संकलन एवम् प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द
एक सूफी कहानी है कि एक कुत्ता एक राजमहल में घुस गया।
और उस राजमहल में सारी दीवालें दर्पण की बनाई गई थीं। वह कुत्ता बहुत मुश्किल में पड़ गया, क्योंकि उसे चारों तरफ कुत्ते ही कुत्ते दिखाई पड़ने लगे। वह बहुत घबड़ाया। इतने कुत्ते चारों तरफ अकेला घिर गया इतने कुत्तों में निकलने का भी रास्ता नहीं रहा। द्वार-दरवाजों पर भी आईने थे। सब तरफ आईने ही आईने थे।
फिर वह भौंका। लेकिन उसके भौंकने के साथ सारे कुत्ते भौके और उसकी आवाज सारो दीवालों से टकराकर वापस लौटी, तब तो बिलकल पक्का हो गया कि खतरे में जान है और बहुत दूसरे कुत्ते मौजूद है। और वह चिल्लाता रहा और जितना चिल्लाया, उतने जोर से बाकी कुत्ते भी चिल्लाए और जितना वह लड़ा और भौंका और दौड़ा, उतने ही सारे कुते भी दौड़े और भीके। और उस कमरे में वह अकेला कुत्ता था।
रात भर वह भौंकता रहा, भौकता रहा। सुबह जब पहरेदार आया तो वह कुत्ता मरा हुआ पाया गया, क्योंकि वह दीवालों से लड़कर और भोककर थक गया और मर गया। हालांकि वहाँ कोई भी नहीं था। जब वह मर गया तो वे दीवाले भी शांत हो गई, वे दर्पण चुप हो गए।
यह संसार आपका ही प्रतिबिंब है। जो हम बोएंगे वहीं हम पर लौटने लगेगा। जीवन का सूत्र ही यह है कि जो हम फेंकते हैं। वही हम पर वापस लौट आता है। चारों ओर हमारी ही फेंकी गई ध्वनियों प्रतिध्वनित होकर हमें मिल जाती हैं। थोड़ी देर अवश्य लगती है।
ध्वनि टकराती है बाहर की दिशाओं से, और लौट आती है। जब तक लौटती है तब तक हमें खयाल भी नहीं रह जाता कि हमने जो गाली फेंकी थी वही वापस लौट रही है।
