(दंतेवाड़ा से उमा शंकर की ये ख़ास रिपोर्ट)
लोक असर समाचार दंतेवाड़ा
आदिवासियों को प्रकृति के सबसे नजदीक आखिर क्यों माना जाता रहा है, इन्हें प्रकृति के साधक रूप में भी आखिर हम सभी क्यों दर्जा देते आए है चलिए इसी के स्वरूप को जीवंत करती आज की एक छोटी से ग्राउंड जीरो से रिपोर्ट के माध्यम से समझें।

ग्राम रेका के आदिवासियों ने मनाया अपनी सदियों पुरानी बीज पंडूम का अनोखा त्योहार । बीते 14 अप्रैल को दंतेवाड़ा जिले के सुदूर अंचल में बसा ग्राम रेका के घने जंगलों में देखने को मिला । घने जंगल के ठीक बीचों बीच अपने विशेष दैवीय स्थान में इन आदिवासियों ने सदियों से चली आ रही अपनी धनी रीति रिवाजों व परंपरा के अनुसार बीज पंडुम पूजन को विधिवत् तरीक़े से संपन्न किया। जी हां वही बीज जिससे जीवन का सृजन होता है। पूरी सृष्टि की कायाकल्प जिसके सहारे निर्धारित रहती है जिसका वर्णन वेदों और शास्त्रों में भी वर्णित है ।
बीज पंडूम पूजन का मूल उद्देश्य
यहां बीज पंडूम, गोंड समाज में बीज से जुड़े पूजन व्यवस्था से है । इस पूजन का मूल उद्देश्य – माता प्रकृति से छत्तीसगढ़ के गोंड आदिवासी अपने समाज के जीवन यापन और कल्याण के लिए ऋतु विशेष में जंगल से प्राप्त होने वाले फलों के लिए आभार व्यक्त करना और आगामी वर्ष पुनः इन फलों का वापिस से अच्छे मात्रा में आशीर्वाद के रूप में प्राप्ति करना होता है ।

ऋतु के प्रथम फल देवी-देव को करते हैं अर्पित
गौरतलब हो, वर्ष में एक बार चैत्र महीने में होने वाले इस पूजन में विशेष तौर पर गोंड समाज के सर्वोच्च स्थान पर आसीन इनके पुजारी वर्ग जिसे वेडे, पेरमा भी कहते है ,वे ही सारी पूजन प्रक्रिया को अपनी देख रेख में सम्पन्न करवाते है और पूजन व्यवस्था से जुड़े गायता, गुनिया वर्ग, अपने पेरमा वर्ग के निर्देशानुसार ही पूजन की अपनी युगों से चली आ रही अनोखी विधि को सम्पूर्ण करते है। इस पूजन में विशेषतर ऋतु के प्रथम फल जैसे इमली के बीज का उपयोग करके फलों में जैसे आम, महुआ, चार आदि फलों को अपने देवी-देव को अर्पित करते है ।
पूजन विधि के अंतिम पड़ाव
पूजन के दौरान मुर्गी के अंडे के साथ साथ महुआ से बने पारंपरिक शराब को यह वर्ग विशेष तौर पर उपयोग में लेते है। पूजन विधि के अंतिम पड़ाव में ये तर्पण के रूप में अपने घर में पाले गए मुर्गे की बलि के रक्त के साथ महुआ से बनी शराब को अपने आराध्य देव देवी को समर्पित करते है । मुर्गे में विशेष रूप से लाल और सफेद मुर्गे की बलि पुजारी वर्ग द्वारा सर्वप्रथम अपने ईष्ट देवी देवता को चढ़ावे के रूप में देने की परंपरा है। इसके पश्चात ही इनके समाज के अन्य वर्ग के लोग अपने अनुसार किसी भी रंग का मुर्गा देव पर चढ़ावे के रूप में दे सकते है। नुका नेऊरू इनके आराध्य देव और नांगरगुंडी इनकी देवी है । जिस पेड़ के नीचे इनके दोनो देव और देवी विराजते है वह पेड़ आदेन ( हलवी में), मरदूम (गोंडी में) क्षेत्रीय भाषा में कहलाता है ।
अपने ग्राम के सीमा को बुरी शक्तियों से बचाने विषेश विधान
पूजन के पहले पड़ाव में मुर्गी के खराब अंडे का उपयोग कर अपने ग्राम के सीमा को बुरी नजरों व बुरी शक्तियों से पार पाने हेतु लक्ष्मण रेखा की तरह चिन्हित कर बांध दिया जाता है और इसके पश्चात ही मूल पूजन पेरमा, गाइता और गुनिया वर्ग के द्वारा अपने देवी देव के संपक्ष शुद्ध मुर्गी के अंडे, अंडे का छिलका ,चावल, देशी शराब महुआ ,देशी मुर्गी, फल इत्यादि का उपयोग करके पूजा विधिवत् संपन्न की जाती है । फलों में मुख्यतः आम, महुआ और चार होता है ।
पुजारी के निर्देश पर प्रसाद बनाने का कार्य ग्रामीण करते है
पूजन के पश्चात, पूजन वाले स्थान से ही थोड़ी दूर हटकर प्रसाद हेतु जंगल में मिलने वाले चट्टानों पत्थरों तथा सुखी लकड़ियों का उपयोग करके चूल्हे बनाए जाते है जिसे पुजारी वर्ग द्वारा सर्वप्रथम मंत्रो उच्चारण द्वारा अंडे के छिले हुए अंश जिसे क्षेत्रीय भाषा में टिपरी कहते है उसका उपयोग कर शुद्धिकरण करते है और इसके पश्चात ही प्रसाद बनाने का कार्य ग्रामीण करते है । यहां ध्यान देने वाली एक विशेष बात यह है की पुजारी वर्ग के लिए बिल्कुल एक अलग चूल्हे की निर्माण किया जाता है जिसमे सिर्फ पुजारी वर्ग ही नियम और परंपरा के अनुसार प्रसाद ग्रहण करते है ।
बीज पंडूम पूजन में महिलाओं और बच्चियों का आना है वर्जित
श्रेष्ठ पुजारी पेरमा दादा, सोनधर कश्यप कहते है की यह परंपरा सदियों पुरानी है हम अपने पुरखों, दादा परदादाओ से सीख ग्रहण करते हुए आज भी उस धनी संस्कृति के सहारे करते आ रहे है । वे कहते है पूजन से जुड़ी जितने भी प्रसाद की सामग्रियां अलग अलग चूल्हों में बनती है उसमे से सभी सामग्री थोड़ी थोड़ी से पुजारी गाय्ता ,गुनिया वर्ग से जुड़े लोगों को प्रदान किया जाता है और उनके प्रसाद सेवन के पश्चात ही ग्राम के बाकी समाज ग्रहण करते है । प्रसाद में इनके द्वारा उपजाए चावल ,दाल और जंगल से प्राप्त साग सब्जियों के साथ साथ पूजन में बलि के दौरान दिए मुर्गे की प्रसाद बनाई जाती है । यहां यह सारी प्रसाद की सामग्रियां बिना तेल और मसाले के बनाने की रिवाज है और यह प्रसाद केवल देव स्थान पर ही ग्रहण करने की रिवाज है। इस प्रसाद को घर तक नहीं ले जा सकते है। पेय पदार्थ में लंदा, सल्फी ,महुआ से बनी पारंपरिक शराब का ये वहन करते है । इस बीज पंडम पूजन में महिलाओं और बच्चियों का विशेषतः आना वर्जित है ।
पुजारी ही प्रसाद को ग्रहण कर सकता है
नि:संतान दंपती का पुरुष वर्ग यहां संतान प्राप्ति हेतु अपने आराध्य देवी देव के समक्ष पेरमा, गाईता और गुनिया वर्ग के सहयोग से पूजन के समय मन्नत या मानसिक की जाती है और संतान प्राप्ति के उपरांत इस पूजन में वे अपने परिवार में जन्में संतान के संख्या अनुसार मुर्गी के शुद्ध अंडे अपने देवी देव को रीति के अनुसार चढ़ाते है । चढ़ावे का यह अंडा पूजन के उपरांत सिर्फ पुजारी वर्ग ही प्रसाद सेवन के रूप में ग्रहण कर सकता है ।
ज्ञात हो ,पूजन का यह स्थल रेका ग्राम, दंतेवाड़ा जिले के गीदम विकासखंड से लगभग 48 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है । यह कोरकोटी ग्रामपंचायत के अधीनस्थ है जो भागौलिक दृष्टि से काफी घने जंगलों और पहाड़ों से आच्छादित है। ग्रामवासियों के बिना सहयोग से यहां जाना संभव नहीं है।
