संकलन एवम् प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द
एक सांझ की बात है, दो भिक्षु भागे हुए जा रहे हैं एक रास्ते पर अपने झोपड़े की तरफ । वर्षा आ रही है. झोपड़ा उन्हें दिखाई पड़ने लगा है। जवान भिक्षु है एक, एक बूढ़ा भिक्षु है। जवान भिक्षु देख पाता है कि झोपड़ा तो टूटा पड़ा है- आधा झोपड़ा हवाओं में उड़ गया मालूम होता है। वह तो क्रोध से भर गया, उसने बूढ़े भिक्षु को कहा कि देखते हैं, जिस भगवान के गीत गाते फिरते हैं। हम, वह इतनी भी फिकर नहीं कर सकता है कि हमारा झोपड़ा बचा ले? बूढ़ा भिक्षु हाथ जोड़े आकाश की तरफ बैठा है और उसकी आंखों से आंसू बहे जाते हैं।
वह कह रहा है कि है भगवान, तेरी कृपा अनूठी है। हवाओं का क्या भरोसा, आंधियों का क्या भरोसा, वे पूरा झोपड़ा भी उड़ा कर ले जा सकती हैं। आधा बचाया तो जरूर तूने ही बचाया होगा, जरुर तूने ही बचाया होगा। जरूर तूने रोका होगा, जरूर तूने बाधा दी होगी, नहीं तो आधा कैसे बचता? धन्यवाद!
फिर रात उतर आई, बादल चमकने लगे और बिजलियाँ गरजने लगी और जोर की आवाजे आने लगी और वे दोनों सो गए। जवान रात भर करवट बदल रहा है। लेकिन बूढ़ा गहरी शान्ति में सोया हुआ है।
सुबा के दोनों उठते हैं। एक तो रात भर सोया है. दूसरा रात भर सोया है। सुबह उठते ही उस जवान ने फिर गालियां देनी शुरू कर दी।
वह बूढ़ा सुबह उठकर ही एक गीत लिख रहा है। उस गीत के अर्थ बड़े अनूठे हैं। उस में यह फिर कहता है कि हे परमात्मा, तू कितना अदभुत है, हमे पता भी नहीं था कि आधे छप्पर में सोने का आनंद क्या है। कभी आंख खुली तो तारे दिखाई पड़ गए है। नीद में भी मैने कभी तारे नहीं देखे थे, और मुझे ख्याल भी न था कि नींद को शांति में तारे कितने प्रीतिपूर्ण मालूम होते हैं और उनसे कैसे संबंध जुड़ जाता है। दिन की रोशनी में , रात के जागरण भी देखी थी तेरी प्रकृति, लेकिन नीद के मखमली पर्दे से कभी नहीं झांका था कि तेरी दुनिया इतनी अदभुत है। और अब तो मज़ा हो जाएगा। वर्षा आ गई है, बूंदें टपकेगी तेरी, आधे छप्पर में हम सोए भी रहेगे आधे छप्पर में तेरे बूंदों का संगीत भी रात भर नाचता रहेगा। अगर हमें पता होता कि इतना आनंद है. तो हम तेरी हवाओं को की तकलीफ न देते, हम खुद ही आधा छप्पर तोड़ देते, लेकिन हमे यह पता ही नहीं था।
यह एक धार्मिक व्यक्ति की जीवन के प्रति दृष्टि है। न तो आपके मंदिर में जाने से आप धार्मिक होते हैं, न आपके मस्जिद में जाने से आप धार्मिक होते हैं। धार्मिक आदमी की तस्वीर यह है कि यह जीवन के कांटों में फूलों को देखने में समर्थ होता है, जीवन की पीड़ाओं में आनंद को देखने में समर्थ होता है। आधे उड़ गए छप्पर में आधे बचे छप्पर को देखने में समर्थ होता है।
