विश्व रंगमंच दिवस पर विशेष भेंटवार्ता नाचा कलाकार बेनूराम सेन से प्रोफे. के.मुरारी दास की

लोक कला मंच यदि जलने वाला आग है तो उसको जलाने

वाला मिट्टी का तेल है नाच

LOK ASAR BALOD/GURUR

 विश्व रंगमंच दिवस जिसे संक्षेप में W.T.D.या world theatre day के रूप में भी जाना जाता है. जिसकी स्थापना आज से 64 साल पूर्व हुई थी, जिसे अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संस्थान (ITI) द्वारा शुरू किया गया था जिसे रंगकर्मी प्रतिवर्ष मनाते हैं. इसका मुख्य उद्देश्य अपनी कला और संस्कृति को रंगमंच के माध्यम से लोगों तक न सिर्फ पहुंचाना ,बल्कि लोगों को शिक्षित और जागरूक करना भी उद्देश्य रहा है.आज दुनिया भर के अभिनेता,पेशेवर थिएटर और रंगमंच प्रेमी स्कूल आदि के माध्यम से इस दिन को याद करते हैं.

विश्व रंगमंच दिवस का इस साल का विषय है थिएटर एंड ए कल्चर ऑफ पीस.आज इस दिवस को स्मरण करते हुए एक छोटा सा साक्षात्कार लोक नाट्य नाचा के कलाकार बेनू राम सेन से लेने का प्रयास किया. अपने उम्र के 74 बसंत देख चुके बेनू राम सेन अपने गिरते हुए स्वास्थ्य की वजह से पिछले 10 -12 वर्षों से इस विधा से सन्यास ले चुके हैं किंतु, एक कवि हृदय होने के नाते यदा-कदा अपनी रचनाएं लिखने का प्रयास करते हैं. अपनी माता-पिता के इकलौते संस्थान बेनू राम जी सेन की शिक्षा हाईस्कूल तक हुई है. लगभग 18 साल तक पोस्ट ऑफिस में डाकिए के रूप में सेवा देते हुए पिछले 12 वर्षों से पूर्णकालिक अवकाश पर हैं. शासकीय सेवा में होते हुए भी बेनू राम जी रंगमंचीय क्षेत्र नाचा को अंजाम देते रहें.यद्यपि सेन जी का बाल्यावस्था से ही नाचा के प्रति रुझान रहा है जिसकी वजह से वे न सिर्फ छत्तीसगढ़ अपितु महाराष्ट्र के नागपुर और झारखंड के जमशेदपुर तक भी अपनी नाचा की प्रस्तुति दे चुके हैं. अब तक कोई 100 से अधिक नाचा की प्रस्तुति दे चूके बेनूराम की अपनी स्वयं की नाच पार्टी जय संतोषी नाच पार्टी भी है जो अब उनके निष्क्रिय होने से अस्तित्व में नहीं है.

 खैरागढ़ विश्वविद्यालय से गायन और अभिनय की शिक्षा ग्रहण करने वाले बेनू राम सेन को इस बात का मलाल है कि, जीवन भर कला के प्रति समर्पण के भाव दिखाने के बावजूद भी उन्हें राज्य से सरकारी सम्मान तो बहुत दूर उन्हें कलाकारों को दी जाने वाली पेंशन सहायता राशि के अनुकूल भी नहीं समझा गया, जबकि उनके पास 50 से अधिक मान सम्मान पुरस्कार और प्रमाण पत्र  हैं. सहायता राशि के लिए वे अब तक अनेक आवेदन के साथ संस्कृति मंत्रालय के द्वार भी खटखटा चुके हैं, पर सरकार तो दूर इसके लिए क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों ने भी इस ओर ध्यान देना भी उचित नहीं समझा . वे तल्ख भरे शब्दों में कहते हैं- आज जिसके पास नोट,नेता और नाते रिश्ते हो उसी की सुनवाई होती है.हम जैसे सामान्य लोग इन सब से दूर है.


 वे कहते हैं,यदि नाचा मिट्टी का तेल है तो लोक कला मंच उससे जलने वाला आग.क्योंकि नाचा आज भी है और आने वाले समय में भी रहेगा.मेला मंडई में आज भी नाचा का ही बोलबाला होता है न कि किसी लोक कला मंच का .
 क्या नाचा के क्षेत्र में भी आपके कोई कला गुरु या आदर्श रहे हैं ? वे कहते हैं इस क्षेत्र में मेरे कोई कला गुरु व आदर्श नहीं रहे, बल्कि नाचा के प्रति प्रेम होने की वजह से यहां तक पहुंच सका हूं.

नए कलाकारों को आप क्या संदेश देना चाहते हैं ? मेरे इस प्रश्न पर वे कहते हैं ,लोक कला मंच व नाचा अलग विधा  है . आज की युवा पीढ़ी के पास वह समझ नहीं जो पुराने कलाकारों के पास नई पीढ़ी को देने के लिए विचार और सिद्धांत के रूप में होता था लेकिन, हां नई पीढ़ी के पास त्वरित मनोरंजन और हंसी मजाक ही उनका मुख्य उद्देश्य होता है.

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