मुझे प्रसन्नता का रहस्य बताये।’ प्रसन्नता की खोज में भटकता भिक्षु…

संकलन एवम् प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द

एक युवा भिक्षु प्रसन्नता की खोज में भटक रहा था। वर्षों बीत गये थे, वह न जाने कहां-कहां भटक चुका था लेकिन कोई सूत्र हाथ न लग पाया था। फिर किसी ने उसे बताया कि किसी गांव में एक भिखारी रहता है जिसे सदा प्रसन्न देखा गया है, वह उसे प्रसन्नता का रहस्य बता पायेगा। उस भिखारी को खोजता हुआ वह युवा भिक्षु, वर्षा की एक अंधेरी रात उसकी कुटिया के सामने जा पहुंचा। उसने द्वार खटखटाया, द्वार खुला, और भिक्षु ने देखा कि वह भिखारी जो उसके सामने खड़ा है उसके बदन पर कपड़े नहीं है लेकिन एक चमक ने उसे घेरा हुआ है। भिक्षु ने अपना सिर उसके चरणों में रख दिया, और बोला, ‘प्रसन्नता क्या है? मुझे प्रसन्नता का रहस्य बताये।’

वह वृद्ध भिखारी हंसते हुए बोला, ‘कैसी विडंबना है कि तुम प्रसन्नता को खोज रहे हो। जो बाहर हो उसे तो खोजा जा सकता है, लेकिन जो तुम्हारे भीतर ही हो, उसे कैसे खोजोगे?’

फिर वह वृद्ध भीतर से दो फल लाया और वे उसने भिक्षु के सामने रखे। उसने भिक्षु से कहा, ‘ये दो फल बड़े अनूठे हैं। यदि पहला फल खाओगे तो तुम प्रसन्नता के विषय में सब जान जाओगे, लेकिन यदि तुम यह दूसरा वाला फल खाते हो तो तुम स्वयं प्रसन्न हो जाओगे। लेकिन तुम इन दोनो फलों में से केवल एक ही फल खा सकते हो क्योंकि जैसे ही तुमने एक फल खाया, दूसरा गायब हो जायेगा। अब चुनाव तुम्हारा है। तुम कौनसा फल चुनते हो?’ भिक्षु एक क्षण को झिझका फिर बोला: मैं पहला फल चुनता है, क्योंकि पहले यह जानना।

वृद्ध फिर हसने लगा। वह बोला, मैं देख सकता हूं कि तुम्हारी खोज इतनी लंबी क्यों चलती आयी है। तुम प्रसन्नता के बारे में जानना चाहते हो, लेकिन तुम प्रसन्न होना नहीं चाहते। तुम्हें प्रसन्नता को खोजना पड़ रहा है क्योंकि, तुम प्रसन्नता का चुनाव ही नहीं करते। यदि तुम जानना चाहते हो कि प्रसन्नता क्या है, तो बस प्रसन्न हो रहो। यदि तुम्हें सच में ही प्रसन्न होना है, तो कहीं जाने की जरूरत नहीं-तुम जहाँ भी हो. वहीं प्रसन्न होने के लिये पर्याप्त कारण हैं।
अपना जीवन अपने हाथों में लो। चारों ओर अस्तित्व में इतनी प्रसन्नता चल रही है। चारों और प्रसन्नता बिखरी हुई हैं। जरा गौर से चारों ओर देखो तो सही-दुखी होने का एक कारण नहीं, और प्रसन्न होने के लिये कारण ही कारण।

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