संकलन एवम् प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द
बुुद्ध एक गांव से गुजर रहे थे। गांव के कुछ लोग इकट्ठे होकर उन्हें काफी अपशब्द कहने लगे।बुद्ध उन्हें बड़े ध्यान से और बहुत प्रेम से सुनते रहे। अब वे लोग चुप हुए, तो बुद्ध बोले, ‘जो कुछ तुम्हें कहना था वह कह चुके तो क्या अब मैं चलू? क्योंकि मुझे सूर्यास्त से पहले दूसरे गांव पहुंचना है। यदि अभी तुम्हारा कुछ कहना बाकी है तो कुछ दिन बाद में
यहां से गुजरूंगा, तब तुम कह लेना।’ बुद्ध बिलकुल अविचलित थे, उनका मौन वैसा का वैसा ही था, उनका आनंद भी ज्यों का त्यो था।
वे लोग हैरान थे। उन्होंने पूछा, ‘क्या आप हमसे नाराज नहीं है? हमने आपका इतना अपमान किया है, आपको इतनी गालियां दी है।
बुद्ध बोले, ‘तुम्हें हैरान ही रहना पड़ेगा क्योंकि तुम कुछ देर से आये हो। तुम्हें दस साल पहले आना चाहिये था- तब तुम मुझे विचलित करने में सफल हो सकते थे। तब मैं स्वयं अपना मालिक नहीं था। अब मैं अपना मालिक हूँ। तुम स्वतंत्र हो मुझे अपमानित करने के लिये। लेकिन मैं भी स्वतंत्र हूँ कि मुझे वह अपमान लेना है या नहीं, और मैं यह निर्णय लेता हूँ कि मैं उसे नहीं लूगा। अब तुम क्या करोगे?
पिछले गांव में कुछ लोग मिठाइयां ले आये थे. मैंने उन्हें कहा कि मुझे अभी मिठाई की जरूरत नहीं है तो वे उन्हें वापस ले जानी पड़ी। अब मैं तुमसे पूछता हूं कि उन्होंने उन मिठाइयों का क्या किया होगा?
वे बोले, उन्होंने वे मिठाइयां आपस में बांटकर खा ली होगी।’
बुद्ध बोले, ‘अब अपने बारे में सोचो। तुम गालियां लेकर आये और मैंने कहा कि वे अब मुझे नहीं चाहिये। अब तुम क्या करोगे?’
जीवन तुम्हारा अपना निर्णय है, तुम्हारी स्वतंत्रता है। जिस दिन तुम यह निर्णय ले लेते हो कि दुखी होना या सुखी होना अब मेरा ही अपना निर्णय होगा, तो तुमने अपना जीवन अपने हाथों में ले लिया। अब कोई और तुम्हें दुखी नहीं कर पायेगा- तुम अपने सुख के मालिक हुए।
