संकलन एवम् प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द
एक आदमी एक लंबी यात्रा पर था। थका-मांदा वह एक गांव के बाहर से गुजर रहा था, कि उसे एक धना वृक्ष दिखायी दिया। उसने सोचा कि वृक्ष की घनी छाया में कुछ देर विश्राम कर लेता है। उसे नहीं पता था कि वह वृक्ष एक कल्पवृक्ष था, जिसके नीचे कोई भी इच्छा तत्क्षण पूरी हो जाती है। इधर सोचा नहीं कि उधर इच्छा पूरी हुई।
वह वृक्ष के नीचे बैठकर आराम करने लगा। अचानक उसे भूख लगी। उसने सोचा कि कितना अच्छा होता यदि मैं कुछ भोजन कर पाता। तुरंत उसके सामने भोजन का थाल प्रकट हो. गया। वह इतना भूखा था कि उसने सोचा भी नहीं कि इतने व्यंजन अचानक कहाँ से आ गये। उसने भरपेट भोजन किया। भोजन करने के बाद उसे प्यास लगी और इच्छा हुई कि पीने को कुछ मिल जाता, तुरंत उसके सामने शरबत आ गया।
वह जब खा-पीकर पूरी तरह तृप्त हो गया तो उसे नींद आने लगी। पेट भरा था, वृक्ष को बनी छाया थी, सो नींद आना स्वाभाविक ही था। लेकिन जमीन ऊबड़-खाबड़ थी, उसने मन में सोचा कि यदि उसके पास विस्तर होता तो कितना अच्छा होता। तुरंत एक शानदार विस्तर प्रकट हो गया। उसे इतनी नोंद आ रही थी कि उसने इस विषय में ज्यादा सोचा नहीं और सो गया। शाम जब वह सोकर उठा तो उसे खयाल आने लगा कि आखिर यह सब क्या हो रहा है। उसने सोचा कि जरूर वहां भूत होंगे।
जैसे ही उसने यह सोचा, भूत प्रकट हो गये, उस पर झपटने को तैयार। वह बहुत डर गया। उसने सोचा, ये भूत तो मुझे खा ही जायेंगे। और तुरंत भूत उस पर झपटे व उसे खा गये।
यह कहानी तुम्हारे पूरे जीवन की कहानी है। तुम्हारा मन ही वह कल्पवृक्ष है। जो भी तुम सोचते हो, देर या सवेर वह पूरा हो जाता है। कई बार उसके पूरा होने में अंतराल इतना बड़ा होता है। कि तुम समझ भी नहीं पाते कि यह तुम्हों ने सोचा था। लेकिन तुम यदि सजगता से देखोगे तो तुम पाओगे कि तुम्हारे विचार ही तुम्हारा और तुम्हारे जीवन का निर्माण कर रहे हैं।
