संकलन एवम् प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द
सिकंदर के संबंध में एक कहानी है। कहानी सच्ची तो नहीं हो सकती, लेकिन जीवन के एक सत्य के बारे में कहती है। कहानी है कि सिकंदर भारत की ओर आ रहा था। रास्ते के किनारे एक फकीर बैठा था जिसके हाथ में एक चमकीला सा गोला था। सिकंदर को कुतूहल जगा। उसने फकीर से पूछा कि उसके हाथ में क्या है। फकीर बोला कि यह तो मैं तुम्हें न बताउंगा कि यह क्या है, लेकिन इतना जरूर बता सकता हूं कि यह तुम्हारे पूरे खजाने से ज्यादा भारी है।
सिकंदर ने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि वे एक बड़ा सा तराजू और उसका सारा खजाना ले आयें। तराजू और खजाना लाया गया। उस विराटतराजू के एक पलड़े पर वह चमकीला गोला रखा गया और दूसरे पलड़े पर सिकंदर का खजाना उंडेलना शुरू किया गया। सारा खजाना उडेल दिया गया, लेकिन चमकीले गोले वाला पलड़ा भारी ही रहा। सिकंदर हैरान रह गया।
अचानक फकीर ने जमीन से कुछ धूल उठायी और गोले पर छिड़क दी। जैसे ही फकीर ने उस पर धूल छिड़की, गोले का पलड़ा ऊपर उठ गया और खजाने का पलड़ा नीचे आ गया।
अब तो सिकंदर और भी हैरान हुआ। उसने फकीर से पूछा कि यह क्या हुआ, और मुझे बताओ कि यह गोला है क्या। फकीर बोला कि यह और कुछ नहीं, मनुष्य की आंख है। जब तक यह स्पष्ट थी, इससे कीमती कोई चीज इस संसार में नहीं थी। जैसे ही यह धूल से धूमिल हुई, इसकी कोई कीमत – न रही।
मनुष्य की निर्विकार दृष्टि इस जगत की सबसे बहुमूल्य निधि है। जब दृष्टि निर्विकार होती है तो आप जगत को वैसा ही देख पाते हैं जैसा कि वह है। आप उसे अपनी मान्यताओं, जड़ विश्वासों और आकांक्षाओं के चश्मों से नहीं देखते। तब सारे सत्य आपके सामने उदघाटित होते चले जाते हैं। मान्यताओं की धूल दृष्टि को विकारग्रस्त कर देती है। जगत जैसा है, वैसा न दिखायी पड़ने को ही रहस्यदर्शियों ने माया का बंधन कहा है।
