि- वास्थिका कवयित्री की महत्वपूर्ण संग्रह है जिसमें साहित्य की विविधताओं को व्यक्त की है। ये साहित्य सभ्यताओं की जीवंतता की शर्ते हैं जो आज भी मौजूद है और कल भी रहेंगी। कवयित्री कामिनी कौशिक ने सवक्तव्य काव्य पाठ किया और कार्यक्रम में उपस्थिति के लिए हृदय से आभार व्यक्त किया और कहा कि जो साहित्य का सम्मान करते हैं समाज उनका सम्मान करते हैं।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विजय देवांगन ने कहा कि आदमी इतिहास की उपज है। ऋचा से छंद और आज वैचारिक गद्य बनकर वास्थिका जैसी कृतियां सामने आयी हैं यह कामिनी कौशिक जी की काव्य का शिल्प विधान है। मानवीय मूल्यों से भरपूर शिल्प से परिपूर्ण और जीवित स्मृतियों का संग्रह है। भाषा की सहजता, विनम्रता और अनुभव की व्यापकता में जो कुछ भी बताया गया है वह बहुत महत्वपूर्ण हो गया है। कवयित्रियों की रचित पांच कृतियों का एक साथ विमोचन कर सौभाग्यशाली जनप्रतिनिधि होने का गौरव हासिल करते हैं। साहित्यकार स्वर्गीय त्रिभुवन पाण्डेय को याद कर नमन किया गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे सुरजीत नवदीप ने पानी का महत्व बताते हुए कहा कि – चलो चलें देखें, पानी ने बहते हुए पानी से पूछा -कैसे हो। पानी ने कहा तुम क्या हो, तुम बताओ, उत्तर दिया हम हवा हैं जिस दिन जाएंगे सिर्फ नाम ही रह जाएंगे। केवल उनका यश रुपी नाम रह जाएगा। विशिष्ट अतिथि डॉ.अम्बा शुक्ला ने कृति वास्थिका के संदर्भ में आधार वक्तव्य देते हुए कहा कि-हर साहित्य की अपनी अलग विशेषताएं होती है। रचनाकार जब किसी रचना का निर्माण करता है तो वह रचना को अपने बच्चे की तरह पाल-पोस कर बड़ा करता है, संपूर्ण आत्मतत्व के साथ, पूर्ण संवेदनशीलता के साथ। एक रचना में एक रचनाकार का सत्य छुपा रहता है। रचना की समीक्षा वही व्यक्ति कर सकता है जिसे रचना की समझ हो। जो स्वयं रचनाकार हो। श्रीमती कामिनी कौशिक जी वास्थिका के माध्यम से अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया। वास्थिका सूर्य की प्रथम किरण है जो कवयित्री की अभिव्यक्ति को कभी दबा नहीं सकी। कवयित्री पूरे भाव मन से लिखती है-भावों को शब्द मिला, नवरत्नों का बन गया हार आदि से अंत तक मैंने जीवन का दिया इश्तहार रवि की प्रथम रश्मि से वास्थिका की कड़ियां जुड़ गई।
वास्थिका एक शक्ति संपन्न कृति है। इस कृति में जन्मोत्सव से लेकर अभिनंदन पत्र का प्रतीकात्मक उत्स जो मनुष्य को सही दिशा में आने के लिए प्रेरित करती है। मनुष्य के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शित करती है। अपनी कल्पना को लोक जीवन से जोड़कर यथार्थ का अंकन करती है। एक बिम्ब का विस्तार करती हुई आकृति बनती है वास्थिका।
कार्यक्रम का संचालन आकाशगिरी गोस्वामी ने किया। आभार प्रदर्शन सचिव डॉ. भूपेन्द्र सोनी ने किया।
इस अवसर पर श्रीमती आरती कौशिक, डॉ. आस्था सिंह, अभिषेक सिंह, निधि सिंह, अभय सिंह राठौर, नम्रता राठौर, तन्नू राठौर, गोपाल शर्मा, मदन मोहन खण्डेलवाल, चन्द्रशेखर शर्मा, दीप शर्मा, नरेश चंद्र श्रोति, डॉ. रचना मिश्रा, विजय अग्रवाल, मनोज सोनी, मुकेश जैन, विनोद रणसिंह, कुलदीप सिन्हा, राजेंद्र प्रसाद सिन्हा,लोकेश प्रजापति, डॉ. माझी अनंत, कृष्ण कुमार अजनबी, शेष नारायण गजेन्द्र, श्रीमती ऊषा गुप्ता,जानकी गुप्ता, पवन लिखी, जसविंदर सिंह, घनश्याम साहू, प्रेमशंकर चौबे, अंजू लिखी, तृप्ति लिखी, स्वतंत्र कुमार कौशल, नवीन कुमार मार्कण्डेय, रामकिशन सिन्हा, नारायण दास मार्कण्डेय, रेशम लाल मार्कण्डेय, चन्द्रप्रकाश मार्कण्डेय, कमलेश्वर कुमार पटेल, छन्नू लाल चन्द्राकर, मुख्य रूप से उपस्थित थे।