गोंड महासभा राष्ट्रीय महाधिवेशन 1934 द्वारा प्रचलित सप्तरंगी ध्वज को मिली मान्यता

LOK ASAR GARIYABAND

आदिवासी गोंड समाज देवभोग कांदाडोंगर मैनपुर जिला गरियाबंद द्वारा वैशाख उजियारी पक्ष के पवित्र पर्व पर चंदन यात्रा एवं बड़ादेव महा पूजन का आयोजन बड़ादेव मंदिर चिचिया, विकासखंड देवभोग, जिला गरियाबंद में आयोजित किया गया । कार्यक्रम में युवक युवती परिचय सम्मेलन, सम्मान समारोह, बड़ादेव महापूजन, सामाजिक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित गोंडवाना गोंड महासभा के राष्ट्रीय महासचिव लोकेंद्र सिंह कोमर्रा ने कहा कि समाज को समय के साथ शिक्षा रूपी अस्त्र को अपनाकर आगे बढ़ना होगा। उन्होंने कहा कि गोंड समाज छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, नई दिल्ली, महाराष्ट्र ,तेलंगाना ,आंध्र प्रदेश ,पश्चिम बंगाल ,असम, बिहार, उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश में निवासरत है। गोंड समाज अलग-अलग राज्यों में होने के कारण भाषा एवं खानपान अलग हो सकता है लेकिन पूरे देश में समाज की संस्कृति लगभग एक समान है। राष्ट्रीय अधिवेशन मां अंगारमोती प्रांगण गंगरेल जिला धमतरी छत्तीसगढ़ दिनांक 7 ,8 , 9 जून 2009 में लिए गए निर्णय अनुसार हम सबको ध्रुव, आमात, राजगोंड, बस्तरिया, सरगुजीहा, चातरराज, जंगलराज आदि आपसी मतभेद भुलाकर एकता के सूत्र में बंधना होगा।

अनुसूचित जनजाति शासकीय सेवक विकास संघ छत्तीसगढ़ के प्रांताध्यक्ष आर एन ध्रुव राष्ट्रीय सचिव गोंडवाना गोंड महासभा ने कहा कि समाज में प्रचलित सप्तरंगी ध्वज को मान्यता गोंडवाना गोंड महासभा के राष्ट्रीय महाधिवेशन 1934 सिवनी मध्यप्रदेश में समाज के पुरोधाओं एवं उस समय के महान धर्माचार्यों द्वारा प्रदान किया गया था। आज प्रचलित सप्तरंगी ध्वज का निर्माण ना तो पेनवासी मोती रावेण कंगाली जी ने किया है, ना ही पेनवासी गोंडवाना रत्न दादा हीरासिंह मरकाम जी द्वारा किया गया और ना ही गुरुदेव दुर्गे भगत द्वारा किया गया है। इतना जरूर है कि इस झंडे को सभी स्वीकार कर इसका मान हमारे सभी पुरोधाओं द्वारा रखते हुए आज पूरे देश में प्रचार प्रसार हो रहा है। सभी सामाजिक, धार्मिक संगठन प्रतिष्ठा का प्रश्न ना बनाकर, आपसी भाईचारा के साथ आज हम सब इसी झंडे के नीचे एकजुट हो। कुछ लोग आज इस झंडे को अपने हिसाब से बनाने का प्रयास कर रहे हैं जिसके कारण समाज की एकता– अखंडता बाधित हो रही है। उदाहरण के तौर पर यह वही बात हो गई की किसी के बाप का नाम टेटकू राम है और उन्हें बाप का वह नाम अच्छा नहीं लगा तो उसका नाम ही बदल डाला। ठीक वैसे ही देश में तिरंगा झंडा का डिजाइन हमारे पूर्वजों ने किया है और हमारे आज के बुद्धिजीवी, वैज्ञानिक यदि इनका कलर कांबिनेशन बदलने का प्रयास करें तो हम सबको कितना दुख पहुंचेगा। आज से लगभग 100 साल पहले हमारे पूर्वजों द्वारा समाज हित में लिए गए निर्णय का हम सबको सम्मान करना चाहिए। संभव है आज समाज में बहुत बड़े-बड़े विद्वान, धर्माचार्य, बुद्धिजीवी हैं। इसका यह मतलब नहीं कि हम हमारे पुरखा शक्ति के भावनाओं का अपमान करें। इसलिए देश के समस्त समाजिक जनों से अपील है कि पूर्वजों द्वारा डिजाइन किए गए सप्तरंगी ध्वज का सम्मान करते हुए सभी स्वीकारें, उसमें किसी भी तरह का छेड़खानी ना करें।साथ ही छत्तीसगढ़ राज्य में आदिवासियों को मिलने वाले 32% आरक्षण की बहाली हेतु जून 2023 में बड़े आंदोलन में सहयोग की अपील सामाजिक जनों से किया गया। इस अवसर पर उड़ीसा , छत्तीसगढ़ के विभिन्न स्थानों से बड़ी संख्या में सामाजिकजन एकत्र हुए थे।

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