संकलन एवम् प्रस्तुति/ मक्सिम आनन्द
सपने देखने से कोई आदमी मुक्त नहीं होता। न गांधी के चरण आपके हाथ में हैं, न कृष्ण के, न मोहमद के। किसी के चरण आपके हाथ में नहीं है। आप अकेले खड़े हैं, आंख बंद करके कल्पना कर रहे हैं कि मैं किसी को पकड़े हुए हूं। जितनी देर तक आप यह कल्पना किये हुए हैं, उतनी देर तक आपकी आत्मा के जागरण का अवसर पैदा नहीं होता और तब तक आपके जीवन में वह क्रांति नहीं हो सकती, जो आपको सत्य के निकट ले आये। न जीवन में वह क्रांति हो सकती है कि जीवन के सारे पर्दे खुल जायें; उसका सारा रहस्य खुल जाये और आप जीवन को जान सकें, और देख सकें। बंधा हुआ आदमी आंखों पर चश्मा लगाये हुए जीता है, वह खिड़कियों में से, छेदों में से देखता है दुनिया को। जैसे कोई एक छेद कर ले दीवाल में और उसमें से देखे आकाश को, तो उसे जो भी दिखायी पड़ेगा, वह उस छेद की सीमा से बंधा होगा, वह आकाश नहीं होगा। जिसे आकाश देखना है, उसे दीवालों के बाहर आ जाना चाहिये और कई बार कितनी छोटी चीजें बांध लेती हैं, हमें पता भी नहीं चलता !
रवींद्रनाथ एक रात अपने बजरे में एक छोटी-सी मोमबत्ती जला कर कोई किताब पढ़ते थे। आधी रात को जब पढ़ते-पढ़ते वे थक गये, तो मोमबत्ती को फूंक मार कर उन्होंने बुझा दिया और किताब बंद कर दी। उस रात आकाश में पूर्णिमा का चांद खिला था। जैसे ही मोमबत्ती बुझी कि रवींद्रनाथ हैरान हो गये यह देखकर कि बजरे की रंध-रंध से, छिद्र-छिद्र से, खिड़की से, द्वार से चंद्रमा के प्रकाश की किरणें भीतर आ गई हैं, और चारों ओर अदभुत प्रकाश फैल गया है। वे खड़े होकर नाचने लगे। उस छोटी-सी मोमबत्ती के कारण उन्हें पता ही नहीं चला कि बाहर पूर्णिमा का चांद खिला है और उसका प्रकाश भीतर आ रहा है।
तब उन्हें खयाल आया कि छोटी-सी मोमबत्ती का प्रकाश किस भांति चांद के प्रकाश को रोक सकता है। उस रात उन्होंने एक गीत लिखा।
उस गीत में उन्होंने लिखा कि मैं भी कैसा पागल था : छोटी-सी मोमबत्ती के मद्धिम, धीमे प्रकाश में बैठा रहा और बाहर चांद का प्रकाश बरसता था, उसका मुझे कुछ पता ही न चला! मैं अपनी मोमबत्ती से ही बंधा रहा। मोमबत्ती बुझी, तो मुझे पता चला कि बाहर, द्वार पर आलोक मेरी प्रतीक्षा कर रहा है। जो आदमी भी मत की, सिद्धांत की, शास्त्र की मोमबत्तियों को जलाये बैठे रहते हैं, वे परमात्मा के अनंत प्रकाश से वंचित हो जाते हैं। मत बुझ जाये, तो सत्य प्रवेश कर जाता है और जो आदमी सब पकड़ छोड़ देता है, उस पर परमात्मा की पकड़ शुरू हो जाती है। जो आदमी सब सहारे छोड़ देता है, उसे परमात्मा का सहारा उपलब्ध हो जाता है। बेसहारा हो जाना, परमात्मा का सहारा पा लेने का रास्ता है। सब रास्ते छोड़ देना, उसके रास्ते पर खड़े हो जाने की विधि है। सभी शब्दों, सभी सिद्धांतों से मुक्त हो जाना, उसकी वाणी को सुनने का अवसर निर्मित करना है। (ओशो साहित्य से)
