(लोक असर के लिए दंतेवाड़ा से उमा शंकर की रिपोर्ट)
लोक असर समाचार दंतेवाड़ा
आजादी के 75 वर्ष बाद भी आज भी इस गांव के लोग चुहापानी जमीन में गड्ढे खोदकर जैसे तैसे पानी को निकाल कर पीने के उपयोग में लेते हैं । इस पानी की गुणवत्ता क्या हो सकती है इसका आकलन आप खुद कर सकते हैं।
जिला मुख्यालय से करीब 28 किलोमीटर दूर गांव तुमरीमेटटा पारा जो कि हांदावाड़ा पंचायत का आश्रित ग्राम है। जहां पर ग्रामीण वर्षों से झरिया (स्थानीय बोली में चुहापानी) खोदकर पानी निकालकर प्यास बुझा रहे हैं। यहां आज पर्यन्त बोरिंग तक शासन द्वारा नही लगवाया जा सका है।
कई गांव ऐसी समस्याओं से जूझ रही है
यह गांव दंतेवाड़ा एवम् नारायणपुर विधानसभा क्षेत्र के मध्य में स्थित है। यह सिर्फ एक गांव की स्थिति नहीं है बल्कि दंतेवाड़ा जिले के कटेकल्याण, कटुलनार, मेटापाल, कमेली जैसे अंदरुनी इलाकों में भी कई गांव ऐसी समस्याओं से जूझ रही है। किन्तु शासन प्रशासन में बैठे अधिकारी चुप्पी साधे हुए हैं। इन्हें ग्रामीणों की समस्याओं से मानो कोई लेना देना नहीं है। अधिकारी एसी में बैठे आराम फरमा रहे हैं जबकि ग्रामीण भरी गर्मी में बूंद बूंद पानी के लिए प्रतिदिन जद्दोजहद कर रहे हैं। आखिर कब क्षेत्र के चुने हुए जन प्रतिनिधि और प्रशासन में बैठे जिम्मेदार अधिकारी कब जागेंगे?

यह तस्वीर दंतेवाड़ा जिले के ग्राम पंचायत हांदावाड़ा बेड़मा तुमरीमेटटा पारा की है जहां गिनती के मात्र 12 से 13 घर है। जिनकी कुल आबादी महज़ 42 की होगी। यहां निवासरत आदिवासी परिवार वर्षों से अपने उपयोग मात्र के लिए ही गड्ढे खोदकर पानी जैसे तैसे अपनी प्यास बुझाने एवम् अन्य दैनिक उपयोग लायक पानी निकालते हैं। यह तो प्रकृति की नेमत है कि महज़ डेढ़ दो फीट से पानी निकल जाता है। नहीं तो स्थिति और भी विकराल हो सकती थी।
वर्तमान में यह आलम है, जबकि यकीन मानिए पूरी गर्मी का मौसम अभी शेष है । ऐसे में ये बिना शिकायत के अपने जीवन को कैसे जी रहे है आप खुद अंदाजा लगा सकते है।
वनों की वेगपूर्वक कटाई का दुष्परिणाम
लगातार हरे-भरे वनों की अवैध कटाई की वजह से अब नदियां अपनी अस्तित्व को खोने को आज मजबूर हो गई है। उनका लगातार गिरता जलस्तर कहीं ना कहीं एक बड़े जल समस्या की ओर भी हमें इंगित कर रहा है और इसका ज्वलंत उदाहरण आज की हमारी यह तस्वीर है जो अपनी कहानी खुद बयां कर रही है। तकनीकी दुनिया में आज का हमारा मानव समाज लगातार एक दूसरे को पछाड़ने की होड़ में निजी स्वार्थवश कहीं ना कहीं प्रकृति के समन्वय व्यवस्था में अपना नापाक हस्तक्षेप करने की कोशिश कर रहा है और वह शायद यह भूल बैठा है कि इसका दुष्परिणाम उसके निजी जीवन में क्या हो सकता है , जिसका उसने कभी परिकल्पना भी नहीं की होगी ।
