गंवईहा पुरातन रिवाज, काबर बोए जाथे जवांरा ❓

(डोंगरगढ़ से मदन मंडावी का लेख )

लोक असर समाचार डोंगरगढ़

हमर छत्तीसगढ़ मा किसम-किसम के तीज -तिहार मनाय जाथे। एकठन गोठ सुने ला मिलथे -भारत गांव के देश हरे, भारत के आत्मा गांव मा बसथे। अउ गांव म बसइया जायदातर किसाने होथे। अउ किसान के सब्बो तिहार फसली होथे माने फसलोत्सव ले जुड़े हावय।

आजकाल जवांरा तिहार ल मनखे किसम -किसम ले मनावथे । गंवईहा मनखे घलोक गाँव ला भुलाके शहर कोती झपावत हे। हमर पुरखा मन पुरातन बेरा म कोनो बीज ला बोए के पहिली जरई माने (बीजोपचार)अंकुरित करे के परम्परा रिहीस हे। बीज के उन्नत किसम अऊ अबीजहा दाना के पहिचान(परीक्षण) बर दूई- चार दिन माटी मा दाब के पानी सीत के प्रयोग करय। अइसने गांव मा बसे किसान कबिलाई आठोकाल बारो महिना भुइयां के पुजा करथे। शायद इही परम्परा हा आघू चलके जवांरा तिहार के रूप ले लिस होही।


जवांरा बोए के पहिली बिरही भींगोय के परम्परा घलो हे, जेला बिधी-बिधान पूर्वक गांव के सियान मन करथे। किसान के औजार अउ उत्पन्न करे अन्न उनकर देबी – देवतन के बरोबर आय।
ये किसम ले देखे जाय तो जवांरा अन्न, धन, सुख-समृद्धि देवय्या देबी होइस। ओकर सुआगत मा ओकर आघू अर्जी -बिनती करके नव दिन ले जोत जलाए के प्रथा ह सुरू होइस अइसे कह सकथन।

गांव मा बसय्या -तेली के तेल, कुम्हार के करसा-कलोरी, कंडरा के चरिहा-टुकना, लोहार के तिरसुल-बाना, किसान के बीज, मरार (माली)के फुल, कोष्टा के लुगरा -कपड़ा, राउत इंहा के दूध -दही, नाऊ के सिले पतरी, मोची के बनाय ढोलक- मांदर, बरेठ के बिछौना जइसे संवागा ला संघेर के। बइगा-बैइगिन, हुमदेवा इकट्ठा होइन। ये उस्सल मंगल ले करे रोटहा सुवागत ल जवांरा दाई स्वीकार करलिस।

नौ दिन- रात ले काबर जोत जलाईन?

ये अनुमान हो सकत हे, कोनो लइका ला पईदा होय मा नौ महिना लगथे, त ऊही नौ महिना ला प्रतीकात्मक रूप ले माई, महामाई के सेवा करे बर नौ दिन- रात राखिन होहि।
फेर एक बिस्कुटक हे जोत जवांरा घर अऊ गांव मा बेमतलब के नइ बोए जाय, जब घर के देबी-देवता घर के मुखिया ल सताय लगथे तब घर मा। अउ गांव के देबी -देवता गांव के सियान मन ला सताय लगाथे तभे गांव के शीतला, माता देवाला मा बोए जाथे।

दीया- बाती हर दिन-रात, जोत जवांरा कभु कभार।।”

घर के जोत-जवांरा ल सेवा अर्जी बिनती घर के माई- पिल्ला मिलके करथे। अऊ गांव के एकेठन जोत जवांरा ला सेवा, भजन, सुमरन गांव भरके मिलके करथे।

गांव के मनखे ककरो घर मा जवांरा नइ बो सके अउ कोई एके झन शीतला मा जवांरा नइ बो सके। गांव अऊ घर में घेरी-बेरी (बार-बार) जवांरा बोए के कोनो नियम नइ हे, ना जोत जलाए के नियम हे। जब तक ले देबी-देवता कोनों इशारा नइ देही तब तक जवांरा नइ बोना चाहि । फेर देखथन आजकल फोकट -फोकट के जोत जलाना, दान देना फईसन बन गेहे।

शहरिया ट्रस्ट समिति के चईत ,कुंवार के महिना मा भाग खुल जथे। जोत ला मनोकामना पूर्ति करे के माध्यम बताके गवईहां मन ला कहीं भुलवारत तो नइ हे? गांव के शीतला दाई, बस्ती माता ला जोत जला के परसन करे जाथे अउ गांव के ठाकुर ददा ला भोग चढ़ा के परसन करे के नियम हे। ये मन ला परिवेशी परसाद ही चघथे। जोत देबी मन करा जलाय जाथे। आजतक गांव के ठाकुर देव मा दीया- बाती के अलावा जोत नइ जले हे। गांव मा पेरेतीन, रकसा , भईसासुर डीह – डोंगर तक के पुजा करे जाथे।

गांव समाज मा नारी शक्ति ला आई- माई, दाई सम्बोधित करके सम्मान देथे, जेमा लइका ले सियान तक नारी रूप मा समा जाथे। नारी के पांच रूप हे -फूल, कली, कंचन, माई, महामाई। अउ इंकर ले बिचित्र, बिकराल होथे ओला कहिथे “कंकालीन”जेकर सुआगात घर के मुहाटी म करे जाथे। जइसे शीतला के आगु मा। जोत जवांरा के परब माई, महामाई के परब हरे। फेर आजकल लोगन मन बड़ मानता के देबी-देवता हरे कहिके जगा -जगा जोत जलवावत हे। येहा सोंचे के बात हावय।

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