LOK ASAR BILASPUR/ BALOD1
हमारे देश की बोलियों एवं भाषाओं ने हमारी सभ्यताओं की इबारत लिखी है। आज विश्व की अनेक बोलियाँ और भाषाएँ लुप्त होने की दिशा में हैं। इन्हें संरक्षित करने के लिए अध्येताओं भाषाओं पर मौलिक कार्य करना होगा और यह कार्य अर्थात् आखन देखी हो न कि कागद लेखी। ऐसे आह्वान जनजातीय लोककला एवं बोली विकास अकादमी के निदेशक डॉ.धर्मेन्द्र पारे ने किया।
जनजातीय लोककला एवं बोली विकास अकादमी, संस्कृति परिषद मध्यप्रदेश शासन द्वारा आयोजित संगोष्ठी हाल ही में मध्यप्रदेश के मांडू में स्थित पौराणिक एवं ऐतिहासिक चतुर्भज श्रीराम मंदिर में किया गया। इस अवसर पर जनजातीय लोककला एवं बोली विकास अकादमी के निदेशक डॉ. पारे अध्येताओं का मार्गदर्शन कर रहे थे।
डॉ.धर्मेन्द्र पारे के कुशल मार्गदर्शन में ‘घुमन्तू समुदायों की भाषिक सम्पदा’ विषय पर आयोजित 3 दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में देशभर से करीब 30 से अधिक अध्येताओं का समावेश रहा।
छत्तीसगढ़ बिलासपुर जिले से.डॉ. अलका यतींद्र यादव ने ‘घुमन्तू जाति नट की की भाषा : स्थिति एवं चुनौतियाँ, इस विषय पर अपना शोध आलेख प्रस्तुत किया।
संगोष्ठी के उद्घाटन समारोह में वरिष्ठ भाषाविद् पद्श्री अन्विता अब्बी सहित मंच पर घुमन्तू समुदाय के वरिष्ठजन झीता नायक, कैलाश नाथ एवं मगन भाटिया उपस्थित थे। इस दौरान घुमन्तू की भाषिक सम्पदा शब्दावली, सांकेतिकता और सांस्कृतिक संरक्षण पुस्तक का विमोचन मंचासीनों द्वारा किया गया। दूसरे दिन अहमदाबाद विश्वविद्यालय की प्रोफेसर डॉ. मौली कौशल तथा तीसरे दिन वरिष्ठ समाजसेवी पद्मश्री गिरिष प्रभुणे सहित अनेक विद्वानों ने अध्येताओं को अनुसंधान की बारीकियों से अवगत करवाया।
विविध सत्रों में आयोजित संगोष्ठी का कुशल संचालन शुभम चौहान, शिवम शर्मा, डॉ. ज्ञनेश चौबे, टीकमणि पटवारी ने किया। सभी अध्येताओं को स्मृतिचिह्न एवं प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया गया। संगोष्ठी का प्रतिवेदन छोगालाल कुमरावत तथा देवेन्द्र शुक्ला ने प्रस्तुत किया। इस अवसर पर देश के अनेक प्रांतों से अध्येता ने अपने शोध आलेख प्रस्तुत किए।
