भोपालपट्टनम से कविराज सत्यनारायण की रिपोर्ट
लोक असर समाचार भोपालपट्टनम
भोपालपट्टनम विकासखंड मुख्यालय से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित चेरपल्ली नामक गांव से होते हुए 8 किलोमीटर दक्षिण दिशा की ओर पोषडपल्ली ग्राम से 4 किलोमीटर की दूरी पर भगवान श्री कृष्ण जी की गुफा स्थित है। जहां पर श्री कृष्ण जी विराजमान हैं, वर्ष में एक बार यह मेला धूम धाम से मनाया जाता हैं। पूर्व में यह मेला एक महीने चलता था।लेकिन अभी यह मेला 5 दिनों तक ही लगता हैं।
इस गोवर्धन पर्वत की खोज लगभग 1900 ईसवी में राजाओं द्वारा की गई हैं। यहां प्रतिवर्ष मेला चैत्र कृष्ण पक्ष अमावस्या के 3 दिन पूर्व से प्रारंभ होता है और चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा नवरात्रारंभ गुड़ी पड़वा के दिन समापन होता है। इस मेला को हिंदी वर्ष का अंतिम मेला एवम हिंदी नववर्ष आगमन मेला भी कहा जाता हैं।


इसलिए कि 05 दिनों तक चलने वाले इस मेले के अंतिम दिन से गुड़ी पड़वा (नवरात्र) प्रारंभ हो जाता है। और शायद इस के बाद मेला मड़ई का आयोजन नहीं होता है । यही वजह है कि इसे हिंदी वर्ष का अंतिम मेला कहा जाता है।
इस मेला का आयोजन पोषडपल्ली समिति के द्वारा किया जाता हैं। जिसमें कई ग्राम पंचायत एवम वनोपज सहकारी समितियों का योगदान भी हैं। जिसमें ग्राम पंचायत बामनपुर ,अर्जुनल्ली, रुद्रारम, गोरला, जिला वनोपज सहकारी समिति यूनियन बीजापुर ,प्राथमिक वनोपज सहकारी समिति चेरपल्ली ,भद्रकाली, देपला, सकनापल्ली द्वारा भोजन की व्यवस्था रखी गई हैं।
यह भोपालपटनम जिला बीजापुर छत्तीसगढ़ का अंतिम छोर होने के कारण यहां से जुड़े राज्य महाराष्ट्र, तेलंगाना के लोग अधिक से अधिक संख्या में शामिल होते हैं । इस मेला को छत्तीसगढ़ के पर्यटक स्थल में जोड़कर देखा जाय तो, जिस प्रकार डोंगरगढ़ पहाड़ में स्थित मां बम्लेश्वरी की मंदिर में बिजली की व्यवस्था ,पक्की सड़क ,जिस तरह शासन के सहयोग से व्यवस्था की गई है, वैसे ही गोवर्धन पर्वत एवम सकलनारायण गुफा तथा मंदिर हेतु व्यवस्था किए जाने पर यह बीजापुर जिला छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध पर्यटन स्थल बन सकता है।
इस वर्ष मेला का आयोजन 05 अप्रैल से प्रारंभ है। आयोजन 05 अप्रैल मंडपंछादन ,06 को गोवर्धन पर्वत पूजा अर्चना एवम ध्वजारोहण, 07 को श्री कृष्ण भगवान की पूजा अर्चना मंदिर परिसर में, 08 अप्रैल को दोपहर 2 बजे माता राधा एवम कृष्ण विवाह समारोह एवम क्षेत्रीय लोक नृत्य एवम 09 अप्रैल अंतिम दिन भगवान की रथयात्रा एवम समापन तथा गुड़ी पड़वा (नवरात्र) प्रारंभ होगा। शायद इस के बाद मेला मड़ई का आयोजन नहीं होता है
