LOK ASAR BILASPUR
प्राचीन छत्तीसगढ़ की कला और वास्तुकला पर आधारित एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन कल रायपुर के महंत घासीदास संग्रहालय मे सचालनालय संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग रायपुर में हुआ। इस संगोष्ठी में क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर और कलात्मक परंपराओं पर गहन विचार-विमर्श किया गया। संगोष्ठी का मुख्य उद्देश्य छत्तीसगढ़ की प्राचीन कला, वास्तुकला और शिल्पकला को संरक्षित करने और उनका प्रचार-प्रसार करना था।डॉ अलका यादव लोक संस्कृति एवं छत्तीसगढ़ की जनजाति की अध्येता है जिसने रायगढ़ की झारा जाति की अद्वितीय हस्तशिल्प कला पर वक्तव्य प्रस्तुत किया वक्ता ने झारा जाति के हस्तशिल्प की विशेषताओं, उनकी तकनीकों और सांस्कृतिक महत्व पर प्रकाश डाला। इस हस्तशिल्प कला के संरक्षण और उसे वैश्विक पहचान दिलाने की आवश्यकता पर जोर दिया गया।
डा. अलका यादव ने प्राचीन छत्तीसगढ़ की वास्तुकला पर अपना वक्तव्य दिया। उन्होंने मंदिर निर्माण शैली, शिलालेखों और प्राचीन मूर्तिकला की विशिष्टताओं को विस्तार से समझाया। उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ की प्राचीन वास्तुकला भारतीय सभ्यता के विकास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है।
कार्यक्रम में बड़ी संख्या में विद्वान, शोधार्थी, और कला प्रेमी शामिल हुए। संगोष्ठी के अंत में सभी वक्ताओं और सहभागियों ने छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के लिए ठोस कदम उठाने पर सहमति जताई।
इस संगोष्ठी ने छत्तीसगढ़ की कला और वास्तुकला की समृद्ध परंपराओं को एक बार फिर जीवंत कर दिया और नई पीढ़ी को इसकी महत्ता से परिचित कराने का प्रयास किया।