लुइस ब्रेल की 215 वी जयंती के मौके पर लोक असर से ख़ास बातचीत
LOK ASAR SAMACHAR BALOD
लुइस ब्रेल की 215 वी जयंती के मौके पर लोक असर ने दृष्टिबाधित कंप्यूटर शिक्षक अरविंद शर्मा से दिव्यांगों की शिक्षा व्यवस्था में कितना अंतर आया है और आज दृष्टिहीन की शिक्षा व्यवस्था कहां पर है? क्या दृष्टिहीन को पढ़ाई की आधुनिक तकनीक उपलब्ध है? इस संबंध में जानकारी है या फिर वही परंपरागत तरीके पढ़ने, जीवन जीने मजबूर है को लेकर एक बातचीत की गई।
दृष्टिहीनो के जीवन में अपेक्षित उजियारा लाने में सरकार नाकाम, आज दृष्टिहीनो की शिक्षा का स्तर कहां पर है?
जिसमें अरविंद शर्मा कहते हैं कि देश आज आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, लेकिन दृष्टिहीनो के जीवन में अपेक्षित उजियारा लाने में सरकार नाकाम है। सरकार ने विकलांगों को विकलांग ना कहकर दिव्यांग शब्द से संबोधित कर विकलांग शब्द को विलोपित कर दिया है किन्तु दिव्यांग मात्र कह देने से उनके जीवन में कोई विशेष बदलाव आ गए हैं ऐसा कतई नहीं है। उन्होंने बताया कि दिव्यांगों के लिए जो आधुनिकतम टेक्नोलॉजी है वह आज भी दिव्यांगों की पहुंच से दूर है। दिव्यांगता के क्षेत्र में समय के साथ जो परिवर्तन टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में आया है, वह देश के ग्रामीण क्षेत्रों के दिव्यांगों को तो ज्ञात ही नहीं है। जितने भी आधुनिकतम टेक्नोलॉजी दृष्टि बाधित दिव्यांगता के क्षेत्र में विकसित की गई है, वह सभी बड़े शहरों , महानगरीय क्षेत्रों एवं खास वर्ग की स्कूलों तक ही सिमटकर रह गई है।
प्रत्येक दृष्टिबाधित एंड्रॉयड फोन से, उसे स्पर्श करके पढ़ाई कर सकते हैं
आज हम लुई ब्रेल की जन्मदिन पर यह चर्चा कर रहे हैं तो मैं बताना चाहूंगा कि ब्रेल लिपि धीरे-धीरे विलुप्तता की कगार पर जा पहुंची है। जिसे टेक्नोलाजी के माध्यम से संवर्धन एवं संरक्षित किया गया है। टेक्नोलॉजी के जरिए रिफ्रेशर ब्रेल डिस्प्ले बनाया जा चुका है, जिसके माध्यम से हम एंड्रॉयड फोन से, उसे स्पर्श करके पढ़ाई कर सकते हैं। इसके साथ ही रोजमर्रा का कार्य भी कर सकते हैं। एंड्राइड से ही कमान दे सकते हैं। दृष्टि बाधितों के लिए टेक्नोलॉजी का वृहद आविष्कार हो चुका है, किंतु इसकी जानकारी ही नहीं है, ऐसे में इस्तेमाल करना तो दूर की कौड़ी है।
झारखंड और छत्तीसगढ़ में देश का पहला टीम चैंपियन गठित
इन्हीं समस्याओं को देखते हुए (सक्षम) एवं आईआईटी दिल्ली द्वारा एक बैठक आहूत की गई थी, जिसमें देशभर के स्वयंसेवी संस्थाएं जो दिव्यांगों के लिए कार्य कर रही है सभी को आमंत्रित किया गया था। जिसमें छत्तीसगढ़ से अरविंद शर्मा भी शामिल हुए थे। जिसमें उन्होंने सुझाव दी थी कि, जो व्यक्ति (दिव्यांग) नवीनतम टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रहे हैं। यदि उनकी टीम बनाकर कार्य किया जाता है, तो अधिक से अधिक लोगों (दिव्यांगों) तक टेक्नोलॉजी को पहुंचाया जा सकता है। जिसे (सक्षम) ने माना और फिर सर्वप्रथम झारखंड और छत्तीसगढ़ में दो टीम का गठन किया गया है, जिसे नाम दिया गया है (छत्तीसगढ़ टीम चैंपियन) इस टीम में कार्य करने वाले दृष्टिबाधितों को चैंपियन की उपाधि दी गई है, जो तकनीकी तौर पर सक्षम है।
टीम के सदस्यों का प्रथम प्रशिक्षण जमशेदपुर (झारखंड) में जुलाई में संपन्न हुआ एवं दूसरा प्रशिक्षण 18 से 22 दिसंबर तक नई दिल्ली में संपन्न हुआ। जिसमें छत्तीसगढ़ के 4 प्रतिभागी अरविंद शर्मा , गौरव चंद्राकर, देवेंद्र यादव एवं मनीष साहू सम्मिलित रहे।
दृष्टिहीन भी आसानी से गणित, विज्ञान, भूगोल आदि समझ व पढ़ सकते हैं
इस प्रशिक्षण का उद्देश्य दिव्यांगता के क्षेत्र में रोजमर्रा की जिंदगी में, जो भी दिक्कतें हैं, उसे आधुनिकतम टेक्नोलॉजी के माध्यम से कैसे सुगम बना सकते हैं, बिना किसी की मदद लिए। अरविंद ने बताते हैं कि जो ब्रेल की मैनुअल बुक है, वही सब चीजें स्पर्शी क़िताब में अब उपलब्ध हैं। इस बुक की विशेषता यह है कि उसे सामान्य लोग पढ़ सकते हैं और उसे दृष्टिबाधित भी बहुत आसानी से पढ़ सकते हैं। अभी तक दृष्टिहीनो के लिए गणित, विज्ञान, भूगोल आदि पढ़ने के लिए कोई उपकरण ही नहीं था। लेकिन, अब इन सबके लिए तकनीकी विकसित कर ली गई है, जिसके माध्यम से दृष्टिहीन भी आसानी से गणित, विज्ञान, भूगोल आदि समझ सकते हैं।
वर्ष 2023 के अंत तक 500 दृष्टिबाधितों तक टेक्नोलॉजी को पहुंचाने का है लक्ष्य
दृष्टिहीनो (दिव्यांगों) को प्रेरित करने के उद्देश्य से छत्तीसगढ़ टीम चैंपियन बनाया गया है। जिसका नेतृत्व स्वयं अरविंद कर रहे हैं, उन्होंने बताया कि, वर्ष 2023 के अंत तक 500 दृष्टिबाधितों तक टेक्नोलॉजी को पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि यह टूल्स काफी महंगे हैं। लेकिन (सक्षम) संस्था द्वारा सब्सिडी स्कीम के माध्यम से इसे न्यूनतम दरों पर दृष्टिहीनों को उपलब्ध कराया जाता है। हमारी टीम अभी राज्य स्तर पर है। आने वाले दिनों में इसका गठन जिला एवं तहसील स्तर पर भी किया जाएगा जिसमें अधिकतम लोगों को प्रशिक्षण दिया जाएगा। ताकि वह अपने आसपास के दृष्टिहीनों को लाभ पहुंचा सके। इस तरह एक नेटवर्क खड़ा होगा और एक दूसरे की मदद से राज्य के सभी दृष्टिहीन स्वयं सक्षम हो सकते हैं और स्वावलंबी बन जीवनयापन सुचारू रूप से कर सकते हैं।
सहानुभूति के बल पर नहीं, काबिलियत के बल पर मिले जॉब
आज तक दृष्टिहीन समाज को लोग मात्र सहानुभूति की नजरों से देखता रहा है लेकिन ऐसा कब तक चलेगा…? जब एक दृष्टिबाधित व्यक्ति जॉब के लिए जाएगा तो तकनीकी के साथ जाएगा तो सहानुभूति के बल पर नहीं बल्कि उन्हें उनकी काबिलियत के बल पर जॉब मिलेगा। इस प्रशिक्षण का मुख्य उद्देश्य है। जब एक दृष्टिहीन व्यक्ति स्वयं आत्मनिर्भर होगा तो अपने सरीखे दूसरे को भी प्रेरित कर सकेगा। इस योजना के लिए हम समाज कल्याण विभाग एवं शिक्षा विभाग से भी मिलेंगे इसलिए कि जब तक दृष्टिहीनो को सामान्य बच्चों की भांति शिक्षा नहीं मिलेगी, तो वह आगे कैसे बढ़ेंगे। दृष्टिहीनों के लिए आरपीडी एक्ट 2016 में प्रावधान किया गया है विशेष शिक्षा का अधिकार के तहत।
दृष्टिबाधित बच्चों को दिए गए मोबाइल व टैबलेट का मॉडल बेहद पुराने है
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आज कोई भी पुरानी शिक्षा पद्धति से शिक्षा अर्जन नहीं करना चाहेगा। हम अधिकारियों को इस संबंध में बताएंगे कि दृष्टिहीनो की शिक्षा के लिए अनेकों टूल्स डेवेलप हो चुका है, जिसे उपलब्ध कराया जाए। अरविंद ने सरकार से गुजारिश करते हुए कहा कि सरकार जो भी उपकरण दिव्यांगों को बांटते हैं सही उपकरण रहे। उन्होंने बताया कि दृष्टिबाधित बच्चों के लिए कहीं-कहीं जो मोबाइल फोन एवम् टैबलेट दिए गए हैं जो काफ़ी पुराने मॉडल है, तकरीबन 2014_15 का मॉडल है, जिसमें 1GB रैम एवं 8GB इंटरनल स्टोरेज है। जिसका बोलने वाले एप काम ही नहीं कर रहा है तो मोबाइल कैसे चलेगा। सरकार महज खानापूर्ति नहीं करे। सरकार जो भी सामग्री दे रही है तो सही और ठीक-ठाक उपकरण देवें और वह भी प्रशिक्षण देने के बाद। ताकि वह व्यक्ति उस उपकरण को चला सके।
प्रत्येक स्कूलों में यह टूल्स उपलब्ध कराया जाए
उन्होंने एक प्रश्न के जवाब में कहा कि दृष्टिहीनों को ब्रेल बुक के साथ में टेक्टाइल बुक (स्पर्शी क़िताब) दिया जाए। ताकि वह स्वयं तो पढ़ लिख सके, उनमें अंकित चित्रों को स्पर्श कर जान सके। जैसे नदी, नाले, पहाड़, देश, राज्य, दुनिया के नक्शे को स्पर्श कर जान सके। विज्ञान में क्या प्रयोग किया गया है। गिलास कैसे पकड़ा गया हैं। कोण, चतुर्भुज, त्रिभुज कैसे बनाया जाता है, इन सब के लिए तकनीकी उपलब्ध है। किंतु दिव्यांगों के पहुंच से बाहर है, जिसे सरकार सब्सिडी देकर व्यक्तिगत तौर पर उपलब्ध कराएं या फिर प्रत्येक स्कूलों में यह टूल्स उपलब्ध कराया जाए ताकि, हमारे जैसे तमाम दृष्टिहीन, दृष्टिबाधित बच्चे बेहतर पढ़ाई लिखाई कर अपना जीवन सुगम बना सके।