आखिर यह क्या है सुबह तीन बजे का नियम?

संकलन एवम् प्रस्तुति/मक्सिम आनन्द

एक छोटी सी कहानी है–बंदरों के प्रशिक्षक के बारे में– जो अपने बंदरों के पास जाकर उनसे बोला–जहां तक तुम्हारे अखरोट खाने का प्रश्न है , तुम लोगों को नाप के तीन डिब्बे अखरोट सुबह और चार डिब्बे अखरोट शाम दिये जायेंगे।

यह सुनकर सभी बंदर नाराज हो गये। इसलिए उनके प्रशिक्षक ने कहा– फिर ठीक है, तब मैं इस क्रम को बदल देता हूं– तुम लोगों को चार डिब्बे भरकर अखरोट सुबह और तीन डिब्बे शाम दिये जायेंगे। इस व्यवस्था से सभी बंदर संतुष्ट हो गये।

दोनों व्यवस्थाएं एक जैसी ही थीं– अखरोटों की संख्या में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। लेकिन पहली व्यवस्था से बंदर नाखुश थे और दूसरी व्यवस्था से सभी बंदर संतुष्ट हो गये।

बंदरों की देखभाल करने वाला जितने भी अखरोट हैं उनमें गुजर हो जाये, के सिद्धांत पर आधारित अपनी निजी व्यवस्था को बदलने का इच्छुक था। ऐसा कर उसने खोया कुछ भी नहीं

सच्चा बुद्धिमान मनुष्य प्रश्न के दोनों पहलुओं को ध्यान में रखते हुए, बिना किसी पक्षपात उन दोनों को ताओ की दृष्टि से देखता है। इसे दो व्यवस्थाओं का एक साथ अनुसरण करना कहते हैं।

सुबह तीन बजे का नियम।ʼ

च्वांग्त्सू को इस कहानी से बहुत अधिक प्रेम था। वह उसे प्रायः दोहराया करता था। यह बहुत सुंदर कहानी है, जिसके कई आयाम और कई अर्थ हैं। यह बहुत स्पष्ट और सरल है, लेकिन यह मनुष्य के मन का बहुत गहराई से बोध कराती है।

पहली चीज जो समझ लेने जैसी है, वह यह है कि मनुष्य का मन ठीक बंदरों जैसा चंचल है। यह केवल डार्विन नहीं था, जिसने यह खोज की कि मनुष्य का विकास बंदरों से हुआ है, यह बहुत लंबी अवधि से निरिक्षण द्वारा जाना गया तथ्य है कि मनुष्य का मन, ठीक बंदर के मन के ढांचे की तरह ही व्यवहार करता है। सिर्फ बहुत कम ऐसा होता है जब तुम अपने बंदर स्वभाव का अतिक्रमण कर सको। जब मन थिर होता है, जब मन शांत होता है, जब वास्तव में मन होता ही नहीं तभी तुम बंदर के ढांचे वाले स्वभाव का अतिक्रमण कर पाते हो।

यह बंदर जैसा ढांचा है क्या? पहली बात तो यह, वह कभी थिर नहीं बैठ सकता, और जब तुम थिर न हो जाओ, तुम सत्य का दर्शन नहीं कर सकते। तुम हिलते-डुलते और इतना अधिक कांपते रहते हो कि कुछ भी दिखाई ही नहीं देता, स्पष्ट ज्ञान असंभव हो जाता है। जब तुम ध्यान करते हो तो करते क्या हो? तुम अपने बंदर स्वभाव को थिरता की मुद्रा में बैठ जाने को कहते हो और यहीं से ध्यान की सारी कठिनाइयां शुरू होती हैं। तुम जितना अधिक मन को थिर करने की कोशिश करते हो वह उतना ही अधिक विद्रोह करता है। वह उतना ही अधिक आंदोलित होना शुरू करता है और पहले से अधिक अशांत हो जाता है।

क्या तुमने कभी किसी बंदर को शांत और थिर बैठे हुए देखा है? यह असंभव है। बंदर हमेशा कुछ न कुछ खाता ही रहता है, हमेशा कुछ न कुछ करता ही रहता है, वह आगे-पीछे घूमता या झूलता रहता है या चिंचियाता रहता है। और यही सब कुछ तुम भी करते रहते हो। मनुष्य ने बहुत सी चीजों को ईजाद की है। यदि करने को कुछ भी नहीं है तो वह च्यूंगम चबाता रहता है, यदि उसे करने को कुछ भी काम नहीं है तो वह सिगरेट पीता रहता है। अपने को व्यस्त बनाये रखने के लिए उसने मूर्खतापूर्ण बंदर जैसे कार्यों को अपना लिया है। निरंतर कुछ न कुछ करते रहना है जिससे तुम व्यस्त बने रहो।

तुम इतने अधिक अशांत हो कि तुम्हारी बैचेनी को किसी न किसी कार्य में व्यस्त रखने की जरूरत है। यही कारण है कि धूम्रपान के विरुद्ध जो कुछ भी कहा जाये वह रूकता नहीं। केवल ध्यानियों के संसार में धूम्रपान रूक सकता है, अन्यथा नहीं। यहां तक कैंसर, क्षयरोग और मृत्यु का खतरा भी इसे नहीं रोक सकता, क्योंकि यह प्रश्न केवल धूम्रपान का ना होकर, अपनी बैचेनी को कम करने का प्रश्न है।

मंत्रजाप करने वाले लोग धूम्रपान छोड़ सकते हैं, क्योंकि उन लोगों ने एक विकल्प प्राप्त कर लिया है। तुम बस राम, राम, राम का मंत्र जपते रह सकते हो और यही एक तरह का धूम्रपान हो जाता है। तुम्हारे होंठ कार्य कर रहे हैं, तुम्हारा मुंह चल रहा है। तुम्हारी बैचेनी बाहर निकल रही है। इसलिए जाप, एक तरह का धूम्रपान बन सकता है, जो स्वास्थ्य को कम हानि के साथ एक बेहतर विधि है।

लेकिन आधारभूत रूप से दोनों चीजें एक ही हैं–तुम्हारा मन अकेला खाली नहीं छोड़ा जा सकता। तुम्हारे मन को कुछ न कुछ करना है, न केवल जागते हुए बल्कि तब भी जब तुम सोये हुए हो। जरा एक दिन अपनी पत्नी या अपने पति का सोते हुए निरिक्षण करो, बस उनके पास दो या तीन घंटे खामोश बैठे उनका चेहरा देखते रहो। तुम देखोगे वह मनुष्य का नहीं बंदर का चेहरा है। यहां तक कि नींद में भी बहुत कुछ होता है। व्यक्ति व्यस्त रहता है। यह नींद गहरी नहीं होती, यह वास्तव में विश्रामपूर्ण हो भी नहीं सकती, क्योंकि अंदर मन कार्य किए जा रहा है। अभी भी दिन जारी है, उसकी निरंतरता बनी ही हुई है; मन उसी तरह कार्यरत है। अंदर निरंतर एक कोलाहल चल रहा है, आत्मप्रलाप जारी है और कोई आश्चर्य नहीं कि तुम इसे देखकर ऊब जाओ। तुम स्वयं अपने ही से ऊबे हुए हो। यहां प्रत्येक ऊबा हुआ ही दिखाई देता है।

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