(संकलन एवम् प्रस्तुति/ मक्सिम आनन्द)
टाल्स्टाय एक दिन सुबह-सुबह चर्च गया। पांच ही बजे होंगे। जल्दी गया था कि अकेले में कुछ प्रार्थना कर लूंगा।
चर्च में जाकर देखा कि उससे पहले भी कोई आया हुआ है। अंधेरे में, चर्च के द्वार पर हाथ जोड़े हुए एक आदमी खड़ा था। और वह आदमी कह रहा था कि ‘हे परमात्मा, मुझसे ज्यादा पापी कोई भी नहीं है। मैंने बहुत पाप किये हैं; मैंने बहुत बुराइयां की हैं; मैंने बड़े अपराध किये हैं; मैं हत्यारा हूं। मुझे क्षमा करना।
टाल्स्टाय ने देखा कि कौन आदमी है, जो अपने मुंह से कहता है कि मैंने बहुत पाप किये हैं, और मैं हत्यारा हूं। कोई आदमी ऐसा नहीं कहता कि मैं हत्यारा हूं बल्कि किसी हत्यारे से यह कहो कि तुम हत्यारे हो, तो वह तलवार निकाल लेता है कि कौन कहता है, मैं हत्यारा हूं! हत्या करने को तैयार हो जाते हैं, लेकिन यह मानने को राजी नहीं होता कि मैं हत्यारा हूं।.. यह कौन आदमी आ गया है?
टाल्स्टाय धीरे से उसके पास गया। आवाज पहचानी हुई मालूम पड़ी। ‘यह तो नगर का सबसे बड़ा धनपति है! ‘उसकी सारी बातें टाल्स्टाय खड़े होकर सुनता रहा।
जब वह आदमी प्रार्थना कर पीछे मुड़ा, तो टाल्स्टाय को पास खड़ा देखकर उसने पूछा, ‘‘क्या तुमने मेरी सारी बातें सुन ली हैं?” टाल्स्टाय ने कहा, ‘‘मैं धन्य हो गया तुम्हारी बातें सुनकर। तुम कितने पवित्र आदमी हो कि अपने सब पापों को तुमने इस तरह खोलकर रख दिया! ”
तो उस धनपति ने कहा, ” ध्यान रहे, यह बात किसी से कहना मत! यह बात मेरे और परमात्मा के बीच हुई है। मुझे पता भी नहीं था कि तुम यहां खड़े हुए हो। अगर किसी दूसरे तक यह बात पहुंची, तो तुम पर मानहानि का मुकदमा दायर कर दूंगा। ”
टाल्स्टायने कहा, ”अरे, अभी तो तुम कह रहे थे कि……. ”…….वह सब अलग बात है। वह तुमसे मैंने नहीं कहा। वह दुनिया में कहने के लिये नहीं हैं। वह मेरे और परमात्मा के बीच की बात है…..! ” चूंकि परमात्मा कहीं भी नहीं है, इसलिये उसके सामने हम नंगे खड़े हो सकते हैं। लेकिन जो आदमी जगत के सामने सच्चा होने को राजी नहीं है, वह परमात्मा के सामने भी कभी सच्चा नहीं हो सकता है।
हम अपने ही सामने सच्चे होने को राजी नहीं हैं!’ लेकिन यह डर क्यों है इतना? यह चारों तरफ के लोगों का इतना भय क्यों है? चारों तरफ से लोगों की आंखें एक-एक आदमी को भयभीत क्यों किये हैं? हम सब मिलकर एक-एक आदमी को क्यों भयभीत किये हुए हैं? आदमी इतना भयभीत क्यों है? आदमी किस बात की चिंता में है?
आदमी बाहर से फूल सजा लेने की चिंता में है। बस लोगों की आंखों में दिखायी पड़ने लगे कि मैं अच्छा आदमी हूं बात समाप्त हो गयी। लेकिन लोगों की आंखों में अच्छा दिखायी पड़ने से मेरे जीवन का सत्य और मेरे जीवन का संगीत प्रगट नहीं होगा और न लोगों की आंखों में अच्छा दिखायी पड़ने से मैं जीवन की मूल-धारा से संबंधित हो सकूंगा और न लोगों की आंखों में अच्छा दिखायी पड़ने से मेरे जीवन की जड़ों तक मेरी पहूंच हो पायेगी। बल्कि, जितना मैं लोगों की फिक्र करूंगा, उतना ही मैं शाखाओं और पत्तों की फिक्र में पड़ जाऊंगा क्योंकि लोगों तक सिर्फ पत्ते पहुंचते हैं, जड़ें नहीं।
