सुख का सूत्र है: रात दो बजे का अलार्म…

संकलन एवम् प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द

एक आदमी इस बात को लेकर बहुत परेशान था कि रोज रात कोई उसके बगीचे में घुसकर सब तहस-नहस कर जाता था। बगीचे की सुरक्षा के लिये जो कुछ भी उपाय किये जा सकते थे वह कर चुका था। घर के चारों ओर पहरेदार तैनात थे और उन पहरेदारों ने कभी किसी को रात में भीतर प्रवेश करते हुए नहीं देखा था। सब प्रबंध किये गये थे लेकिन रोज सुबह बगीचा तहस-नहस ही मिलता।

यह आदमी एक सूफी संत के पास अपनी समस्या लेकर गया, क्योंकि उसने सोचा कि वह तो दूरदर्शी होंगे और सब पता लगा लेंगे। सूफी संत ने उसकी बात सुनने के बाद अपनी आंखें बंद की और कहा, ‘तू एक काम कर, अपनी घड़ी में रात दो बजे का अलार्म लगा ले।

वह आदमी बोला, ‘इससे क्या हल होगा? मेरे पहरेदार तो लगातार चौकने होकर घर के चक्कर लगाते रहते हैं, घर पर पैनी नजर रखते हैं।’

सूफी संत ने कहा, ‘बहस करने की कोई जरूरत नहीं है। तू बस वही कर जो मैंने कहा है। तू दो बजे का अलार्म लगा और फिर कल आकर मुझसे मिलना। जो भी हो वह तू मुझे बताना।’

उस आदमी को विश्वास तो नहीं हुआ कि इससे कुछ हल होगा, लेकिन फिर भी उसने रात दो बजे का अलार्म लगा दिया।

दो बजे अलार्म बजा और उसकी नीद खुल गयी। वह अपने बगीचे में खड़ा था और पौधे उखाड़ रहा था।

सभी यही कर रहे हैं। तुम बीज बोते हो, और फिर अपनी नींद में, अपनी बेहोशी में तुम खुद ही उन्हें नष्ट कर देते हो। तुम प्रेम करते हो और फिर उसमें ईष्या ले आते हो। तुम प्रेम करते हो और फिर मामूली बातों पर लड़ने भी लगते हो। तुम सतत अपना ही विरोध कर रहे हो। जो कुछ तुम करते हो, उसे खुद ही अनकिया कर देते हो। अगर तुम सचेत होकर देखो तो तुम स्वयं अपने खिलाफ चीजें कर रहे हो।

जब भी तुम दुखी हो, तो जानना कि कहीं गहरे में तुम ही उसके लिये जिम्मेदार हो। और एक बार तुम्हें यह समझ आ जाये कि तुम ही अपने दुखों के कारण हो तो चीजें बदलने लगती हैं। सुख का सूत्र है: यह बोध कि अपने सुख और दुख के निर्माता।

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