छत्तीसगढ़ में निर्वाचित आदिवासी 32 विधायकों के कंधों पर ही आरक्षण की लाश !

LOK ASAR BALOD/RAIPUR

सर्व आदिवासी समाज के कार्यकारी अध्यक्ष बी एस रावटे ने प्रेस विज्ञप्ति में आरक्षण को लेकर बयान जारी कर कहा है कि जब तक ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण नहीं मिलता, एक भी भर्ती छ.ग. राज्य में नहीं होनी चाहिए।
उन्होंने प्रेस विज्ञप्ति में आरक्षण को लेकर कुछ इस प्रकार से सरकार से गुहार लगाई है। सिर्फ आदिवासी प्रतिनिधियों के कंधों पर ही क्यों लादी गई हैं “जिसकी जितनी संख्या भारी उतनी उसकी हिस्सेदारी नारे की लाश उठाने की जिम्मेदारी? मंडल आयोग ने अपनी रिपोर्ट में केंद्र शासन की सेवाओं में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश इसलिए की थी, क्योंकि 22.5 प्रतिशत आरक्षण एससी-एसटी के लिए 1972 से चल रहा था। 1962 के एम. बालाजी बनाम मैसूर राज्य प्रकरण में संविधान पीठ फैसले के मुताबिक पिछड़ेपन का कुल आरक्षण 50 प्रतिशत की सीमा के भीतर रखना होगा। तकरीबन इसी समय से यह भी साफ किया गया है कि, सिर्फ जनसंख्या हिस्सेदारी के आधार पर सेवाओं में आरक्षण नहीं दिया जा सकता। जाहिर है कि, जब तक शासन जातिगत आधार के बजाए बहिष्करण को नापने के वैज्ञानिक पैमाने विकसित नहीं करता, ओबीसी को एससी-एसटी से बची हुई खुरचन ही आरक्षण में मिल सकती है। इन अकाट्य संवैधानिक सच्चाईयों से आंख मूंदकर ओबीसी प्रतिनिधि छ.ग. – म.प्र. जैसे राज्यों में भी 27 प्रतिशत आरक्षण का बेसुरा राग अलापते रहते हैं।

छग शासन के 4 सितंबर 2019 के अध्यादेश में दावा किया गया था कि, 1994 के मूल आरक्षण अधिनियम का “अस्थायी” संशोधन किया जा रहा है। किसी प्रभावशील संशोधित प्रावधान के मूल का संशोधन हो ही नहीं सकता है और अधिनियम कोई खिलौना नहीं होता कि, उसका अस्थायी संशोधन किया जाए। सच यह है कि, किसी उचित कारण के बिना सिर्फ दस हफ्ते के लिए अध्यादेश द्वारा एक अधिनियम का “अस्थायी” संशोधन करना संविधान से फरेब था।
02 अक्तूबर गांधी जयंती के विधानसभा सत्र के छह हफ्ते बाद 13 नवंबर, 2019 को ही छ.ग. में एससी-एसटी-ओबीसी आरक्षण शून्य हो गया था । विद्वान न्यायमूर्ति की सिंगल बेंच के फैसले का जिक्र करने के बावजूद उच्च न्यायालय की डिवीजन बेंच ने WPC 3174/2019 प्रकरण में संवैधानिक व्यवस्था पर अजीब टिप्पणियां की। इस अध्यादेश के प्रावधान विधानसभा के पटल पर न रखे जाने भर से कालातीत नहीं हुए। बल्कि इसलिए हुए कि, उसके लिए संगत विधेयक प्रस्तुत नहीं किया गया। मनमोहन सिंह सरकार ने सेबी संबंधित मामलों में 18 जुलाई 2013 को अध्यादेश जारी किया, संसद का सत्र आहूत होते ही इसके लिए विधेयक 12 अगस्त को प्रस्तुत किया गया, विधेयक पारित नहीं हो पाने की वजह से द्वितीय अध्यादेश 24 मार्च, 2014 को जारी किया गया, जो आज भी 27 प्रतिशत आरक्षण की माला जपने वाले ओबीसी प्रतिनिधि अवैध 16-20-14 रोस्टर से हो रही भर्तियों पर चूं तक नहीं बोलते!

राज्य निर्माण के बाद बदली जनसंख्या हिस्सेदारी के मुताबिक आरक्षण अधिनियम 1994 का संशोधन करने में छग शासन ने 2011 तक का समय ले लिया जबकि, मध्य प्रदेश में जरूरी संशोधन 2002 में ही हो गया था। लंबे समय तक अपनी जनसंख्या की हिस्सेदारी से 4 प्रतिशत अधिक आरक्षण लेते हुए अनुसूचित जाति प्रवर्ग में 16 प्रतिशत आरक्षण का अधिकार होने की गलत धारणा पनपी। जिसमें गुरु घासीदास अकादमी और अन्य पक्षकारों ने 32 प्रतिशत एसटी आरक्षण को तो असंवैधानिक कहा ही लेकिन सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी याद दिलाया कि कुल आरक्षण 50 प्रतिशत की सीमा के पार नहीं जा सकता। डॉ. अंबेडकर के अलावा किसी भी दलित व्यक्ति संगठन ने कम से कम अदालती प्रकरण में 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा का दावा कभी नहीं किया था। जून 2019 में गुरु घासीदास अकादमी की अधिवक्ता ने EWS आरक्षण के बहाने लंबित प्रकरणों को छ.ग. शासन द्वारा ट्रांसफर पिटिशन से सुप्रीम कोर्ट ले जाने की कोशिश का पुरजोर विरोध किया था। कुछ विवेकवान एससी प्रतिनिधियों ने सितंबर 2019 और जुलाई 2021 में एसटी हितों के खिलाफ लंबित मामले वापस लेने का सामाजिक आह्वान किया था लेकिन, आरक्षण पर अदालती उत्पात वाले व्यक्तियों को खर्चा – पानी पद नवाजने की स्थापित नीति को देखते हुए प्रमुख पक्षकारों द्वारा एससी-एसटी एकता को बचाने का प्रस्ताव ठुकरा दिया गया।

भाजपा के नेता भी आज दुखड़ा रो रहे हैं कि, ओम माथुर जी कोर कमेटी में आरक्षण के मुद्दे पर चर्चा तक नहीं होने देते। कांग्रेसी विधायक – मंत्री कहते हैं, हमने आदिवासी आरक्षण की आवाज बुलंद की तो बॉस हमें खत्म कर देगा। भूपेश बघेल की कूटनीति ने एससी- ओबीसी दोनों प्रवर्गों में 16:27 की अव्यावहारिक मांगों का उन्माद फैलाया है। तथाकथित सामान्य (अनारक्षित) प्रवर्ग देश हित जनहित के बजाए किसी भी तरह 50 प्रतिशत पर भर्तियां जारी रखने पर जोर दे रहा है। आदिवासी समाज अब भी शहरी पोस्टिंग- चुनाव टिकट के जुगाड़ में अंधे अपने दलालों को उखाड़ कर फेंकने के बजाए उनको चुप-चाप भुगत रहा है। छत्तीसगढ़ महतारी के आंसू बह रहे हैं। जब तक ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण नहीं मिलता, एक भी भर्ती छ.ग. राज्य में नहीं होनी चाहिए।

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