लोक असर समाचार कोंडागांव
सुदूर आदिवासी क्षेत्र की लोक संस्कृति व साहित्य का हल्बी हिन्दी त्रैमासिक गुड़दुम का विमोचन बईठका हॉल, दंतेश्वरी हर्बल स्टेट कोण्डागाँव में किया गया।
कार्यक्रम की प्रथम कड़ी में मुख्य अतिथि डॉ राजाराम त्रिपाठी व अन्य सम्माननीय साहित्यकार यशवंत गौतम, हरेंद्र यादव, उमेश मंडावी ,बृजेश तिवारी व पत्रिका के संपादक डॉ विश्वनाथ देवांगन के करकमलों से सम्पन्न हुआ ।
अँचल की गायिका देशवती कौशिक ‘देश’ ने वंदना गायन से सबका मन मोह लिया। कार्यक्रम का संचालन बृजेश तिवारी ने अपने चिर परिचित अंदाज़ में किया । यशवंत गौतम ने हल्बी भाषा की शुद्धता का वर्णन किया व इतिहास के सम्बंध में रोचक जानकारी प्रदान की। उन्होंने कहा कि हल्बी भाषा में वर्तमान में मिलावट आ गई है। लेकिन शुद्ध रूप कोण्डागाँव अँचल में देखने को मिलता है । अपनी हल्बी कविता से सबको प्रभावित किया। हरेन्द्र यादव ने पत्रिका के महत्व के विषय में बतलाया व अपनी प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ी कविता चांटी से सबको खूब हंसाया ।
दूसरी कड़ी में कवियों ने रचना पाठ किया। दिनेश कुमार विश्वकर्मा ने अपनी हल्बी कविता ‘धरतनी तुचो आय’ से समां बांधा व वाहवाही बटोरी। अँचल के युवा रचनाकार गणेश मानिकपुरी ने हल्बी में कविता के माध्यम से पर्यावरण बचाने का सन्देश दिया व हल्बी गीत सुनाकर प्रशंसा बटोरी । देशवती कौशिक की रचनाओं को श्रोताओं का बेहतर प्रतिसाद मिला।
इसी क्रम में हल्बी विधा में अनवरत योगदान देने वाले पुरुषोत्तम पोयाम ने भी अपनी रचनाओं से सबका मन मोह लिया। सनत सोरी ने हिंदी में अपना काव्य पाठ किया जिसे काफी सराहा गया । नए रचनाकार अनिल कुमार यादव ने अपनी कविता प्रस्तुत की, जिसे सबका आशीर्वाद मिला ।
बृजेश तिवारी ने हल्बी में कविता के अंशों को साझा किया व हल्बी भाषा के विषय में जानकारी प्रदान की । हल्बी भाषा है अथवा बोली इस पर भी उन्होनें विचार व्यक्त किया। आज की युवा पीढ़ी को समाचार पत्र व अन्य पत्रिकाएँ पढ़ने का संदेश दिया । व्यंग्य के सशक्त हस्ताक्षर उमेश मंडावी ने शराबियों की व्यथा कथा पर बेहतरीन व्यंग्य रचना पेश किया जिसे सुनकर श्रोता लोटपोट हो गए ।
पत्रिका के संपादक मुस्कुराता बस्तर ने अपनी बहुचर्चित हल्बी कविता ‘रान बन के नी गोंदा हामके होयसे हानि’ सुनाया। जिसे सबने बहुत सराहा ।
अंत में डॉ राजाराम त्रिपाठी ने हल्बी में गीत सुनाकर सभा में चार चाँद लगा दिए। उन्होंने हल्बी भाषा के विषय में कई रोचक जानकारी दी । अंत में ‘मैं बस्तर बोल रहा हूँ’ कविता सुनाया जिसमें खूब तालियाँ बजीं । कार्यक्रम में कृष्णा व शंकर नाग का भी विशेष सहयोग रहा । अनुराग त्रिपाठी शुरू से अंत तक सबका उत्साह वर्धन करते रहे।
रमेश पंडा, जसमति नेताम व रामदेव कौशिक की गरिमामयी उपस्थिति रही ।
छ ग हिन्दी साहित्य भारती व हिन्दी साहित्य परिषद के आयोजन में यह सफल कार्यक्रम हल्बी विधा हेतु एक नई इबारत गढ़ेगा ऐसा सभी का मानना है। ज्ञात हो कि बस्तर पाति त्रैमासिक पत्रिका के संपादक सुप्रसिद्ध साहित्यकार सनत जैन ‘सागर’ के प्रयासों से यह पत्रिका प्रकाशित हो रही है। जिनके साहित्य में योगदान को सभी ने सराहा ।
