(दरवेश आनंद की 11 दिसंबर ओशो जन्म दिवस विशेष लेख)
(लोक असर)
अब तक हुए सभी बुद्ध पुरुषों के सम्राट है ओशो. क्योंकि उन्होंने सबको जिया है. इस युग के सर्वाधिक विद्रोही व्यक्तित्व व संबुद्ध प्रज्ञा पुरूष ओशो ने आध्यात्म ही नहीं अपितु अपने आग्नेय और क्रांतिकारी विचारों के माध्यम से एक एक आदमी की आस्था की जमीन खींच ली, ताकि इस देश का विचार जाग सके। ओशो ने जब पंडित पुरोहित और राजनेताओं को अपने प्रवचनों के माध्यम से इन्हें मानव आत्मा के ‘शोषक कहे गए, तो ये सारे के सारे तिलमिला गए और ये तथाकथित धार्मिक लोग उनके खिलाफ हो गए। उनकी दुकानदारी ‘पर ओशो भारी पड़ने लगे, क्योंकि ओशो ने धार्मिक पाखंडों को उघाड़ने लगा और धर्म के नाम पर भय फैलाने वाले पंडित – पुरोहित , मुल्ला -मौलवी, पोप – पादरी की असलियत सामने लाते हुए उन्होंने किसी परंपरा को ढोया नहीं।
ऐसे महान प्रज्ञा पुरूष का जन्म 11 दिसंबर 1931 को मध्यप्रदेश के कुचवाड़ा गांव में इस दिव्यात्मा ने जन्म लिया। ओशो जिसे ज्यादातर लोग भगवान श्री रजनीश के नाम से जानते है। बुद्ध, महावीर और कृष्ण की पावन धरा में ओशो महज 21 बरस की आयु में संबोधि को उपलब्ध हुए और इस धरा पर एक नया प्रयोग, एक अभियान, एक चुनौति के रूप में सामने आया। ओशो किसी धार्मिक परंपरा या श्रृंखला की कड़ी नहीं है, ‘बल्कि ओशो तो सीधा – सीधा एक नए युग का सूत्रपात है। ओशो ने एक नए मनुष्य होने का एक अद्भुत प्रयोग किया है। ओशो रजनीश के ‘ शब्द संसार, जीवन- ज्ञान आदि का खजाना अथाह गहरा और विशाल है। वे सौंदर्य के उपासक, कला के पारखी है। सत्यम्, शिवम्, सुन्दरम् इन तीनों गुणो के साक्षात् अवतार बनकर बीसवीं सदी में आए ओशो।
उन्होंने कहा भविष्य उनका होगा जो बदलना चाहेंगे कहते हुए योग, तंत्र, ताओ, झेन, हसीद, सूफी जैसे विभिन्न साधना परंपराओं के गूढ़ परमाणु युद्ध और उससे बढ़कर एड्स जैसे महामारी जैसे अनेक विषयों पर एक क्रांतिकारी जीवनदृष्टि देकर विश्व के मौलिक चिंतकों के इतिहास में ओशो मील के पत्थर ही नहीं वरण हीरा की भांति या कहें सूरज के समान उजाला लिए सदैव के लिए स्थापित है। वे अपने आप में अद्वितीय है, क्योंकि वे अतुलनीय है, असाधारण विद्यवान बेजोड़ तार्किक, धर्म विशेष के ही नहीं अपितु धार्मिकता के वे प्रतिबद्ध पक्षधर हैं। अब तब उनसे अधिक कोई बोला हो ‘शायद किंतु उनके सारे प्रवचन और संवाद ही नहीं ‘शब्द शब्द मौन और ध्यान के प्रति समर्पित है। कैसे दो अतियों के मध्य जीवन को खेल के समान जीने की प्रेरणा देना ही उसके बहुआयामी व्यक्तित्व का पर्याय है।पूरब ने मानव जाति को एक से बढ़कर एक प्रेरक दार्शनिक और धर्मगुरू प्रदान किए हैं, लेकिन ओशो की बात ही और है क्योंकि, वे सब कुछ होते हुए भी इस परंपरा से नहीं आए और इस कसौटी में उतारने की चेष्टा की जाए तो उनका आशन एकदम अलग और सर्वोच्च शिखर पर महिमामंडित होकर वैशिष्टय नजर आता है। ओशो तो सर्वथा अनूठे संबुद्ध रहस्यदर्शी हैं ओशो तो सद्यः स्नात धार्मिकता के प्रमाण हैं।
ओशो का नया मनुष्यु जोरबा दि बुद्धा है। ओशो ने मानव चेतना के हर पहलुओं को छुआ है उजागर किया है। और विलुप्त होती भारतीय आध्यात्मिक आकाश के अनेक नक्षत्रों की गूढ़तम तथ्यों को अपनी वाणी और प्रवचनों के माध्यम से पुनर्जीवित किया है। जिसके कई नाम लोगों को याद नहीं आदि शंकराचार्य, दयाबाई, सहजो बाई, वाजिद, फरीद, राबिया, गोरखनाथ, भीखा, रैदास, गुलाल, जरथुस्त्र, शांडिल्य, इसके अलावा ओशो के प्रिय रहे बुद्ध, महावीर, कृष्ण, क्राइस्ट, कबीर, नानक, मीरा , अष्टावक्र, ताओ, लाओत्सो, कन्फ्यूशियस इसके साथ ही ओशो ने दुनिया भर के सूफी और झेन संप्रदाय के बुद्धपुरूषों पर पूरी वैज्ञानिकता के साथ बोले। यदि बुद्ध की वैज्ञानिकता, महावीर की साधना, कबीर का फक्कड़पन व स्पष्टवादिता, कृष्ण की आनंदमयी दृष्टि, क्राइस्ट की मानवीय संवेदना, मीरा की समर्पण भावना और लाओत्सो की सांकेतिकता इन सबको जोड़कर कोई एक प्रतिमा बनाई जाए तो सिर्फ ओशो के जीवन की प्रतिमा हो सकता है। ओशो किसी व्यक्ति विषेश के रूप में नहीं बल्कि ओशो तो प्रेम, ध्यान, संगीत, नृत्य, मस्ती वे जीवन के सभी. कुछ है। आज ओशो की हर जगह धूम है, जबकि ओशो बीसवीं सदी का सर्वाधिक चर्चितऔर विवादास्पद, व्यक्तित्व रहे हैं। उन्होंने तो विश्व के चिंतन को ही बदल दिया है फलस्वरूप आज अधिकांश संवेदनशील लोग विषेशकर लेखक्र , कवि, कलाकार, साहित्यकार, संगीतकार एवं अन्य जितने भी सर्जक हैं, चाहे वह किसी भी क्षेत्र के हो ओशो से किसी न किसी रूप् से जुड़ गए है। आज के तनावपूर्ण और अतिमहत्वाकांक्षा जिंदगी में आम आदमी पर बोझ बनकर सवार हो गए हैं ऐसे में ओशो का ध्यान प्रयोग आवश्यक ही नहीं जरूरत बन गई है। एक वक्त रहा जब ओशो को इस देश में खूब बदनाम किया गया, यहां तक उन्हें सेक्स गुरू भी कहे जाने। लोग उनके हर क्रिया कलाप पर विरोध दर्ज हुआ करता था। लेकिन आज पूरा विश्व ओशों को सुनने, पढ़ने उन्हें अनुभव करने को बेताब है। ओशो ने मनुष्य से मनुष्य को दूर करने वाले जो भी दीवार है चाहे वह संप्रदाय के हो, राजनीति के हो, परंपराओं के हो, विचारों की हो या जाति वर्ण के भेद हो जिसे गिराकर नए मानव समाज की रचना करना चाहते हैं। विषेशकर उन्होंने स्त्रीयों को जितनी सम्मान, आजादी और विकास के अवसर दिए उतने मानवता के इतिहास में किसी ने नहीं किए ।
ओशो साफ शब्दों में कहते हैं स्त्री को अत्यधिक सुरक्षा का मोह छोड़ देना चाहिए, तभी उनका अपना स्त्रीत्व विकसित होगा। कहना पड़ रहा है कि ओशो को सेक्स गुरू कहने वाले भी पुरूष ही है। एक भी औरत ने उन्हें ऐसा नहीं कहा। ओशो को बिना पढ़े, बिना सुने बिना उनके ध्यान प्रयोगों को किए बगैर उनके ध्यान शिविरों के हिस्सा बने भ्रमित प्रचार कर उन्हें बदनाम कर दिया गया। उन्हें आज भी कई तथाकथित साधू-संयासी, धार्मिक कहलाने वाले लोग ओशो का नाम सुनकर नाक भौह सिकोड़ने लगते हैं। जबकि प्रायः देखा गया है अधिकांश आज के धार्मिक प्रवचनकर्ता, उनके प्रवचनांशो को तोड़ मरोड़ कर व्यवसाय कर रहे हैं वह चाहे जो लोग भी हो चाहे वे टीवी चैनलों पर दिखने वाले प्रवचनकर्ता ही क्यों न हो यहां तक के अब राजनेता भी अपने भाषणों में उनके दृष्टांतों का उपयोग करने लगे है। कुल मिलाकर ओशो ने दिया अमृत, पिया गरल। उन्होंने सड़ी-गली रूढ़ियां, दम तोड़ती परंपराओं और अंधविश्वासों के खिलाफ एक धर्मयुद्ध छेड़ गए हैं। ओशो का धर्म नास्तिक और आस्तिक दोनों के लिए समानरूप से उपलब्ध है। जबकि अब तक सारे धर्म आस्तिकों के लिए होते थे। इस तरह देखा जाए तो ओशो को किसी भी परिभाषा में बांधना निरर्थक है क्योंकि अनंत की कोई सीमा नहीं होती और ओशो अतंत है। ओशो अंत तक अपना करूणा बांटते रहे है। जिस गति से लोग ओशो की ओर झुक रहे हैं इससे यह निश्चित है आने वाली सदी ओशो का होगा ।
(प्यारे ओशो को प्रेम प्रणाम व आहोभाव)
