संकलन एवम् प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द
झेन कथा है, एक बहुत बड़ा चोर था। वह एक मास्टर चोर था, कभी पकड़ा नहीं गया था। जब वह बूढ़ा हुआ तो उसके बेटे ने कहा कि अब मुझे भी अपनी कला सिखा दें। क्योंकि अब क्या भरोसा ?
बूढ़े बाप ने कहा कि यह कला तू जानना चाहता है, तो सिखा दूंगा। कल रात तू मेरे साथ चल। वह कल अपने लड़के को ले कर गया। उसने सेंध लगायो।
बाप बेटे को ले कर अंदर गया। फिर एक बहुत बड़ी अलमारी में, उसका ताला खोला और बेटे को कहा कि तू अंदर जा। बेटा अलमारी में अंदर गया। और जैसे ही वह अंदर गया, बाप ने ताला लगा कर चाबी अपने खीसे में डाली, बाहर गया, दीवाल के पास जा कर जोर से शोरगुल मचाया, चोर ! चोर! और सेंध से निकल कर अपने घर चला गया।
सारा घर जाग गया। लड़के ने तो अपना सिर पीट लिया अंदर, कि यह क्या सिखाना हुआ? मारे गए। बुद्धि ने काम करना बंद कर दिया। अचानक उसे कुछ सूझा और उसने ऐसे आवाज की जैसे बिल्ली करती है। घरवालों ने नौकरानी को भेजा कि वह अलमारी में देखकर आये कहीं बिल्ली तो नहीं है। जैसे नौकरानी ने दीया ले कर झांका, उसने दीए को फूंक मार कर बझाया, धक्का देकर भागा। बड़ा शोरगुल मच गया। दस-बीस आदमी उसके पीछे हो लिए। । एक कुएं के पास पहुंचा, एक चट्टान को उठा कर उसने कुएं में पटका। चट्टान कुएं में गिरी, सारी भीड़ कुएं के पास इकट्ठी हो गयी। समझा कि चोर कुएं में कूद गया। लोग वापस लौट गये।
लड़का घर पहुंचा और बाप को अपनी कहानी सुनाने लगा। बाप ने कहा, तू आ गया, बाकी कहानी सुबह सुन लेंगे। मगर तू सीख गया। अब सिखाने की कोई जरूरत नहीं।
जहां खतरा होता है, वहां तुम जाग जाते हो। जहाँ खतरा होता है, वहां विचार अपने-आप बंद हो जाते है। खतरे का उपयोग करो। भय है तो जागो। खतरे से सुरक्षा मत करो। खतरे से सुरक्षा करने में तो हमारी चेतना क्षीण हो जाएगी। भय बड़ी अदभुत स्थिति है। कंपन आएगा, रो-रोओं थर-थर हो जाएगा। उस समय तुम जागे रहे, तो प्रतिभा पर धार आयेगी।
