संकलन एवम् प्रस्तुति / मक्सिम आनन्द
तुमने वह प्रसिद्ध कहानी सुनी न, कि अकबर ने एक दिन अपने दरबारियों से कहा कि बीरबल मुझसे कहता है कि तुम्हारे दरबार में सब अपनी औरतों के गुलाम हैं। यह बात मुझे जंचती नहीं; यह मैं मान नहीं सकता; मेरे बहादुर सिपाही, मेरे बहादुर सेनापति, मेरे बहादुर वजीर, ये सब औरतों के गुलाम हैं, यह मैं मान नहीं सकता। तो आज मैंने परीक्षा लेनी है। जो—जो अपनी पत्नी के गुलाम हों, एक तरफ खड़े हो जाएं। और कोई झूठ न बोले, क्योंकि इसका पता लगाया जाएगा, तुम्हारी स्त्रियों को भी बुलवाया जाएगा, फिर पीछे फजीहत होगी; इसलिए जो—जो अपनी स्त्रियों के गुलाम हों, चुपचाप एक लाइन में खड़े हो जाएं। और जो अपनी स्त्रियों के मालिक हों, वे एक लाइन में खड़े हो जाएं।
सिर्फ एक आदमी उस लाइन में खड़ा हुआ जो अपनी स्त्रियों का मालिक था और बाकी सब उस लाइन में खड़े हो गये जहां स्त्रियों के गुलामों को खड़ा होना था। बादशाह हैरान हुआ। फिर भी उसने कहा कि चलो, यह भी क्या कम है। क्योंकि बीरबल तो कहता था, सौ प्रतिशत, मगर एक आदमी तो कम से कम है। मैं तुमसे पूछता हूं कि तुम उस लाइन में क्यों खड़े हो? तुम्हें पक्का भरोसा है? उस आदमी ने कहा, भरोसा इत्यादि कुछ नहीं है, जब मैं घर से चलने लगा, मेरी औरत ने कहा— भीड़— भाड़ में खड़े मत होना। मुझे कुछ पता नहीं है, मैं तो सिर्फ उसकी आज्ञा का पालन कर रहा हूं।
सदा ही कोमल जीत जाएगा कठोर पर। पानी जीत जाता है चट्टान पर। मगर जीत की चेष्टा चल रही है, संघर्ष चल रहा है। पति—पत्नी के बीच जो शाश्वत कलह है, वह यही है। प्रेम में यह कलह? फिर प्रेम कैसे फलेगा? इसलिए प्रेम कहां फलता है! पति—पत्नी लड़ते रहते हैं और मर जाते हैं; प्रेम कहां फलता है! बाप—बेटे में संघर्ष चलता है, भाई— भाई में संघर्ष चलता है, प्रेम कहां फल पाता है! प्रेम वहीं फलता है जहां कोई अपने अहंकार को स्वेच्छा से विसर्जित करता है। हार कर नहीं, स्वेच्छा से; स्वयं अपने से। कहता है, मुझे तुमसे प्रेम है तो तुमसे लड़ना क्या? तुमसे मुझे प्रेम है तो तुम्हारे लिए मैंने अपना अहंकार छोड़ा। तुमसे मेरा कोई संघर्ष नहीं है।
साधारण प्रेम में भी झुकने से ही प्रेम फलता है, तो फिर उस परम प्रेम में, परमात्मा के सामने तो पूरी तरह झुक जाना होगा।
