संकलन एवम् प्रस्तुति/मक्सिम आनन्द
मैंने सुना है, एक स्कूल में एक पादरी नैतिक साहस, मॅारल करेज क्या है, यह समझा रहा है। उसने कहा कि तीस बच्चे पिकनिक पर गए हैं। वे दिन भर में थक गए, फिर सांझ को आकर उन्होंने भोजन किया। उनतीस बच्चे तो तत्काल अपने बिस्तर में चले गए। एक बच्चा ठंडी रात, थका-मांदा, उसके बाद भी घुटने टेक कर उसने प्रार्थना की। उस पादरी ने कहा, इस बच्चे में मॅारल करेज है, इसमें नैतिक साहस है। रात कह रही है सो जाओ, ठंड कह रही है सो जाओ, थकान कह रही है सो जाओ। उनतीस लड़के कंबलों के भीतर हो गए हैं और एक लड़का बैठ कर रात की आखिरी प्रार्थना कर रहा है।
महीने भर बाद वह वापस लौटा। उसने कहा, नैतिक साहस पर मैंने तुम्हें कुछ सिखाया था। तुम्हें कुछ याद हो तो मुझे तुम कुछ घटना बताओ।
एक लड़के ने कहा, मैं भी आपको एक काल्पनिक घटना बताता हूं। आप जैसे तीस पादरी पिकनिक पर गए। दिन भर के थके, भूखे-प्यासे वापस लौटे। उनतीस पादरी प्रार्थना करने लगे, एक पादरी कंबल ओढ़ कर सो गया। तो हम उसको नैतिक साहस कहते हैं। जहां उनतीस पादरी प्रार्थना कर रहे हों और एक-एक की आंखें कह रही हों कि नरक जाओगे, अगर प्रार्थना न की! वहां एक पादरी कंबल ओढ़ कर सो जाता है।
लेकिन नैतिक साहस का क्या मतलब इतना ही है कि जो सब कर रहे हों, उससे विपरीत करना नैतिक साहस हो जाएगा? सिर्फ विपरीत होना साहस हो जाएगा?
नहीं, विपरीत होने से साहस नहीं हो जाता। विपरीत होना जरूरी रूप से सही होना नहीं है। और अक्सर तो यह होता है कि गलत के विपरीत जब कोई होता है, तब दूसरी गलती करता है, और कुछ भी नहीं करता। अक्सर दो गलतियों के बीच में वह जगह होती है जहां सही होता है। एक गलती से आदमी पेंडुलम की तरह दूसरी गलती पर चला जाता है। बीच में ठहरना बड़ा मुश्किल होता है।
