सिकंदर और डायोजनीज।। सिकंदर ने कहा, मैं आऊंगा, मैं जरूर आऊंगा, लेकिन वह कभी वापस नहीं लौट सका, रास्ते में ही मर गया।

संकलन एवम् प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द

सिकंदर भारत आता था, तो एक फकीर डायोजनीज से मिलने गया, क्योंकि उस फकीर की बड़ी चर्चा सुनी थी। उसकी बड़ी खबर सिकंदर के पास पहुंचती थी कि वह परम आनंदित है। सिकंदर उससे मिलने गया। तो डायोजनीज ने पूछा, कहां जा रहे हो?

सिकंदर ने कहा एशिया जीतना है। डायोजनीज ने पूछा, फिर क्या करोगे? और डायोजनीज लेटा था नदी की रेत में। सर्दी की ऐसी ही सुबह रही होगी, धूप ले रहा था। वह लेटा ही रहा, वह उठ कर बैठा भी नहीं। फिर पूछा फिर क्या करोगे?

सिकन्दर ने कहा फिर भारत जीतना है। डायोजनीज ने कहा फिर? सिकन्दर ने कहा कि फिर थोड़ी बहुत दुनियां बचेगी, वह जीत लेनी है। डायोजनीज ने कहा , और फिर?
सिकंदर ने कहा, फिर क्या, फिर आराम करेंगे । डायोजनीज हंसने लगा, उसने कहा, आराम तो हम अभी कर रहे हैं। तुम तब करोगे?

अगर आखिर में आराम ही करना है तो, इतनी दौड़ भाग किसलिए? आराम, देखो हम अभी कर रहे हैं। वह लेटा ही था और इस नदी के तट पर बहुत जगह है , कोई ऐसा भी नहीं है कि जगह की कमी है, तुम भी आराम कर सकते हो, कहीं जाने की जरूरत नहीं है। यह राज़ तो तट पर बैठा घोंघा भी जानता है।

सिकन्दर निश्चित ही गहन रूप से प्रभावित हुआ था। झेंप गया क्षण भर को। बात तो सच थी। सिकंदर ने डायोजनीज से कहा कि तुम मुझे ईर्ष्या से भरते हो। अगर दुवारा मुझे कोई जन्म मिला तो परमात्मा से कहूंगा, मुझे सिकंदर मत बना, डायोजनीज बना ।

डायोजनीज ने कहा, यह फिर तुम अपने को धोखा दे रहे हो। परमात्मा को क्यों बीच में लाते हो? अगर तुम्हें डायोजनीज बनना है. तो अभी बनने में कौन सी अड़चन है? कपड़े फेंक दो, विश्राम करो।

सिकंदर ने कहा, बात जंचती है, लेकिन आशा नहीं मानती। मैं आऊंगा, मैं जरूर लौट कर आऊगा। लेकिन अभी तो मुझे जाना होगा, अभी तो यात्रा अधूरी है। लेकिन वह कभी वापस नहीं लौट सका, रास्ते में ही मर गया।

विश्रांत होना चाहते हो, प्रफुल्लित होना चाहते हो तो तुम अभी इसी क्षण हो सकते हो। और यदि इस क्षण प्रफुल्लित नहीं हो सकते, तो कभी भी न हो पाओगे। प्रफुल्लता का भविष्य से कोई संबंध नहीं है, यह तो केवल जीवन को देखने का एक नजरिया है।

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