कृष्णपाल राणा से जानते हैं, बस्तर की आमा जोगानी तिहार( अक्ति) क्यों है महत्वपूर्ण

LOK ASAR PAKHANJUR

सीसीआरटी नई दिल्ली से प्रशिक्षित शिक्षक कृष्णपाल राणा शोधकर्ता एवं साहित्यकार, बताते हैं कि बस्तर में जनजाति समुदाय के लोग कोई भी नई फसल को जब तक सर्वप्रथम अपने गांव के देवी देवता, पेन पुरखा प्रकृति को अर्पित नहीं करते हैं तब तक प्रकृति की कोई भी नई फसल को उपयोग में नहीं लाते हैं.

आइए जानते है, क्या होता है आम का त्यौहार ( आमा तियार ), अक्ती (अक्षय तृतीया) के दिन मनाया जाता है?

आदिवासी अंचल में हर त्यौहार का एक अलग महत्व रहता है. आदिवासी संस्कृति शोधकर्ता लेखक कृष्ण पाल राणा द्वारा रचित पुस्तक ” हल्बा जनजाति एवं उनकी लोक संस्कृति ” में सविस्तार वर्णित है. जिसमें लिखते हैं कि गांव में कोई भी नई फसल को तब तक उपयोग नहीं लाते हैं जबतक वह फल खाने योग्य परिपक्व न हो और उस फल को अपने ईष्ट देवी, कुलदेवी देवताओं को अर्पण नहीं करते हैं. परंपरानुसार आदिवासी समाज इसे जीवन में बड़ी सहजता के साथ अपने ढंग से त्यौहार के रूप में आत्मसात कर लिया है. गांव के सभी घरों से अपने साथ थाली, कसेला, दिया तेल , चांवल नारियल, अगरबती, धूप, घीं, तीली, आम, चार के ताजा फल , महूआ , दोनी, फरसा(पलाश) के पत्ता, उड़द , मूंग आदि सामग्री को लेकर गांव में नदी, नाला, तालाब, में जाते हैं. जहां जाम डारा द्वारा अपने कूलदेवी देवताओं के नाम से पानी के किनारे स्थापना करते हैं. वहां दिया जलाकर कसेला में शुद्ध पानी रखा जाता है. जहां चांवल, लाली, चार, महुआ, उड़द, मूंग, आम आदि फरसा पत्ता में चढ़ाकर सेवा विनती करते हैं. कसेला की पानी, सेवा कि गई कूछ चावल, कच्चे आम की कट्टी हुई प्रसाद को लेकर कतारबद्ध नहाकर भीगे कपड़े में रहकर महुआ पेड़, पिपल के पेड़. कुसकर घासं एवं गोबर के कंडे में पितरों पूर्वजो का नाम लेकर पानी देते हैं. यहां 3-3 बार पानी देते हैं.

इसके पश्चात वापस आकर कतारबद्ध होकर सूर्य को जल व चांवल आदि सामग्री अर्पण करते हैं
बचा हूआ चावल से एक दूसरे के माथे में टिककर प्रणाम कर एक दूसरे से भेंट करते हैं और आम, गुड़, नमक, मिर्च आदि सामग्री से बनाई गई प्रसाद सभी को वितरण करते हैं. एवं बचत प्रसाद को घर में लेकर परिवार के सभी सदस्यों को बांटते है. घर में भी अपने पितरों पूर्वजों को भी अर्पण किया जाता है.

उसके पश्चात सभी के घरों में आम का सब्जी बनाकर सभी को आमन्त्रित कर भोज कराया जाता है. इस प्रकार आदिवासी समाज आम का त्यौहार मनाते हैं. उसी दिन से आम, चार खाना प्रारंभ करते हैं.
इसी दिन अपने खेतों में कूछ मात्रा में धान बीज की बुआई प्रारंभ करते हैं.

कुछ खास तथ्य

बस्तर में जनजाति समुदाय के लोगों की आमा जोगानी परब मनाने के कुछ वैज्ञानिक पहलू भी है

  1. ईको सिस्टम संतुलित रहता है
    खट्टे आम की लालच में अगर छोटे अपरिपक्व फल खाने लगे तो फल बड़े होने से पहले ही खत्म हो जाएगा।
  2. अगली पीढ़ी को हस्तांतरित करना
    आम को अगली पीढ़ी को हस्तांतरित करना भी एक प्रमुख कारण है। आम खाकर फेंके गए गुठली से ही वापस आम के पेड़ उगते हैं।
  3. एसिड की अधिक मात्रा करती है स्वास्थ्य खराब
    आम के फल जब छोटे होते हैं तो एसिड की मात्रा अधिक होती है। ऐसे में होंठों के आसपास घाव हो जाते हैं।
  4. हो सकता है स्वास्थ्य संबंधी समस्या
    अगर चेर बंधने के पहले आम का सेवन किया जाता है और गुठली कोई बच्चा निगल जाए तो उसे स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

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