संकलन एवम् प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द
एक राजा था जो पक्षियों का बहुत प्रेमी था। एक दिन एक विचित्र सी चिड़िया उसकी खिड़की पर आ बैठी। राजा उसे देखकर हैरान हुआ कि क्या ऐसी चिड़िया भी होती है। ऐसी चिड़िया उस राजा के राज्य में कभी देखी ही न गयी थी। यह किसी दूर देश से आयी चिड़िया थी जो वहां से गुजर रही थी और कुछ पल विश्राम करने के लिये राजा की खिड़की पर आ बैठी थी। राजा को लगा कि इससे पहले कि वह उसे अच्छे से देख पाये, कहीं वह उड़ न जाये। सो उसने अपने सेवकों को उस चिड़िया को पकड़ने का आदेश दिया।
जब चिड़िया को पकड़ लिया गया तो पहले तो राजा ने उसके पंख कटवाकर उन पक्षियों जैसे करवाये जो उसके राज्य में पाये जाते थे। उसकी चोंच भी बहुत लंबी थी, सो उसने वह भी कटवाकर छोटी करवायी।
जब यह सब किया जा रहा था तो चिड़िया बहुत रोयी और चिल्लायी, उसने खुद को छुड़ाने की पूरी कोशिश की। लेकिन राजा ने उसकी एक न चलने दी , उसे छोड़ा ही नहीं। राजा का कहना था कि चाहे जो हो जाये लेकिन चिड़िया को वह ठीक करके ही रहेगा, उसे बाकी पक्षियों जैसा बनाकर ही छोड़ेगा। राजा ने सोचा इस बेचारी चिड़िया को पता ही नहीं है कि पक्षी कैसे होने चाहिये, लगता है इसने कभी स्वयं को दर्पण में देखा ही नहीं है; भला ऐसे पंखों और ऐसी चोंच के साथ कोई पक्षी कैसे जी सकता है!
उसने चिड़िया को बिलकुल वैसा बनवा दिया जैसे उसके राज्य के पक्षी होते थे। जब उसका काम पूरा हुआ तो वह चिड़िया से बोला कि अब तुम उड़ सकती हो, अब तुम जा सकती हो। लेकिन चिड़िया अब उड़ ही नहीं सकती थी। रोती और तड़पती हुई वह वहीं मर गयी।
तुम्हारे पंख तुम्हारे हैं। और इसका कोई फार्मूला नहीं है कि वे कैसे होने चाहिये।
पंखों का केवल एक ही प्रयोजन है कि वे तुम्हें उड़ने में सक्षम करें। उतना पर्याप्त है। उनका आकार, उनका रंग, उनका ढंग क्या है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। जब तुम कोई आदर्श अपने लिये खड़ा कर लेते हो और उसकी तरह बनने की कोशिश करते हो, तो उससे बड़ी मुढ़ता कोई और नहीं हो सकती। तुम्हारे जैसा अन्य कोई नहीं है। तुम्हें किसी और के जैसा नहीं बनना है, स्वयं की संभावना को साकार करना है।
