प्रकृति की संरक्षण का संदेश देता है जनजातीय तीज त्यौहार – कृष्णपाल राणा

LOK ASAR PAKHANJUR

तीन दिवसीय राज्य स्तरीय जनजातीय वाचिकोत्सव का आयोजन आदिम जाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान रायपुर में डा प्रेमसाय सिंह टेकाम केबिनेट मंत्री छत्तीसगढ़ शासन, द्वारकाधीश यादव संसदीय सचिव, शम्मी आबिदी संचालक टीआरआई एवं राज्य के 42 जनजातियों के जानकार, साहित्यकार, शोधकर्ता की उपस्थिति में विधिवत शुभारंभ किया गया।

साहित्यकार, शोधकर्ता, समाजसेवक कृष्णपाल राणा ने जनजातियों की तीज त्यौहार एवं वाचिक परंपरा के संबंध में सविस्तार जानकारी प्रदान करते हुए कहा बताया कि जनजातियों की संस्कृति आदिकाल से मौखिक रूप में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित हो रही है और प्रकृति एवं विज्ञान में गहरा संबंध स्थापित करते हुए प्रकृति की संरक्षण का संदेश देता है। राणा ने हल्बा जनजातियों की लोकगीत उनका अभिप्राय एवं भावार्थ तथा हल्बा जनजातीय जीवन संस्कार संबंधी वाचिक परंपरा के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां दी।

दामेसाय बघेल ने जनजातियों की विशिष्ट परंपराएं रीति रिवाज परंपरागत ज्ञान एवं विश्वास के तहत हल्बा जनजाति कि महत्वपूर्ण प्रचलित संस्कार देव संस्कार के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि देव संस्कार के बिना हमारा जीवन संस्कार और पर्व का आस्तित्व अधूरा है । देव संस्कार में हूम देना , पूंजी, सिरहा, अरजी विनती के नियम, आंगा देव, डांग, तुर्रा, सकरी आदि के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां दी गई।

शिवकुमार पात्र ने जनजातीय जीवन संस्कार संबंधी वाचिक परंपरा के संबंध में हल्बी में हल्बा जनजाति कि सभी संस्कार में होने वाली रस्म रिवाज परंपराएं को रोचक ढंग से प्रस्तुत किया। लतेल राम नाईक ने हल्बा जनजातियों की देवी देवता, जात्रा के संबंध में वाचिक ज्ञान को अपनी मातृभाषा में प्रदान किया। पुनऊ राम समरथ के द्वारा जनजातीय देवी देवता एवं मड़ई मेला के संबंध में वाचिक ज्ञान के बारे में बताते हुए गायता, परगना, मांझी, मुखिया, ढाई परिक्रमा आदि के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां दी गई।

सिवन बघेल ने जनजातियों की प्रचलित लोक कहानियां, कहावतें, एवं लोकोक्तियां एवं हल्बी लोकगीत प्रस्तुत किया गया। नथलाल नाग द्वारा हल्बा जनजातियों में गोत्र व्यवस्था, एवं गोत्र चिन्हों की अवधारणा , उत्पत्ति संबंधित वाचिक परंपरा, के संबंध में बताया गया। हल्बा जनजाति की अभिलेखीकरण में अनिल नेगी, भुनेश्वर भारद्वाज हृदय लाल नेगी ने भी योगदान दिया।

इसी प्रकार गोड़ जनजाति कि अभिलेखीकरण में ललित नरेटी, शेर सिंह आचला, पारस उसेंडी, सोमारू गावड़े, लालसिंह पोटाई, अमर नुरूटी, वीरसिंह उसेंडी, दुर्जन सिंह कुमेटी ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

उक्त कार्यक्रम में संचालक टीआरआई शम्मी आबिदी, विधायक अंतागढ़ अनुप नाग, कलेक्टर डॉ प्रियंका शुक्ला, अनुसंधान अधिकारी प्रज्ञान सेठ, डा अनिल विरूलकर, जे आर पन्नू, डा रूपेन्द्र कवि, आनंद परमार,निर्मल बघेल, अमर दास, डा राजेन्द्र सिंह, मोहन साहू, शरद शुक्ला, रमा उयके, मीना धनेलिया, अंकिता कुंजाम, उषा लकड़ा, गिरधारी लाल बलेन्द्र, सहायक आयुक्त मनीष मिश्रा, केजूराम सिन्हा, सोपसिंह नेताम आदि की महत्वपूर्ण मार्गदर्शन रहा।

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